छत्तीसगढ़

शहर का बड़ा बिल्डर अधिकारियों-छुटभैय्ये नेताओं से सांठ-गांठ कर हथिया रहा सरकारी जमीन

Nilmani Pal
18 Nov 2021 6:31 AM GMT
शहर का बड़ा बिल्डर अधिकारियों-छुटभैय्ये नेताओं से सांठ-गांठ कर हथिया रहा सरकारी जमीन
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  1. शिकायतों पर कार्रवाई के नाम पर मात्र औपचारिकता ही निभाई जा रही, एफआईआर दिखावे के लिए
  2. बिल्डर, भू-माफिया और दलालों के कारण प्रमुख राजनीतिक पार्टी पर पैसा ले कर पद बांटने का आरोप पार्टी के कार्यकर्ता लगातार लगा रहे
  3. छग का प्रमुख बिल्डर होने का दावा करने वाले के काले कारनामें की संपूर्ण शिकायत पार्टी आलाकमान से विगत दिनों की गई
  4. तथाकथित नंबर वन बिल्डर ने बिना डर के चाहे किसी भी पार्र्टी की सरकार हो अपने दो नंबर के अवैध निर्माण, अवैध कब्जा और शासकीय भूमि पर ले-आउट पास कराने का खेल निरंतर जारी रखा
  5. बेखौफ बिल्डर डॉन माफिया की तर्ज पर बॉडी बिल्डर और बांउसरों को साथ ले कर चलते हैं और अपने ग्राहकों से मिलने से भी परहेज करते हैं
  6. जांच के नाम पर अधिकारी-कर्मचारी को निलंबित कर दोषी को बचाने का चल रहा खेल

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। जनता से रिश्ता ने पिछले दिनों अपने अंक में इस बात का खुलासा किया था कि बड़े बिल्डर अधिकारियों और छुटभैये नेताओं से मिलकर सरकारी जमीन किस प्रकार छल प्रपंच से हथिया लेते हैं। बिल्डर अपने इस प्रकार के अवैधानिक कामों के लिए छुटभैये नेताओं को साथ लेकर चलते थे, लेकिन अब यह देखा जा रहा है कि बिल्डर पार्टी फंड में या पार्टी अध्यक्ष को पैसा देकर पद प्राप्त कर लेते हैं, फिर उनका गोरखधंधा शुरू होता है। अधिकतर राजनीतिक पार्टियों में ये बड़े पदों पर पैसे के बल पर काबिज हो जाते है, और इनका सिर्फ एक ही मकसद होता है सरकारी जमीनों को हथियाना। अपने पद का रौब दिखाकर मनमानी करने लगते हैं। अधिकारी-कर्मचारी को वे अपने रसूख के बल पर अवैध कब्जा को अंजाम देते है। यहीं मामला खत्म नहीं होता वे बात नहीं मानने वाले अधिकारी-कर्मचारी को ट्रांसफर कराने की धमकी तक देते हैं। अधिकतर बिल्डर किसी न किसी पार्टी के बड़े नेताओं के संरक्षण में काम करते है। बिल्डर सरकारी जमीनों पर पहले झुग्गी बस्तियों की तरह लोगों को बसाते है फिर उसे खाली करवा कर उस पर बहुमंजिला इमारत खड़े कर पब्लिक को ऊंचे दामों में बेचते है। देखा जा रहा है कि बिल्डर नेताओं-अधिकारियों के सांठगांठ से पूरा खेल चलता है। नए-नए नेता बने बिल्डर सत्तारूढ़ पार्टी के मंत्री और ओहदेदार लोगों से संपर्क बढ़ाकर अपना कमाल दिखाते हैं। शिकायत करने पर जांच के नाम पर विभाग के किसी कमजोर कड़ी को निलंबित कर दिया जाता है, बाकी रसूखदार अधिकारी और कर्मचारी वहीं जमें रहकर अपने अवैधानिक कार्यों को अंजाम देते रहते है। जैसा कि पिछली बार स्वागत बिहार के मामले में भी ऐसा ही हुआ था, दोषी को बचा लिया गया और निर्दोष को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। आम जनता आज भी अपने कामों के लिए दर-ब-दर हो रहे है।

