छत्तीसगढ़

रंगत बदल गई है ज़माने की जनाब, आजकल अनजान वही बनते हैं जो सब कुछ जानते हैं

Admin2
4 Jun 2021 5:30 AM GMT
रंगत बदल गई है ज़माने की जनाब, आजकल अनजान वही बनते हैं जो सब कुछ जानते हैं
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ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव

देश सहित पुरे विश्व में कोरोना ने कहर बरपा दिया है। पिछले माह कोरोना से लाखो लोग अपनी जान गवां चुके हैं। मोदी सरकार इस मोर्चे में फेल साबित हुई है। आंकड़ों से पता चलता है कि विश्व में सर्वाधिक मौते भारत में हुई है। सरकार के बड़े नेता भी कोरोना के बचाव के उपाय के बदले राज्यों की सत्ता हथियाने में लगे रहे। सुप्रीम कोर्ट ने भी कोरोना वेक्सीन से जुड़े मामले में सुनवाई करते वक्त केंद्र सरकार की टीकाकरण नीति को तर्कहीन और केंद्र सरकार की मनमानी भी बता चुकी है। एक देश एक टेक्स , एक देश एक कानून के हिमायती केंद्र की भाजपा सरकार एक देश एक वेक्सीन रेट का पालन क्यों नहीं करती। काश ! प्रधानमंत्री जी इन सब कामो को छोड़कर कोरोना के इलाज के लिये ध्यान दिए होते तो इतनी तादात में हुई मौतों से बचा जा सकता था। बहरहाल देर आये दुरुस्त आये के तर्ज पर ही सही कोरोना की तीसरी लहर के लिए अभी से सरकार को विशेष रूप से जनता का ध्यान रखना होगा। कोरोना ने भारत ही नहीं समूचे विश्व के जीडीपी को बीमार कर दिया है। इसका दोष मोदी सरकार को देना ठीक नहीं है। कोरोना के बजह से बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ी है। सरकार के वश में महंगाई को रोकना तो है खाद्य पदार्थो तेलों के भाव एक साल में दो से तीन गुना बढ़ गया है केंद्र सरकार इसे रोक पाने में बुरी तरह विफल रही है। मंहगाई ने गरीब और माध्यम वर्ग के लोगो की कमर तोड़ दी है। अर्थशास्त्री पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की हंसी उड़ाने वाली सरकार की महंगाई के मुद्दे में चौतरफा फजीहत हुई है। बीस लाख करोड़ के आत्मनिर्भर पैकेज का भी अता-पता नहीं है।

बाबा रामदेव का दहाडऩा

कोरोना काल में बाबा रामदेव काफी दहाड़ रहे हैं। बाबा रामदेव दिए गए बयांन कि कोरोना संक्रमण से ज्यादा आधुनिक मेडिसिन के कारण लोगों की मौत हुई है. इसी बयान के विरोधस्वरूप देश भर के डाक्टर पिछले पिछले दिनों दिनों ब्लैक डे भी मना चुके हैं जो विश्व में कोरोना काल में किसी देश में नहीं हुआ होगा। भला हो उन डाक्टरों का जिन्होंने काली पट्टी लगाकर विरोध जरूर जताए हैं लेकिन चिकित्सा सेवा में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखे। डाक्टर पूरी शिद्दत के साथ मरीजों की सेवा करते रहे। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन ने भी बाबा के इस बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताकर उनसे बयान वापस लेने कहा था मजबूरन बाबा को अपना बयान वापस लेना पड़ा। दूसरे दिन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को खुला खत लिखकर 25 सवाल पूछकर फिर खलबली मचा दिए। बाबा रामदेव द्वारा चिकित्स्कों के खिलाफ इतनी बड़ी महामारी के बावजूद बयान देना मोदी सरकार का बाबा के ऊपर हाथ नजऱ आता है। मजे की बात ये है कि खुद बीमार पडऩे पर आधुनिकतम अस्पतालों में ईलाज करने वाले नेता और मंत्री भी इस विषय में ख़ामोशी अख्तियार किये बैठे हैं। लाशों से भरमार गंगा-यमुना एवं शमशानों-कब्रिस्तानों में लगी लाशों की कतारों को देश व दुनिया देख चुकी है और इन सबके लिए दवाओं, ऑक्सीजन और वेक्सीन उपलब्ध न करवा पाने की अपने की सरकार की विफलता से ध्यान बटाने के लिए तो कहीं बाबा रामदेव को उपयोग तो नहीं किया जा रहा है। बाबा रामदेव पिछले सप्ताह यह बयान भी दे चुके हैं कि किसी के बाप की हिम्मत नहीं है कि मुझे गिरफ्तार कर ले। यह सब सोची समझी बात मालूम होती है। बाबा रामदेव 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले उन्होंने कहा था की आगामी लोकसभा चुनाव तक जनजागरण करने के लिए पुरे देश का दौरा करेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि अगर नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो रिमोट कन्ट्रोल हम रखेंगे। वर्तमान अभयदान कहीं स्वामीभक्ति का इनाम तो नहीं ?

