रायपुर। 'मोखला'(राजनांदगांव) निवासी जनता से रिश्ता के पाठक रोशन साहू ने एक कविता ई-मेल किया है।
नित हो रहे मकान बड़े ,पर घरौंदा हो रहा छोटा।
बात- बात पर अहं खड़े, पर मन हो रहा छोटा।।
वह पाना क्या पाना,जब कोई अपने पास नहीं।
बरगद भी तो सूख रहे,आशीष का हो रहा टोटा।।
घर में जब भी लोग रहे ,निजता की भी चाह रही।
जब कभी घरौंदा खाली,साथ रहने की चाह रही।।
जीवन कितना छोटा है,जरा बात करें वटवृक्षों से।
रिश्तों में जीवन बसता,पर किश्तों में परवाह रही।।
मुड़ने लगीं शाख लताएँ,हरियाली ड्राइंग कोने में।
हासिल धन यश कीर्ति,खुशियाँ भी रोतीं कोने में।।
आँखे ढूँढे हँसती आँखें,लब्धियों पे मुस्काए अधर।
सिर पे हाथ जब फिरे,नाज़ होता खुद के होने में।।
चेहरे हो रहे गौण तभी तो,गल परिचय टाँगा जाता।
अपनी-अपनी राह किसी से,सम्बन्ध न कोई नाता।।
तिस पर भी जीवन गौरव,आत्मगौरव का भान रहे।
अक्सर मुस्कुरा देता जब ,स्थायी पता मांगा जाता।।