छत्तीसगढ़

शासन से मिली सुविधा का नाजायज फायदा उठा रहे हैं जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स वाले

Nilmani Pal
7 Nov 2022 6:57 AM GMT
शासन से मिली सुविधा का नाजायज फायदा उठा रहे हैं जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स वाले
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जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स में वो दवाई तो नहीं मिलती जो मरीज को चाहिए

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स वाले शासन से मिली सुविधा का नाजायज फायदा उठा रहे हैं। शहर के मुख्य मार्गो में जहां टॉउन एंड कंट्री प्लानिंग के गाइड लाइन के तहत किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि नहीं हो सकती उन जगहों में भी जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स खुल गए हैं ताकि आम जनता को सस्ती दवा उपलब्ध हो सके। परन्तु देखा ये गया है कि इन जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स में वो दवाई तो नहीं मिलेगी जिसके लिए ये खुली है बल्कि हर वो सामान मिल जाएगी जो जनरल स्टोर्स में मिलती है यानी शासन को सीधे सीधे लाखों का चूना लगाया जा रहा है और मुख्यमंत्री के मंशानुसार काम नहीं किया जा रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मंशानुसार गरीब और आम जनता को सस्ती दवाई मिले इस हेतु जगह जगह जेनेरिक मेडिकल खोला गया है लेकिन उसका फायदा आम जनता या गरीब मरीजों को नहीं मिल रहा है। जेनरिक दवाएं गरीबों को राहत देने के बजाय मेडिकल स्टोर संचालकों की जेब भर रही हैं। जेनरिक और एथिकल दवाओं को अलग-अलग पहचान पाना आम जनता के बस में नहीं है ये सिर्फ मेडिकल स्टोर्स संचालक और अस्पताल वाले ही समझ सकते हैं। डाक्टरों को सख्त निर्देश के बावजूद भी वे जेनेरिक दवाई लिखने में आनाकानी कर रहे हैं क्योंकि जेनेरिक दवाओं में उनका मुनाफा कम होता है और ब्रांडेड दवाओं में ज्यादा।

दवाई की स्ट्रिप में हर हाल में जेनरिक लिखा हो तभी जनता को मिलेगी राहत

उदाहरण के तौर एक ब्रांडेड दवाई की कीमत अगर 200 रूपये की है तो यही दवाई जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स में 15 से 20 रूपये की मिलेगी। यह भी देखा जा रहा है की जेनेरिक दवाओं को अन्य मेडिकल स्टोर्स वाले ब्रांडेड बताकर ग्राहकों को 20 से 25 प्रतिशत छूट दे देते हैं इससे ग्राहक ख़ुशी ख़ुशी दवा लेता है उसके बावजूद दवा विक्रेताओं को 80 प्रतिशत की कमाई होती है तो तत्काल दवाई की स्ट्रिप पर जेनेरिक लिखना ही पड़ेगा वर्ना मेडिकल स्टोर्स वाले लूटने से बाज नहीं आएंगे। ग्राहक इन सब बातों से अनजान होते हैं। दवा विक्रेता इसी का फायदा उठा रहे हैं। वे जेनरिक दवा बनाने वाली कंपनियों से सस्ती दर पर दवाएं खरीदकर उन्हें ब्रांडेड के नाम पर महंगे दाम में बेच रहे हैं। जेनरिक मेडिकल स्टोर्स वाले दवाई की स्ट्रिप में जितना एमआरपी लिखा होता है उसी रेट पर ही बेच रहे है जो वास्तविक लागत मूल्य का लगभग 200 से 300 गुना ज्यादा होता है। जिसका खामियाजा आम जनता भुगत रही है और मेडिकल स्टोर्स वाले मालामाल हो रहे हैं। इसलिए अगर देश में दवाई के क्षेत्र में क्रांति लाना है तो दवाई की स्ट्रिप में जेनेरिक दवाई लिखना ही पड़ेगा जो केंद्र सरकार के हाथ में है। अभी देखा ये गया है कि जेनरिक दवाओं पर लागत से कई गुना ज्यादा एमआरपी लिखी जाती है। उसी रेट पर दवाई बेचीं जा रही है। जो सीधा सीधा ग्राहकों के साथ अन्याय है।

जीएसटी की चोरी भी कर रहे

जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स वाले जीएसटी की भी जमकर चोरी कर रहे हैं। अंडर बिलिंग के मामले में 100 प्रतिशत पेनल्टी के जेल भी है उसके बावजूद मेडिकल स्टोर्स वाले अंडर बिलिंग कर मोटी कमाई कर रहे हैं और जीएसटी विभाग सहित शासन को राजस्व की क्षति भी पहुंचा रहे हैं। विश्वसनीय सूत्रों मने बताया कि अंडर बिलिंग कर जीएसटी की भी चोरी की जा रही है। शहर में औसतन रोजाना करोड़ों रुपए का दवा व्यापार होता है। राजधानी में हजारो की तादात में मेडिकल स्टोर्स हैं। जीएसटी विभाग बारीकी से कार्रवाई करे तो जीएसटी चोरी पकड़ में आ सकती है।

मेडिकल स्टोर्स वालों की मिली भगत

भूपेश सरकार ने मरीजों को सस्ती दवा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जेनरिक दवाओं को बढ़ावा देने की नीति बनाई है। जिसके तहत जगह जगह मुख्य मार्गो पर श्री धन्वन्तरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स खोले गए हैं। उनकी मंशानुसार गरीब मरीजों और आम जनता को सस्ती दवा उपलब्ध करना है लेकिन छूट का दुरूपयोग किया जा रहा है। नर्सिंग होम संचालक वही दवा लिख रहे हैं जिसमे उनको ज्यादा मुनाफा हो। जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स में अगर डाक्टर ने दस जेनेरिक दवाई लिखी है तो मात्र 3 या 4 दवाई ही वहां मिलेगी इससे मरीज के परिजन एक साथ लेने के लिए ब्रांडेड दवा खरीदना उसकी मजबूरी हो जाती है। सरकार द्वारा दी गई छूट का गलत फायदा मेडिकल स्टोर्स वाले मिली भगत कर उठा रहे।

