छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन में दवा परिवहन का मामला, एक महीने बाद भी कई जिलों में नहीं पहुंची गाडिय़ां!

Admin2
16 Jun 2021 5:20 AM GMT
छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन में दवा परिवहन का मामला, एक महीने बाद भी कई जिलों में नहीं पहुंची गाडिय़ां!
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कार्यादेश जारी होने के एक माह के भीतर ठेकेदार को वाहन उपलब्ध कराना है लेकिन आज तक कई जिलों में वाहन उपलब्ध नहीं कराया गया

दवा परिवहन के लिए आमंत्रित निविदा शर्तो के विरुद्ध गाडिय़ां लगाई गई

जानबूझकर अपात्र फर्म को लाभ पहुंचाया गया, मिली भगत की आशंका से इंकार नहीं

ज़ाकिर घुरसेना

रायपुर। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन (सीजीएमएससी) द्वारा दवा परिवहन के लिए दी गई निविदा में गोलमाल नजऱ आ रहा है। विभाग द्वारा निकाली गई ट्रांसपोर्ट निविदा में गलती रुकने का नाम नहीं ले रही है। सबसे पहले तो निविदा बुलाया गया तब निविदाकारों के दस्तावेजों को सही ढंग से देखा नहीं गया। विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि सफल निविदाकार द्वारा निविदा में चाही गई वाहन के बदले दूसरा वाहन दिया जा रहा है। जिन वाहन के दस्तावेज टाइप 1 एवं टाइप 2 बताकर निविदा में लगाया गया था उन वाहनों को कार्य पर नहीं लगाया जा रहा है। विभाग द्वारा इन सब की अनदेखी की जा रही है। निविदाकार को कार्यादेश जारी होने के एक माह के भीतर ही सभी वाहन लगानी थी। कार्यादेश 13 मई 2021 को विभाग द्वारा जारी किया गया था लेकिन कई जिलों में एक भी वाहन नहीं पहुंची है। अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार 14 जून तक विभिन्न जिलों के डीपो में गाडिय़ां नहीं पहुंची थी। निविदा की शर्तो के मुताबिक विभाग इस दशा में निविदाकार को काली सूची में डाल कर ईएमडी की राशि जप्त कर निविदा निरस्त कर सकती है लेकिन अभी तक ऐसा नहीं होना संदेह को जन्म देता है। एक के बाद एक खुलासे से सरकार के काम पर पलीता लग रहा है। लगता है विभाग पिछले घोटालो से सबक नहीं लिया है। सरकार को संज्ञान में लेकर दोषियों पर करवाई करनी चाहिए। दवा परिवहन में घोटाला भी जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ ही है। सूत्रों से यह भी जानकारी मिली है कि सीजीएमएससी द्वारा दवा परिवहन हेतु बुलाई गई निविदा के मूल्याकन में गड़बड़ी कर अपात्र फर्म को अनुचित लाभ पहुंचाया गया है। साथ ही निविदा में दिए शर्तो का भी खुल्लम खुल्ला उललंघन किया गया है। निविदा में पात्र निविदाकार के पास बंद बॉडी वाहन होना चाहिए क्योकि दवाई सप्प्लाई में इस प्रकार के वाहनों की ही जरुरत पड़ती है ताकि दवाइयां पानी से खऱाब न हो, लेकिन दवाइयों की सप्लाई खुले वहां से तिरपाल ढँक कर करवाये जाने की खबर है। । गौरतलब है कि सीजीएमएससी द्वारा राज्य के सरकारी अस्पतालों में आपूर्ति की गई पोविडोन आयोडीन एंटीसेप्टिक साल्यूशन (घोल) को जांच में नकली पाया गया था । मामला खुलने के बाद शासन ने आनन-फानन में सभी अस्पतालों से दवा को वापस मंगा लिया था। औषधि विभाग ने जाँच की थी तो दवाई गुणवत्ताहीन पाई गई थी। इस सम्बन्ध में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव ने तत्काल करवाई करने कहा था लेकिन दवा परिवहन के मामले में हो रही अनियमितता पर कोई होती कारवाई नजऱ नहीं आ रही है। इस सम्बन्ध में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री को विभाग द्वारा वस्तुस्थिति से अवगत नहीं कराया जा रहा है। कहीं प्रदेश की कांग्रेस सरकार को जानबूझकर बदनाम करने की साजिश तो नहीं हो रही है? प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव से इस बात की शिकायत लिखित में की गई है उन्होंने करवाई का आश्वासन भी दिया था लेकिन आज तक कोई करवाई नहीं हो पायी है। इससे सीजीएमएससी के अधिकारियों और कर्मचारियों के हौसले बुलंद हो रहे हैं। शिकायतकर्ता को स्वास्थ्य मंत्री ने जांच के बाद निश्चित तौर पर दोषियों पर कार्रवाई करने का आश्वासन दिए थे। ज्ञातव्य