खाली जमीनों-प्लाटों पर बिल्डरों का कब्जा

रायपुर जिले में पिछले कई सालों से दूसरे की खाली और सरकारी जमीन पर कब्जा कर उसे बेचने का खेल चला आ रहा है। खासकर शहर के आउटर इलाके की खाली जमीन छोटे-बड़े बिल्डरों के निशाने पर है। प्रशासन चाहकर भी इस पर लगाम कसने में नाकाम रही है। हालांकि, कुछ शिकायतों पर नगर निगम अमले ने कार्रवाई की है, लेकिन ये वे जमीन है, जो सरकारी है। आम लोगों की जमीन पर कब्जे की शिकायतों पर न तो पुलिस कार्रवाई कर रहा है और न ही प्रशासन ही कारगर कदम उठा रहा है। पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए बिल्डरों ने सत्तापक्ष के नेताओं को भी साध रखा है। यही वजह है कि करोड़ों की जमीन हथियाने का खेल आउटर इलाके में चल रहा है।

तुरंत लेआउट पास भी हो जाता है

आम जनता को एक मामूली नक्शा पास करना होता है तो सम्बंधित दफ्तरों के चक्कर लगाते महीनो लग जाते हैं लेकिन बिल्डर से नेता बने लोग घर बैठे लेआऊट स्वीकृत करा लेते हैं। शहर के सबसे बड़े बिल्डर जो अपने हर प्रोजेक्ट में जंगल को किसी न किसी रूप में शामिल करता है उसने भी कबीरनगर हाऊसिंग बोर्ड में मकान खरीद कर पीछे रास्ता बनाया जो कि कानूनी रूप से अवैध माना जाता है। एक स्वीकृत ले आउट प्लान के अंदर दूसरा ले आउट प्लान के लिए रास्ता शासकीय जमीन से ले जाने का आरोप भी है। रास्ते की जमीन को दबाकर अपना प्रोजेक्ट खड़ा किया। जिसकी शिकायत भी की गई है लेकिन रसूख के दम पर जांच को आगे बढऩे नहीं दिया।

सिटी मॉल और कचना रोड में भी सरकारी जमीन पर अवैध कब्ज़ा

जनता से रिश्ता को एक पाठक ने बताया कि 36 सिटी माल के पास निर्माणाधीन प्रोजेक्ट में भी सरकारी जमीन दबाने के साथ कचना रोड के रास्ते की शासकीय भूमि छोटे जंगल की भूमि और बड़े झाडों का जंगल अपने प्रोजेक्ट में अवैध रूप में कब्जा लिया। जिसकी उच्च स्तरीय जांच करने की उपरांत ही सच्चाई उजागर हो सकती है। सड्डू में नाले की जमीन पर अतिक्रमण करने की बात सामने आई है। आउटर की जमीनों पर अवैध प्लाटिंग को लेकर सबसे ज्यादा खेल किया जा रहा है। कुछ साल पहले ही गोगांव, गोंदवारा, भनपुरी, सिलतरा में 25 एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन को ग्रीनलैंड में तब्दील करने का पर्दाफाश हुआ था। वहां कई लोगों ने सरकारी और घास जमीन पर अवैध प्लाटिंग और कब्जा कर लोगों को बेचने की कोशिश की थी। इन सभी जगहों की जमीन पर निगम ने बाउंड्रीवाल बनाकर उसे ग्रीनलैंड में तब्दील किया था। जिस कृषि भूमि पर बिना अनुमति के अवैध प्लाटिंग की गई है, खेती की जमीन पर अवैध प्लाटिंग होने पर पूरे क्षेत्र की जमीन को फिर से ग्रीनलैंड में बदला जाएगा। मास्टर प्लान में जो क्षेत्र कृषि या आमोद-प्रमोद का है और वहां अवैध प्लाटिंग की गई है उसे फिर से ग्रीनलैंड में तब्दील किया जाएगा। फर्जी दस्तावेज तैयार कर दूसरों की खाली जमीनों को जानबूझकर बिल्डर विवादों में लाते हैं। जमीन मालिक उस जमीन को खोने के डर से विवश होकर सस्ती दरों पर भी बेचने के लिए मजबूर हो जाता है। ऐसे में मध्यस्थता निभाने के लिए क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि या बड़े छुटभैय्ये नेता आगे आते हैं। उनके द्वारा इन जमीनों को अपने खास लोगों को सस्ती दरों पर दिलवाया जाता है। इस तरह से महंगी जमीन भी सस्ती दर पर भू-माफियाओं को मिल जाती है। ऐसी कई शिकायतें पुलिस के पास पहुंचती है, जिसमें जमीन पर जानबूझकर कब्जा करने या उसके फर्जी दस्तावेज तैयार करने का मामला सामने आया है। पुलिस ऐसे लोगों को चिह्नित जरूर करती है, लेकिन उन पर कार्रवाई करने में सालों लगा देती है। फर्जी रजिस्ट्री से लेआउट का अप्रूवल कराकर बिल्डर ग्राहकों को मकान या जमीन बेच देते हैं और बाद में खरीदार को सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाना पड़ता है। जब तक टाउन एंड कंट्री प्लानिंग द्वारा बड़े कॉलोनाइजरों और बिल्डरों की लेआउट और नक्शे की जांच शुरू करते हैं तब तक ये ग्राहकों को जमीन या मकान बेच चुके होते हैं। पिछले दस से पंद्रह वर्षो के दौरान जितनी भी कॉलोनियों के लेआउट पास हुए हैं, उनकी बारीकी से जांच करने पर काफी अनियमितताएं उजागर होगी।

