रायपुर। खुशहाली और प्रेम के साथ हरियाली का प्रतीक छत्तीसगढ़ का पहला पर्व हरेली के दिन से प्रदेश में लागू की गई गोधन न्याय योजना अब आमदनी का पर्याय बन चुकी है। छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति और अस्मिता से जुड़ा हरेली पर्व ग्रामीणों और किसानों के खुशियों का वह स्वागत द्वार भी है, जहाँ से बढ़ाया गया एक-एक कदम उन्हें समृद्धि से जोड़ता है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने शायद इसीलिए पिछले साल हरेली पर्व के दिन छत्तीसगढ़ में गोधन न्याय योजना लागू करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया कि यहाँ के किसान, गरीब जो पशुपालन से जुड़े हैं वे गोबर बेचकर आमदनी हासिल करें और आर्थिक समृद्धि की राह में आगे बढ़ सकें। प्रदेश के मुखिया की यह संकल्पना महज एक साल में साकार हो जाएगी और रोजगार के साथ आमदनी का नया अवसर विकसित कर देगी यह भी शायद ही किसी ने सोचा था, लेकिन यह सच है कि गोधन न्याय योजना ने पशुपालन करने वाले गोबर विक्रेताओं के साथ ही गोबर खरीदने वाली स्व सहायता समूहों की महिलाओं के लिए भी वरदान साबित हो रही है। गोधन न्याय योजना ने पशु संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ गोबर के महत्व को भी बढ़ाया है। जैविक खाद के साथ फसल उत्पादन को बेहतर बनाने और द्वि-फसलीय के द्वार भी खोल दिए हैं। कहावतों में गोबर शब्द से किसी का उपहास उड़ाया जाता था आज वही गोबर, न सिर्फ कीमती हो चला है अपितु गोबर को छूने वाले, गोबर को उठाने वाले लोग गोबर से पैसे बना रहे हैं और अपने कच्चे मकान को पक्का कर रहे, तो कोई मोटरसाइकिल खरीद रहा। बहुत से लोग है गोबर बेचकर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा से जोड़ रहे हैं और अपनी अनेक जरूरतों को भी आसानी से पूरा कर रहे हैं। गोबर से होने वाली आमदनी ग्रामीणों और बेरोजगारों की जीवनरेखा बदल रही है और गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की संकल्पना को साकार कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाकर स्वावलंबन की राह को भी आसान कर रही है।
होने लगी आमदनी तो बढ़ने लगी खुशहाली
गोधन न्याय योजना से जुड़कर आमदनी बढ़ाने वाले परिवारों में अब खुशहाली ही खुशहाली है। पशुपालन को घाटे का सौदा मानकर चलने वाले भी अब गोबर बेचकर लाखों का मुनाफा कमाने लगे हैं। इस योजना से जुड़कर स्व सहायता समूह की महिलाओं ने भी आत्मनिर्भर बनने के साथ तरक्की की राह में कदम आगे बढ़ाया है। सरगुजा से लेकर बस्तर तक गोधन न्याय योजना से आमदनी अर्जित करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कोई गोबर बेचकर तो कोई गोबर खरीदकर अपनी भाग्यरेखा और लाइफस्टाइल बदल रहा है। बस्तर जिले में बकावण्ड ब्लॉक के ग्राम मंगनार की स्व सहायता समूह की महिलाएं गोबर से खाद के अलावा गमला, दीया भी बना रही है। देवांशी समूह की महिलाएं सामूहिक बाड़ी के माध्यम से सब्जी उत्पादन से आमदनी भी अर्जित कर रही। सरगुजा संभाग के अंतर्गत विश्रामपुर की श्रीमती गीता देवी का कहना है कि वे गोबर बेचने से मिले पैसे से बेटी की मेडिकल की पढ़ाई का खर्च वहन कर पाई है।