है कि सीजीएमएससी लिमिटेड के क्षेत्रीय औषधि गोदामों से दवा परिवहन हेतु वाहनों को लगाने दर अनुबंध हेतु 5 दिसंबर 2020 को निविदा आमंत्रित की गई थी जिसमें कुल 3 निविदाकारों ने भाग लिया था उक्त निविदा में दिनांक 24 फऱवरी 2021 को दावा आपत्ति चाही गई थी जिसके तहत तीनों निविदाकारों को अपात्र घोषित कर दिया बाद में एक निविदाकार को पात्र कर दिया गया। दावा आपत्ती में दूसरे निविदाकारो को मामूली बात पर अपात्र घोषित कर अपने चहेते को निविदा दिए जाने की जानकारी मिली है। जिसमे भारी भ्रस्टाचार किये जाने की आशंका है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अनुभवहीन फर्म को निविदा दी गई है। जबकि निविदा की शर्तो के मुताबिक अनुभवहीन निविदाकार को निविदा में भाग लेने की अनुमति ही नहीं थी। इस सम्बन्ध में एक अन्य प्रतिभागी द्वारा कोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटाने की जानकारी मिल रही है। एक आरटीआई कार्यकत्र्ता द्वारा भी इस सम्बन्ध जानकारी मांगने की जानकारी मिली है। जिस निविदाकार को पहले इस क्षेत्र में काम करने का अनुभव ही नहीं है उसे निविदा किस आधार पर दिया गया है जाँच का विषय है। इससे जाहिर होता है कि दवा परिवहन निविदा के मूल्यांकन में गड़बड़ी कर जमकर भ्रस्टाचार किया गया है। विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि वहीं टेंडर भरने की अंतिम तारीख तक ईएमडी की राशि जमा की जाती है लेकिन सफल निविदाकार द्वारा तय तिथि तक भी एमडी की राशि जमा नहीं की गई थी लेकिन वित्तीय मूल्यांकन में निविदाकार द्वारा पुरानी निविदा में जमा की गई ईएमडी राशि के रूप में स्वीकार कर लिया गया है जिसके संबंध में प्रबंध संचालक द्वारा किसी भी तरह का अनुमोदन नहीं लिया गया है जो कि निविदा के नियम के विरुद्ध है। साथ ही ऐसी जानकारी भी मिली है कि इस निविदा के अंदर जो वाहन मांगी गई है उसके अंतर्गत टाटा 207/टाटा जेमोन/ पिकअप या समतुल्य गाड़ी व टाइप 2 के अनुसार टाटा 407/ आईसर/स्वराज माजदा अथवा समतुल्य गाड़ी निविदाकार के पास होनी चाहिए लेकिन निविदा में शामिल हुए प्रतिभागी सफल निविदाकार द्वारा जमा किए गए दस्तावेज में प्रदाय वाहन निविदा में चाही गई टाइप 1 एवं टाइप टू के अनुसार नहीं है। और ना ही निविदाकार के पास समस्त टाइप ए एवं टाइप टू के वाहन भी नहीं है।उनके द्वारा जमा किए गए वाहनों के दस्तावेज में केवल 15 वाहन के दस्तावेज निविदा समय के भीतर अपलोड किया गया था। जिन गाडिय़ों के दस्तावेज उनके द्वारा जमा किए गए हैं निविदा की शर्तो के अनुसार वाहन तीन साल पुरानी नहीं होनी चाहिए थी लेकिन सफल निविदाकार के द्वारा लगाई गई कई वाहन 3 साल पुराने हैं जो कि निविदा समिति द्वारा नजरअंदाज किया गया है एवं इसी आधार पर एक अन्य निविदाकार को अपात्र करार दे दिया गया। समिति द्वारा गुमास्ता के नाम पर भी गोलमाल किया गया है। ऐसा लगता है कि विभाग द्वारा जानबूझकर अपात्र फर्म को अनुचित लाभ पहुंचने के लिए ऐसा किया गया है। । सफल निविदाकार द्वारा टेंडर की शर्तो का खुला उललंघन इसके बावजूद पात्र घोषित किया जाना संदेह के घेरे में है। इन सबको देखते हुए इस बात से इंकार नहीं जा सकता कि निविदा में भारी गड़बड़ी हुई है। इस सम्बन्ध में सीजीएमएससी के प्रबंध संचालक एवं अन्य जिम्मेदार अधिकारियों से जानकारी हेतु कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाई।

वाहन नहीं पहुंचने से दवा सप्लाई पर असर

विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि प्रदेश के कई जिलों में अभी तक ठेकेदार द्वारा वाहन मुहैया नहीं कराया गया है। कोरबा, कवर्धा, धमतरी सहित कई जिलों में अभी तक ठेकेदार द्वारा वाहन की व्यवस्था नहीं की गई है। विभिन्न डिपो के सहायक प्रबंधको से बात करने पर उनके द्वारा बताया गया कि मुख्यालय से वाहन भेजने के उपरांत ही हम दवाओं का परिवहन करवा सकते है। ठेकेदार द्वारा वाहन भेजने की बात हुई है लेकिन एक माह गुजर गए अभी तक वाहन नहीं मिला। इस सम्बन्ध में मुख्यालय को निर्णय लेना है।

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