छत्तीसगढ़

चारों तरफ मौत का हाहाकार...राज्य सरकार का नाम खराब कर रहा स्वास्थ्य विभाग!

Admin2
21 April 2021 6:20 AM GMT
चारों तरफ मौत का हाहाकार...राज्य सरकार का नाम खराब कर रहा स्वास्थ्य विभाग!
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रेमडेसिविर इंजेक्शन उपलब्ध नहीं, कालाबाजारियों के कब्जे में दवाइयों का कारोबार

रेमडेसिविर इंजेक्शन की जमकर हो रही है कालाबाजारी, स्वास्थ्य विभाग आंख मूंदकर बैठा

ज़ाकिर घुरसेना

रायपुर। प्रदेश में इन दिनों स्वास्थ्य सेवाओं का पुरसाने हाल नहीं है। कोरोना के बढ़ते प्रकोप ने स्वास्थ्य विभाग का भी हाल बेहाल कर रखा है जबकि सरकार द्वारा भरी भरकम बजट स्वास्थ्य विभाग को हर साल दिया जाता है। मरीज के परिजन इंजेक्शन और ऑक्सीजन के लिए दर बदर भटकने को मजबूर हो रहे हैं। शहर के लोग तो जैसे तैसे रिश्तेदारों या जानपहचान के जरिए दवाई और ऑक्सीजन का इंतजाम एड़ीचोटी जोरलगाकर कर ज्यादा पैसा देकर कर लेते हैं समस्या दूर दराज़ के ग्रामीणों को ज्यादा होती है। शहर में इन दिनों रेमडेसिविर इंजेक्शन और ऑक्सीजन की काफी किल्लत हो रही है स्वास्थ्य विभाग भले ही भरपूर मात्रा में इंजेक्शन और ऑक्सीजन होने का दवा करते रहे लेकिन हकीकत ये है कि 950 रूपये का एक इंजेक्शन के लिए कहीं 7000 तो कहीं 15000 तक देने पड़ रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग का प्रदेश के स्वास्थ्य सम्बंधित सेवाओं पर नियंत्रण नजऱ नहीं आता है। मरीजों के परिजनों के किस्मत में भटकने के आलावा कुछ नहीं दिखता है। राजधानी आने वाले मरीजों और स्थानीय मरीजों को निजी और सरकारी अस्पताल में इलाज के नाम पर रेमडिसिविरि का इंजेक्शन लिखने वाले डाक्टर भी दलालों के हिस्सेदार होते है। प्रदेश के विभिन्न इलाकों से मरीज यहां बेहतर इलाज के लिए आते हैं और यहां बेहतर इलाज के अभाव में लिए मरीजों की मौत का खामियाजा भुगतना पड़ता है। उसके बाद भी मरीजों को निजी अस्पतालों को इलाज के नाम पर लाखों रुपए का बिल भुगतान करना पड़ता है। स्वास्थ्य विभाग कागजी घोड़े दौड़ाकर गहरी नींद में गया है उसे यह भी नहीं मालूम की कोरोना से कितने मरीज मर गए है और कितने भती हो रहे है। सरकारी अस्पताल वाले तो इलाज के लिए हाछ उठा दिए है वहीं निजी अस्पताल वालों ने आपदा को कमाई का अवसर बना लिया है। उसके बाद भी मरीजों की मौत को नहीं रोक पा रहे है। कुछ निजी अस्पताल ऐसे भी हैं जो किसी के अप्रोच से बिल में कंसेशन जरूर कर देते लेकिन उनका बिल पहले से ही भारी भरकम रहता है। एक तरफ भूपेश बघेल हैं जो गरीबों की भलाई के लिए जांच से लेकर इलाज की शुल्क निर्धारित होने के बाद भी कोी नहीं मान रहा है मनमानी की सीमा चरम पर है, मरीज भर्ती है तो शुल्क देना ही पड़ेगा यह निजी अस्पताल वालों का फडा बन गया है।

स्वास्थ्य अमले का फेल होने का प्रमुख कारण राजनेता और रसूखदार अधिकारियों के निजी अस्पताल चलाना है इनके धौंस या रसूख के वजह से स्वास्थ्य विभाग का चुप रहना मज़बूरी हो सकती है लेकिन प्रश्न ये उठता है कि क्या स्वास्थ्य मंत्री भी इनके धौंस के आगे घुटने टेकने मजबूर हैं ? यह असंभव है लेकिन हालत यही बयान कर रहे हैं। पूरे छत्तीसगढ़ में इन अधिकारियो के स्वामित्व वाले या पार्टनरशिप में अस्पताल चल रहे हैं। क्या यही वजह है जिसके कारण निजी अस्पताल वाले खुली लूट मचा रखे हैं। एक बार अस्पताल में घुसे यानी जिंदगी भर की कमाई इन अस्पताल मालिकों के जेब में। यह भी देखा गया है की नोइजी अस्पताल वाले डाक्टर वही दवाई लिखते हैं जो उनके स्वामित्व वाले मेडिकल स्टोर में उपलब्ध रहते हैं। बाजार में जो इंजेक्शन 1500 की अति है वही इंजेक्शन 5000 रूपये में इनके द्वारा संचालित मेडिकल स्टोर में मिलते हैं। मरीज की जान को खतरा बता कर बेतहाशा कमाई करने से ये पीछे नहीं रहते। संवेदनहीनता में ये कसाई को भी पीछे छोड़ देते हैं ।

अव्यवस्था का आलम

सरकारी अस्पतालों में चारो तरफ अव्यवस्था का आलम है। स्थिति यह है कि इन दिनों नवीन इमरजेंसी में रखे सभी स्ट्रेचर कबाड़ हो चुके हैं। मरम्मत न कराए जाने के कारण इनके कलपुर्जे टूट रहे हैं। स्ट्रेचरों के अभाव में गंभीर हालत में लाए गए मरीज को हाथों में अथवा कंधों पर लादकर इमरजेंसी में मौजूद चिकित्सक तक ले जाया जाता है। स्ट्रेचर के कलपुर्जे भी निकले आधुनिक सुविधा से लैस अधिकांश बेड में से उनके कलपुर्जे अलग हो चुके हैं। बिस्तरों पर जो गद्दे बिछाए गए हैं उनमें से अधिकांश गद्दे भी फट चुके हैं। इमरजेंसी कक्ष में सुविधाओं के बदहाल होने का सबसे बड़ा खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ रहा है। कभी-कभी तो मरीजों के परिजनों को स्ट्रेचरों के लिए काफी देर तक इंतजार भी करना पड़ता है। इस हालात पर जनता से रिश्ता प्रतिनीधि ने स्वास्थ्य मंत्री से मोबाइल पर कई बार संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क स्थापित नहीं हो सका।

सरकार का नाम खऱाब करता स्वास्थ्य अमला

प्रदेश सरकार का नाम खराब करने में स्वास्थ्य अमला कोई कोर- कसर बाकी नहीं रखना चाहता मुख्यमंत्री की योजनाओं पर स्वास्थ्य अमला ने पतीला लगाया। सरकारी अस्पताल में मरीजों को जबरदस्ती इलाज के गफलत में रखकर निजी अस्पतालों के सुझाव दिए जाते है।क्योकि शहर के कई निजी अस्पताल छुटभैय्या नेताओं और आईपीएस अधिकारियों के है। बड़े छुटभय्ये नेताओं की और बड़े अधिकारियों के अपने निजी अस्पतालों के होने से सरकारी अस्पतालों में मरीजों का इलाज सही ढंग से नहीं किया जाता ।

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