कबीरधाम जिले के गोविंदा यादव तो कब से मोटरसाइकिल खरीदना चाहता था, लेकिन जब वह गोधन न्याय योजना से जुड़ा तो गोबर बिक्री से मिली राशि से उसका मोटरसाइकिल लेने की चाहत पूरी हो गई। कांकेर के लघु कृषक गोविंद राम मंडावी ने भी गोबर बेचकर मोटरसाइकिल खरीदी। उन्होंने बताया कि अब मोटरसाइकिल से बाड़ी में उत्पादित सब्जियों को बेच पाएगा। दुर्ग जिले के प्रकाश यादव का परिवार मवेशी चराकर परिवार का गुजारा करता है। गोबर बेचकर हुई आमदनी से जब प्रकाश यादव ने नई मोटरसाइकिल घर लाई तो परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। गौरेला पेण्ड्रा मरवाही की श्रीमती संतोषी बाई ने एक लाख रुपए का गोबर बेचा और इससे 50 हजार रुपए का कर्ज चुकाए। बेमेतरा जिले के ग्राम भाड़ के रमेश यादव चरवाहे का काम करते हैं। गोबर बेचकर हुई 55 हजार रुपए की आमदनी से उन्होंने मोटरसाइकिल खरीदी। कोरिया जिले की सीता देवी ने गोबर बेचकर अपने पति विष्णु सिंह को मोटरसाइकिल खरीदने के पैसे दिए। सीता देवी ने बताया कि अब बाइक आ जाने से वह पति के साथ आसानी से रिश्तेदारों के घर जा पाती है। कांकेर के कृषक जागेश्वर साहू और कलीराम साहू को गोधन न्याय योजना से मिली राशि से ट्रैक्टर खरीदने में आसानी हुई। अब वे खेतों में ट्रैक्टर का इस्तेमाल कर अधिक आमदनी अर्जित कर पाएंगे। लॉक डाउन में मुफलिसी से जूझ रहे अम्बिकापुर निवासी मोहम्मद खान के लिए गोधन न्याय योजना संकटमोचक साबित हुई। मोहम्मद खान ने बताया कि वह ऑटो चलाने का काम करते हैं। कोविड-19 की वजह से जब राज्य में लॉक डाउन लगा तो ऑटो परिचालन बन्द हो गया। इस बीच उनकी 10 मवेशियाँ बहुत मददगार साबित हुईं। वह गोबर बेचकर किसी तरह परिवार का भरणपोषण कर पाए। कोरिया के श्री शिवचरण ने बताया कि गोबर बिक्री से उन्होंने दो बैल और क़िस्त में मोटर सायकिल खरीदा है। बलौदाबाजार जिले के चरवाहा श्री गंगाराम ने बताया कि अब तक 2 लाख रुपए से अधिक राशि प्राप्त हो चुकी है। इस राशि को उन्होंने अपने बच्चे को पढ़ाने और मकान बनवाने के लिए उपयोग किया है।
तीरथ ने पत्नी को गहने भेंट कर रिश्ते बनाए मजबूत
राजमिस्त्री का काम करने वाले तीरथ साहू की कमाई इतनी नहीं थी कि वह अपनी आमदनी से घर चलाने के अलावा पत्नी के लिए आभूषण खरीदने की सोच सके। प्रदेश में जिस दिन गोधन न्याय योजना लागू हुई और जब पशुपालक के रूप में पत्नी श्रीमती केजा बाई और अपना पंजीयन कराया तो उन्हें एक सुनहरा भविष्य नज़र आने लगा। गोबर बिक्री के पैसे जब उसके खाते में आ गए तो उन्होंने अपने बच्चों के लिए नए कपड़े लिए और पत्नी केजा बाई को सोने के आभूषण के रूप में अनूठा उपहार भी दिया। तीरथ राम ने गोबर को जहाँ सोने में बदल दिया वहीं पत्नी की वर्षों पुरानी मुराद पूरी कर अपने रिश्ते को और भी मजबूत बना डाला।
दुग्ध व्यवसाय को मिला संबल