अदार पूनावाला को धमकी

कोरोना की वेक्सीन बनाने वाली संस्था सीरम इंस्टिट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला को धमकी दी जा रही है। कोविडशिल्ड की सप्लाई को लेकर उन्हें धमकी दी गई है। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा है कि उन्हें सुरक्षा प्रदान किया जाय। जनता में खुसुर-फुसुर है कि देश का गृह मंत्रालय बिना मांगे जब मिथुन चक्रवर्ती, कंगना रनौत , सुभेन्दु अधिकारी के पिता और भाई को वाई श्रेणी सुरक्षा और कश्मीर के एक पार्षद को दो पीएसओ प्रदान कर सकती है तो अदार पूनावाला को सुरक्षा देने में पीछे क्यों है। समझ से परे है।

बंगाल के हालात पर काबू करना बंगाल सरकार की है

पिछले दिनों भाजपा नेताओ ने बंगाल की हालात से छत्तीसगढ़ वालो को अवगत कराया। कोरोना महामारी के इलाज की व्यवस्था करना छोड़ केंद्र सरकार के लगभग सभी मंत्री और भाजपा शासित प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों, नेताओं ने जी तोड़ मेहनत किये थे लेकिन अंगूर खट्टे निकले। चुनाव के बाद बंगाल में आपसी विवादों से कुछ लोगो की हत्या हो गई। जिसे रोकना बंगाल सरकार की थी और अगर हालात ज्यादा ही बिगड़ गया है तो केंद्र सरकार सेना के जवान भेजकर हालात पर काबू कर सकती थी । जनता में खुसुर-फुसुर है कि बंगाल में भाजपा और टीएमसी कार्यकर्ताओ में झगड़ा हुआ उसमे छत्तीसगढ़ की शांतिप्रिय जनता को इससे क्या लेना देना,क्या भाजपाई चाहते है कि छत्तीसगढ़ में भी इस प्रकार की घटना हो ? जिससे सरकार को बदनाम किया जा सके। धन्य हो प्रभु

भूपेश सरकार का सराहनीय कदम

छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने कोरोना महामारी को रोकने के लिए पंचायत स्तर पर प्रयास तेज कर दिया है। हमारे यहाँ लगभग हजारो की तादात में ग्राम पंचायत हैं यहाँ पर और पंचायत के मुखिया को इसका सर्वेसर्वा बनाकर उनको ही मोर्चा सम्हालने बोला जायेगा, निश्चित रूप से यह कारगर साबित होगा। प्रदेश सरकार का यह कदम सराहनीय है।

किसान आंदोलन को छह माह पूरे

मोदी सरकार द्वारा बनाये गए तीनो कृषि कानूनों के खिलाफ द्वारा किये जा रहे आंदोलन को पूरे छह माह हो गए। किसान आंदोलन सबसे अधिक दिन चलने वाले आंदोलनों में शुमार हो गया लेकिन मोदी सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है। देश के कई राज्यों के किसान तीनो कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर सर्दी,गर्मी और बरसात की परवाह किये बगैर धरने में बैठे हैं। आंदोलन के 6 माह पूरे होने पर किसानो ने काला दिवस भी मनाया जिसे देश के लगभग सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने अपना समर्थन दिया। हालांकि कोर्ट ने इन तीनो कानूनों के अमल पर फि़लहाल रोक लगा राखी है। मोदी सरकार न तो इस रोक हो हटवाने कोर्ट जा रही है और ना ही अन्नदाताओ का आंदोलन ख़त्म करने की दिशा में कोई पहल करती नजऱ आ रही है, जबकि भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी भी सरकार से कह चुके हैं कि सरकार किसानो से बात कर आंदोलन ख़त्म करवाये। जनता में खुसुर-फुसुर है कि पांच राज्यों के चुनाव में जब कोरोना संक्रमण उफान पर था तब खासकर बंगाल में प्रधानमंत्री जी अपनी प्रतिष्ठा भी दांव पर लगा चुके थे इसके बावजूद आशातीत सफलता नहीं मिली। इस चुनाव में किसानो ने बंगाल जाकर भाजपा को हराने की अपील की थी कहीं उसी का गुस्सा तो प्रधानमंत्री जी किसानो पर उतार तो नहीं रहे हैं। बहरहाल लोकतंत्र में व्यक्तिगत गुस्सा को लेकर चुनी हुई सरकार काम नहीं करती इसलिए प्रधानमंत्री जी को चाहिए कि भाजपा सांसद स्वामी की बात पर अमल करते हुए अन्नदाताओ से मिलकर उनकी बातों को गंभीरता से सुनकर हार-जीत के तराजू से न तौलते हुए इसका हल निकालें। इसी बात पर शायर मंजर भोपाली कहते हैं- इसी होनी को तो कि़स्मत का लिखा बोलते हैं, जीतने का जहाँ मौका था वहीँ मात हुई।

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