आम जनता को लाभ नहीं

सरकार ने दवा कंपनियों के लिए जेनरिक दवाएं बनाने की अनिवार्यता लागू की गई, बावजूद इसके सस्ती दवाओं का वास्तविक फायदा मरीजों तक नहीं पहुंच रहा। मरीजों का जेब हल्का होता है इन सब सेल्स प्रमोशन का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है। उन्हें लागत से कई गुना ज्यादा दर पर दवाएं खरीदना पड़ती हैं। जो नर्सिंग होम संचालको से मिलकर रेट बढ़ी हुई तय होती है। दूसरी तरफ जेनरिक दवाओं में ये तमाम खर्च नहीं करना पड़ते। न इसका विज्ञापन होता है न ही प्रमोशन। इसके चलते जेनरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं के मुकाबले 10 से 25 गुना तक सस्ती होती हैं, जबकि इनका असर उतना ही होता है जितना ब्रांडेड दवाओं का। बावजूद इसके इसका फायदा मरीजों तक नहीं पहुंच पाता। और शासन की मंशा पर पानी फिरता है।

दवाई की स्ट्रिप पर जेनेरिक स्पष्ट रूप से लिखा हुआ होना चाहिए

जेनेरिक के नाम पर कमाई का खेल कायदे से अगर मरीजों को वाकई फायदा पहुंचना है तो जेनेरिक मेडिसिन में ब्रांड नहीं लिखा रहना चाहिए। सिर्फ मॉलिक्यूल का नाम लिखा रहना चाहिए। ब्रांडेड दवाइयों में मेडिकल स्टोर्स की मार्जिन 20 प्रतिशत होती है लेकिन जेनेरिक में ज्यादा मार्जिन होती है। इसका भी नियम होना चाहिए ताकि जेनेरिक मेडिकल वाले भी ज्यादा मुनाफा नहीं कमा सकें। जेनेरिक मेडिसिन में जेनेरिक मेडिसिन लिखा हुआ होने से मुनाफाखोरी की गुंजाईश नहीं बनती। अभी नहीं लिखा होने का फायदा मेडिकल स्टोर्स वाले खुले रूप से उठा रहे हैं

ऐसे समझे कमाई का खेल

मसलन एक जेनेरिक मेडिसिन जिसकी एमआरपी जो दवाई की स्ट्रिप पर 150 रूपये लिखी है उसे जेनेरिक वाले 70 रूपये में बेच रहे हैं उसमे भी वे 50 रूपये मुनाफा ले रहे हैं। जबकि उक्त दवाई की वास्तविक कीमत 20 रूपये ही होती है और 20 प्रतिशत मार्जिन के लिहाज से उन्हें दवाई 24 रूपये में देनी चाहिए। जनता इन सब बातो से अनभिज्ञ होती है दवाई की स्ट्रिप में जेनेरिक दवाई लिखने से ये खेल बंद हो जायेगा। और शासन की मंशा जनता को सस्ते दर पर दवाई उपलब्ध करना भी पूरा हो जायेगा।

जेनरिक और ब्रांडेड दवा की पहचान मुश्किल

जनता से रिश्ता ने शहर के मेडिकल स्टोर्स पर इस बात की पड़ताल करने के लिए सर्वे किया तो चौकाने वाली जानकारी सामने आई। एक सामान्य व्यक्ति के लिए यह पहचान पाना लगभग नामुमकिन है कि कोई सी दवा जेनरिक है और कौन सी ब्रांडेड। अभी मार्किट में जेनेरिक लिखा दवाई की स्ट्रिप नहीं आ रही है। जिसका भरपूर फायदा मेडिकल स्टोर्स के संचालक कर रहे हैं। वाली दवाओं की है। केंद्र सरकार को चाहिए कि जीवन रक्षक दवाइयों को डीपीसीओ में लाना चाहिए जिससे किसी भी ब्रांड की दवाई हो रेट में अनुरूपता होनी चाहिए तभी आम जनता को फायदा होगा। जेनेरिक मेडिसिन के मामले में तभी क्रांति आएगी जब सरकार दवा कंपनियों पर नकेल कसे और जेनेरिक दवाओं के स्ट्रिप पर जेनेरिक स्पष्ट रूप से प्रिंट करे।

ऐसे रोक सकते हैं फर्जीवाड़ा

जेनरिक और ब्रांडेड दवाओं की पहचान के लिए स्ट्रिप पर ही निशानी होना चाहिए। बड़ी-बड़ी ब्रांडेड दवा कंपनियां ही दवा की रिसर्च करती है। उसमें अरबो रुपिया खर्च होता है ताकि नई दवा दुनिया में अए और उसका लाभ सभी को मिले जैसे कोरोना के टीके की खोज भी एक ब्रांडेड कंपनी ने की थी। ऐसे मामले में इन्हें छूट मिलना चाहिए बाकी में नहीं। दूसरा केंद्र सरकार दवा कंपनियों को निर्देश दे कि जेनरिक दवाओं को लेंडिंग प्राइज (लागत मूल्य) से एक निश्चित प्रतिशत बढ़ाकर ही बेचें। एमआरपी भी इसी अनुपात में रखी जाना चाहिए ताकि मेडिकल स्टोर्स इसका गलत फायदा न उठा सकें।

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