गोधन न्याय योजना से राज्य में पशुधन के संरक्षण एवं संवर्धन के साथ ही दुग्ध उत्पादन व्यवसाय को एक नया संबल मिला है। चिरमिरी में दुग्ध व्यवसाय कर रहे विष्णु प्रसाद ने बताया कि उन्होंने 650 क्विंटल गोबर बेचकर एक लाख 33 हजार रूपए का अतिरिक्त लाभ अर्जित किया है। इस राशि से दो दुधारू गाएं ली है, जिससे उसका व्यवसाय आगे बढ़ सका है।
देश ने भी माना, बेहतर प्रयास है गोधन न्याय योजना
छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना कोरोना काल में एक बड़ी उपलब्धि के साथ अन्य कई राज्यों की तुलना में हमारे राज्य को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने वाली साबित हुई। राजीव गाँधी किसान न्याय योजना और गोधन न्याय योजना से किसानों और पशुपालकों को मिली राशि ने राज्य में आर्थिक लेन-देन को बढ़ावा देने के साथ विकास दर को आगे रखा। कोरोना काल में राज्य की यह उपलब्धि देश में पहचान बनाने के साथ प्रशंसा की हकदार भी बनीं। देश में सामाजिक आर्थिक मुद्दों पर काम करने वाली भारत के अग्रणी थिंक टैंक स्कॉच ग्रुप ने गोधन न्याय योजना' को पर्यावरण संरक्षण और सतत् विकास में उत्कृष्ट योगदान के लिए 20 मार्च 2021 को 'स्कॉच गोल्ड अवार्ड' से नई दिल्ली में सम्मानित किया। इसी तरह लोकसभा में कृषि मामलों की स्थायी समिति ने सदन में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना की सराहना करते हुए केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि किसानों से मवेशियों के गोबर खरीद की ऐसी ही योजना पूरे देश के लिए शुरु की जानी चाहिए।
पशुपालकों को 99 करोड़ का भुगतान
शासन की मंशा के अनुरूप राज्य में अब तक 1135 गौठान आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन गए हैं। इन गौठानों में गोबर की खरीदी और वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए अब शासन की मदद की जरूरत नहीं रह गई है। गौठान समिति और महिला समूह अपनी आर्थिक गतिविधियों के संचालन के लिए सक्षम और आत्मनिर्भर बन गए हैं। लगभग 85 हजार महिलाओं को रोजगार और नियमित आय प्राप्त होने लगी है। योजना के तहत गौठानों में अब तक 48.32 लाख क्विंटल गोबर क्रय किया जा चुका है, जिसके एवज में गोबर विक्रेता पशुपालकों को करीब 99 करोड़ रूपए की राशि का ऑनलाइन भुगतान किया जा चुका है, इससे एक लाख 70 हजार पशुपालक लाभान्वित हुए हैं, इसमें भूमिहीनों की संख्या 75 हजार से अधिक है। गौठानों में अब तक 5.50 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट तथा 2 लाख क्विंटल सुपर कम्पोस्ट का उत्पादन किया जा गया है। गौठान समितियों को 11.68 करोड़ तथा महिला समूहों को 7.82 करोड़ रूपए की राशि लाभांश के रूप में दी गई है। महिला स्व-सहायता समूहों को गौठानों में संचालित विविध आयमूलक गतिविधियों से अब तक 29 करोड़ रूपए की आय हो चुकी है। गांवों में गौठानों की स्थापना का फायदा यह हुआ कि रबी मौसम में लगभग 4 लाख हेक्टेयर में द्विफसली क्षेत्र का विस्तार हुआ है। इसके साथ ही महिलाओं को पोषक आहार की उपलब्धता विभिन्न बाड़ियों में साग-सब्जी उत्पादन से होने लगा है।