छत्तीसगढ़

झूठ बोलने वाले कहीं से कहीं बढ़ गए, और मैं था कि सच बोलता रह गया

Nilmani Pal
25 March 2022 5:58 AM GMT
झूठ बोलने वाले कहीं से कहीं बढ़ गए, और मैं था कि सच बोलता रह गया
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ज़ाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव

एक शायर ने ठीक ही कहा है कि झूठ बोलने वाले कहीं से कहीं बढ़ गए, और मैं था कि सच बोलता रह गया। जब से कश्मीरी पंडितों के पलायन और उनके दर्द पर फिल्म द कश्मीर फाइल्स रिलीज हुई है, तब से पूरे देश में इसी पर बहस होने लगी है। एक तरफ इस फिल्म को भारी समर्थन मिल रहा है तो दूसरी तरफ इस फिल्म का भारी विरोध भी किया जा रहा है। शिवसेना नेता संजय राउत सहित विपक्ष के नेताओं ने इस फिल्म को समाज में नफरत फ़ैलाने वाला कहा।

नेताओं ने यह भी कहा कि कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति करना कतई सही नहीं है और कश्मीर फाइल्स सिर्फ एक फिल्म है जरुरी नहीं है कि दिखाए गए दृश्य हकीकत हो। फिल्म में दिखाए गए सीन और हकीकत में जमीन आसमान का फर्क है। हालांकि किसी भी नागरिक के साथ ज्यादती ठीक भी नहीं है। हैरान करने वाली बात तो ये है कि प्रधानमंत्री मोदी जी जो 18 घंटे काम कर रहे हैं उन्हें भी कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा की जानकारी फिल्म देखने के बाद मिली। जबकि उस वक्त केंद्र में भाजपा के समर्थन से वीपी सिंह की सरकार थी और कश्मीर में गवर्नर का रूल हुआ करता था। जगमोहन कश्मीर के गवर्नर हुआ करते थे, जो बाजपेयी जी की शिफारिश से ही गवर्नर बने थे, जो बाद में भाजपा में शामिल होकर अटलबिहारी जी की सरकार में मंत्री भी बने। तब पंडितों की याद क्यों नहीं आई? कोई पार्टी वाकई कश्मीरी पंडितों की समस्याओं को लेकर इतनी गंभीर है तो फिल्म की तारीफ छोड़कर उनके पुनर्वास के लिए काम करें।

देखा ये जा रह है कि पिछले आठ सालों से केंद्र में मोदी जी विराजमान हैं और कश्मीरी पंडित घाटी में अपनी वापसी की राह ताक रहे हैं। नेताओं ने यह भी कहा कि ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए कश्मीरी पंडितों का उपयोग किया जा रहा है। एक तरफ बीजेपी इस फिल्म का आक्रामक प्रचार कर रही है तो दूसरी ओर विपक्षी दलों के नेता इस फिल्म के बाद दलितों, आदिवासियों, किसानों, अल्पसंख्यकों और पिछड़ी जातियों पर हो रहे अत्याचार पर भी फिल्म बनाने की बात बोल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुले मंच से इस फिल्म की तारीफ की और कहा कि इस तरह के सच को सामने लाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कुछ लोग सच को छुपाने में यकीन रखते हैं. इसलिए इस तरह की फिल्म बनती रहनी चाहिए ताकि सच सामने आ सके।

जनता में खुसुर-फुसुर है सच तो यह भी है कि गुजरात के बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट भी कश्मीरी ब्राम्हण हैं, अभी कहाँ और किस हाल में हैं किसी से छुपी नहीं है। वहीं कश्मीर फाइल्स के निर्माता अग्निहोत्री मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन के बहुत बड़े फैन थे। जब उन्होंने देवी-देवताओं के नग्न फोटो बनाये थे तब देश में काफी विरोध हुआ था यहां तक मुस्लिम भी हुसैन के विरोध में खड़े थे और कह रहे थे कि किसी भी समाज के आराध्य देव की ऐसी तस्वीर बनाना ठीक नहीं। उस वक्त अग्निहोत्री हुसैन के साथ खड़े थे। यानी फायदे के लिए कुछ भी काम किया जा सकता है। देश में कई ऐसी घटनाएं हैं, जिन पर फिल्में नहीं बनी है। इसी बात पर किसी ने ठीक ही कहा है कि तेरी बताई बात को मैं तेरी आँखों से जान लेता हूं, लेकिन फिर भी मैं तेरे झूठ को सच मान लेता हूं।