विभागीय स्तर पर कार्रवाई जीरो

सरकारी जमीन में अवैध कब्जों के सैकड़ों शिकायत नगर निगम, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग, तहसील राजस्व विभाग में होने के बावजूद एकाध केस में कार्रवाई करते हुए अधिकारियों को बलि का बकरा बनाते है। और शेष अधिकारी कर्मचारी को अभयदान दे देते है। सरकारी अधिकारी अपने हाथ के बचाए रखने के लिए कार्रवाई के नाम पर मात्र औपचारिकता ही निभाते है। मामले में अधिकारी-कर्मचारी दोषी साबित कर निलंबित करते है फिर चार-छह महीने बाद बहाल करने के खेल खेलते है। लोगों को लगता है कि हमारी शिकायतों पर कार्रवाई हो रही है, लेकिन यह तो मात्र दिखावा होता जो कार्रवाई के नाम पर अपने साथियों को बचाने का उपक्रम होता है।

सरकार को राजस्व की हानि पंहुचा रहे बिल्डर

जनता से रिश्ता ने पड़ताल में पाया कि राजधानी के एक बड़े बिल्डर नो अपने प्रोजेक्ट के लिए छग हाऊसिंग बोर्ड की कालोनी का मकान तोड़कर अपने ले आउट प्लान में शामिल कर रास्ता बनाने से भी परहेज नहीं किया है। राजधानी रायपुर और उससे लगे आस-पास के इलाकों में सरकारी खाली जमीनों पर कब्जा कर प्लाटिंग और हाउसिंग प्रोजेक्ट डेव्हल्प कर बिल्डर सरकार को राजस्व की हानि पहुंचा रहे हैं। अपनी राजनीतिक रसूख और अधिकारियों से सांठगांठ कर ये भू-माफिया करोड़ों का प्रोजेक्ट लांच कर अपनी तिजोरी भर रहे हैं। सरकारी जमीनों से लगे किसानों की कृषि जमीनों को औने-पौनेे दाम पर खरीद कर पटवारियों व राजस्व अधिकारियों से फर्जी दस्तावेज तैयार कराकर बड़े-बड़े बिल्डर अपना धंधा चमका रहे हैं। ऐसे कई मामले सामने आए जिसमें बिल्डरों ने खरीदे हुए जमीन के बीच में आने वाली सरकारी जमीनों और सड़क व रास्ते के जमीनों को दबा कर अपने प्रोजेक्ट में शामिल कर लिया है। सरकारी जमीन के साथ कई निजी जमीनों की भी कूटरचना कर इन बिल्डरों ने लोगों के साथ धोखाधड़ी की है। शहर से लगे माना, नवा रायपुर, मुजगहन, डूंडा, बोरियाखुर्द, बोरियाकला, सरोना, चंगोराभाठा, डूमरतालाब, गोगांव, गोंदवारा, बिरगांव, भनपुरी, सिलतरा, खम्हारडीह, कचना आदि इलाके की खाली जमीनों पर कब्जा कर प्लाटिंग करने के सौ से अधिक शिकायतें रायपुर और बिरगांव नगर निगम तक पहुंची है जिस पर कार्रवाई भी हो रही है। अवैध प्लाटिंग के मामले में नगरीय निकायों ने कई छोटे-बड़े बिल्डरों और सहयोगियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाए हैं। हालाकि दूसरों की जमीन पर जबरिया कब्जा कर उसे प्लाटिंग कर बेचने की कोशिश करने वाले बिल्डर, उनके पार्टनरों के राजनीतिक रसूख के चलते शिकायतों पर तो पुलिस और नगर निगम ने कार्रवाई की, लेकिन जिस जमीन पर बड़े भू-माफियाओं के नाम जुड़े गए है, उन शिकायतों को जांच के नाम पर या तो रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया या फिर पीडि़त पक्ष को कोर्ट जाने की सलाह देकर जिम्मेदारों ने अपने हाथ खींच लिए।

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