वाह छत्तीसगढिय़ा चाणक्य...शाबास

चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को मगध का सम्राट बनाकर ही अपने रणनीतिक कौशल का पूरे विश्व में लोहा मनवाया। अब छत्तीसगढिय़ा चाणक्य डा संदीप ने दिल्ली से लेकर पंजाब तक अपनी रणनीतिक कौशल से आमआदमी पार्टी को दिल्ली के बाद पंजाब में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनवाकर छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर दिया है। दिल्ली में ही चाणक्य नहीं होता, छत्तीसगढ़ में भी ऐसे राजनीतिक दिव्य नक्षत्र है जो अपनी चमक बिखेर कर लोकसभा और राज्यसभा को आलोकित करने जा रहे है। डा.संजीप पाठक काफी समय तक प्रशांत किशोर की टीम में रहकर दिल्ली चुनाव के लिए काम भी किया था। उसके बाद वह अरविंद केजरीवाल के सलाहकार टीम में जुड़ गए। संदीप के बारे में कहा जाता है कि पंजाब में आप की सरकार बनानें में पर्दे के पीछे रहकर उन्होंने बड़े रणनीतिकार की भूमिका अदा की है। वो बीते कुछ समय से पंजाब में आम आदमी पार्टी का संगठन खड़ा करनें के लिए काम भी कर रहे थे। डॉ. संदीप पाठक को आम आदमी पार्टी की ओऱ से पंजाब से राज्यसभा उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से उनके पैतृक घर में खुशी का माहौल है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि दिल्ली औऱ पंजाब जैसे दो राज्यों में सरकार बनाने के बाद आम आदमी पार्टी छोटे प्रदेशों में खासा ध्यान दे रही है। आगामी 2023 में छत्तीसगढ़ प्रदेश में विधानसभा चुनाव है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के लिए डॉ. संदीप पाठक का चेहरा आम आदमी पार्टी से उभरकर सामने आ सकता है। आमतौर पर देखा जाता है कि अऱविंद केजरीवाल आईआईटीयन को खास तौर पर अपनी टीम में जगह देकर उनके साथ काम करते हैं। ऐसे में जिस तरह से डा संदीप पाठक को राज्यसभा के रास्ते सियासत में एंट्री करवा रहे है, उसे देखकर लगता है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में खास भूमिका रहेगी। क्योंकि पंजाब की 117 सीटों में आप को 92 सीटों पर जीत मिली हा जिसके पीछे डा. संदीप पाठक की मुख्य भूमिका रही है। जिस तरह भगवंत मान पंजाब के सांसद बने फिर मुख्यमंत्री बने उसी तर्ज पर डा. संदीप पाठक की एंट्री हो रही है।

मुख्यमंत्री की भाजपा विधायकों को नसीहत

अधिकारियों के तबादले और पदस्थापना में विपक्ष की ओर से लगाए भ्रष्टाचार के आरोपों को खारिज कर पलटवार करते हुए विपक्ष को चुनौती दी है कि आपकी सरकार में हिम्म्त नहीं थी,हमारी सरकार में जानकारी दीजिए, निष्पक्ष कार्रवाई होगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भाजपा विधायकों को नसीहत देते हुए कहा कि आप सभी जिम्मेदार जनप्रतिनिधि है, केवल सुर्खियों में बने रहने के लिए आरोप मत लगाइए। जनता में खुसुर-फुसर है कि कका ला भाजपाइ मन काबर छेड़ते है एखर पाछू यूपी में मिले जीत के आक्सीजन काम करत हवय। यूपी में जीत की खुशी तो भाजपा ने इस तरह मनाई की जैसे यूपी नहीं छत्तीसगढ़ जीत गए हो। यूपी के जीत का असर भाजपाइयों जल्द ही दिखाई देने वाला है। क्योंकि खैरागढ़ उपचुनाव में दूध का दूध और पानी का पानी साफ हो जाएगा। खैरागढ़ का परिणाम भाजपा के भविष्य का निर्माण करेगा कि 15 साल वाली की वापसी होगी या पांच साल वाले की वापसी होगी?

सांसद छाया वर्मा और रामविचार नेताम के जगह कौन

सांसद छाया वर्मा और रामविचार का राज्यसभा सांसद का कार्यकाल जून में समाप्त होने वाला है, कांग्रेस के पास 70 विधायकों की टीम है, ऐसे में दोनों सीटों पर कांग्रेस का काबिज होना तय माना जा रहा है। वरहीं विधानसभा अध्यक्ष डा. चरणदास महंत ने पहले ही दिल्ली जाने की इच्छा जाहिर कर दी है। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के दोनों सीटों के लिए हाईकमान भी विचार मंथन कर रही है। हाल ही में सरकार को छुरिया विधायक छन्नी साहू के पति को रेत माफियाओं के कहने पर गिरफ्तार किया गया।

जिसके विरोध में छन्नी साहू ने सुरक्षा लौटा दी और अकेले ही स्कूटी चलाकर विधानसभा पहुंच गई। वहां भी सुरक्षाकर्मियों ने विधानसभा में प्रवेश नहीं करने देने पर खूब हो-हल्ला मचाई, जिसका समर्थन विपक्ष ने भी किया। सरकार के कामकाज पर सवाल भी उठाए। जनता में खुसुर-फुसुर है कि भूपेश सरकार आने वाले 2023 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए कोई बड़ा फैसला ले सकती है। सीएम कार्यसमिति के सदस्य भी है, और हाईकमान से सीधे अपनी बात कहने का माद्दा भी रखते है। ऐसे में खबर आ रही है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत में रोड़ा बनने वालों को पहले से ही लाइन में लगा दिया जाएगा। पार्टी की छवि जनता के बीच खराब न हो,इन बातों को ध्यान में रखते हुए छन्नी साहू को भी राज्यसभा के लिए नामित किया जा सकता है। और एक सीट के लिए स्थानीय या हाई कमान के कहने पर दिया जा सकता है। भूपेश सरकार विधानसभा सत्र के बाद गांव-गांव भ्रमण करने वाली है, जिसमें सरकार के कामकाज की समीक्षा होगी। इस दौरान सरकार विरोधी कारणों को जल्द से जल्द हटाने की कार्रवाई होगी।

गोल बाजार को गोल रखने की कवायद

गोलबाजार में कुल 579 दुकानें हैं। सभी दुकानदारों ने नई दरों पर करीब 1 हजार रुपए, निर्मित क्षेत्रफल पर प्रति वर्गफीट पर लागू किया गया है। इस विकास शुल्क का कारोबारी विरोध कर रहे हैं। शुल्क की वजह से यदि किसी की 100 वर्गफीट की दुकान है, तो उनसे एक लाख रुपए लिए जाएंगे। गोल बाजार विवाद से जुड़ा एक बड़ा मसला जल्द ही सुलझ सकता है। विकास शुल्क को लेकर व्यापारियों और नगर निगम के बीच जारी खींचतान खत्म हो सकती है। जल्द ही शासन के स्तर पर गोल बाजार के विकास शुल्क में व्यापारियों को बड़ी राहत दी जा सकती है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि ऐसा होने पर गोल बाजार के कारोबारियों को लाखों का फायदा हो सकता है।

पंजाब के चुनाव परिणाम को देखते हुए निगम जल्द ही राहत देने की तैयारी कर रही है। नगर निगम प्रशासन इसे लेकर जल्द ही बड़ी घोषणा कर सकता है। गोलबाजार व्यापारी महासंघ सड़क पर उतर आया था। मानव श्रृंखला बनाकर व्यापारियों ने विरोध जताते हुए नारेबाजी की। सारे व्यापारी एक ही नारा लगा रहे थे कि सारा का सारा गोलबाजार हमारा है। व्यापारी महासंघ के अध्यक्ष धनराज जैन ने बताया कि निगम की ओर से जो व्यापारियों को मालिकाना हक देने का प्रस्ताव दिया गया है,उसमें कई विसंगतिया हैं। इसे दूर करने की मांग हम कर रहे हैं। खबर है कि विधानसभा चुनाव तक लटकाया रखे या जल्द राहत दे दे जिससे व्यापारियों का समर्थन विधानसभा के बाद नगर निगम चुनाव में भी मिल सके। यह पूरी प्लानिंग भाजपा सरकार के दौरान बनी थी, जिस पर कांग्रेसी निगम पर भाजपा सरकार ने ध्यान नहीं दिया था। जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा और सत्ता से बाहर हो गई। ऐसी गलती कांग्रेस नहीं करना चाहती जिससे पार्टी को नुकसान हो।

हार कर भी जीत गए धामी, सबकी रही हामी

राजनीति में जीत ही सब कुछ नहीं होता, इसका जीता जागता सबूत उत्तराखंड है, जहां भाजपा पश्चिम बंगाल का फार्मूला आजमा रही है। पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी के नेतृत्व में टीएससी ने प्रचंड बहुमत हासिल की लेकिन सीएम ममता बैनर्जी खुद चुनाव हार गई, उसके बाद भी पार्टी नेतृत्व ने ममता को ही विधायक दल का नेता नेता चुना। वहीं उत्तराखंड में मुख्यमंत्री रहते हुए पुष्कर सिंह धामी ने पार्टी को दो तिहाई बहुमत दिलाई लेकिन खुद खमीटा सीट से विधानसभा चुनाव हार गए. भाजपा ने धामी की मेहनत को जाया नहीं होने दिया।

पिछले दो दिनों से प्रधानमंत्री के साथ हुए पर्यवेक्षकों की बैठक में धामी का नाम ही तय हुआ। पर्यवेक्षक केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और मीनाक्षी लेखी ने विधायक दल की बैठक लेकर विधायक दल का नेता चुना। जनता में खुसुर-फुसर है कि भाजपा में मुकद्दर के सिकंदरों की कमी नहीं है। जो मुख्यमंत्री रहते विधानसभा चुनाव हार जाए उसके बाद भी पार्टी नेतृत्व उसी पर ही विश्वास करें, यह राजयोग नहीं तो और क्या है। यदि इसकी जगह कांग्रेस होती तो पार्टी के तथाकथित नेता ही नेतृत्व के खिलाफ खड़े होकर फैसले को बदलने के लिए अड़ गए होते। यही अनुशासन भाजपा को आने वाले समय में स्थायित्व प्रदान करेगी।

Nilmani Pal

Nilmani Pal

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