गूगल पर क्रिकेट एप बनाकर बड़े बुकी की एक्सपर्ट टीम बना
क्या है स्पाट फिक्सिंग ?
पहले पूरे के पूरे मैच यानी नतीजे फिक्स किए जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है, अब स्पाट फिक्सिंग से ही काम चल जाता है। एक बुकी ने जनता से रिश्ता को बताया कि अब मैच फिक्स करने की जरूरत नहीं, स्पॉट फिक्सिंग से ही भरपूर कमाई हो जाती है। स्पॉट फिक्सिंग का मतलब है कि मैच के किसी खास हिस्से को फिक्स कर देना। वहीं रायपुर में फैंसी फिक्सिंग काफी चर्चा में आ गया है। इसमें मैच की एक-एक गेंद पर कितने रन बनेंगे, कौन सा बैट्समैन कितने रन बनाएगा, पूरी पारी में कितने रन बनेंगे, इन सब पर सट्टा लगता है।
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। राजधानी में चल रहे वल्र्ड सीरीज़ टी-20 के चलते कई अंतर्राज्यीय बुकीज़ को पुलिस गिरफ़्तार करती जा रही है। मगर फिर भी मैच के रोमांच को देखते हुए ऐसा नहीं लग रहा कि बुकीज़ शहर में कम हुए है या फिर शहर से कही और चले गए है। बल्कि और बड़े बुकीज़ के कदम रायपुर में पड़ चुके है। जिसकी वजह से अब रोड़ सेफ्टी वल्र्ड सीरीज़ टी-20 के सेमी फाइनल और फाइनल मैचों में इसका असर देखने को मिल सकता है। बदलते समय के साथ सटोरियों ने भी सट्टे का तरीका बदल दिया है, अब यह पूरा खेल ऑनलाइन होता है। मीटिंग एप की तरह चल रहे सट्टे के एप का लिंक भेजा जाता है। इसी से बुकी सट्टेबाजों को आइडी देते है। इस पर 25-30 सटोरिए लॉगिन कर एक साथ दांव लगाते हैं। लॉगिन तभी खुलती है जब डिजिटल माध्यम से एक निश्चित रकम का भुगतान कर दिया जाता है। सट्टेबाज टीम की हार जीत, किसी एक खिलाड़ी के शतक, अद्र्धशतक, टीम के 10-10 ओवर में रन, चौके, छक्के, विकेट लेने आदि पर दांव लगाते हैं। मजबूत टीम का भाव हमेशा ही ऊंचा रहता है। ऑनलाइन एप पर सट्टे की शुरूआत होने से डिब्बे का काम लगभग खत्म हो गया है। यह एक मोबाइल नंबर होता था। जो खिलाड़ी को लगातार भाव और स्कोर बताता था। इस नंबर को बुकी की ओर से खिलाड़ी को दिया जाता था। इसी पर फोन करके भाव की जानकारी मिलती थी।
हर एक गेंद का दांव, करोड़ों की कमाई
रोड़ सेफ्टी वल्र्ड सीरीज़ टी-20 के साथ ही शहर में बड़े पैमाने पर सट्टे का कारोबार शुरू हो गया है। पुलिस धरपकड़ शुरू करती है तो सटोरिये अपना ठिकाना बदल देते हैं। आउटिंग के बहाने बाहर जाकर होटल आदि में रुककर सट्टा चलाते हैं। सट्टेबाजी में भाव देने वाले को बुकी और दांव लगाने वाले को सट्टेबाज कहा जाता है। सट्टेबाजी की भाषा में खाने और लगाने के भी अलग-अलग अर्थ होते हैं। इन्हीं दोनों शब्दों से करोड़ों के वारे-न्यारे किए जाते हैं। मजबूर टीम पर रुपये लगाने पर लगाया और कमजोर टीम के दांव खाने को खाना कहते हैं। मोबाइल पर गूगल एप के जरिये गेम ले रहे थे। सटोरियों ने ही अपना एक नया एप बनाया है। इस एप की मदद से मोबाइल पर लाइव क्रिकेट नजर आता है, इसमें स्क्रीन पर केवल स्कोर ही दिखता है। इस वजह से इसमें टीवी से दो-तीन गेंद पहले स्कोर अपडेट हो जाता है। इसी का फायदा उठाकर सटोरिये एक-एक गेंद का दांव लेकर लाखों कमाते हैं।
कैसे चलता है सट्टेबाजी का धंधा
संचार के नए साधनों के आने के साथ ही सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग इतना बड़ा धंधा हो गया है कि सोचा नहीं जा सकता। इसका नेटवर्क बुहत ही व्यापक है। जिस तेजी से मैच में स्कोर बदलाता है, उससे यह साफ है कि बुकी के एजेंट क्रिकेट मैदान में मौजूद रहते हैं। वहां रहकर वे हर गेंद का स्कोर उसी समय अपडेट करते हैं। टीवी और दूसरे लाइव प्रसारण में सेटलाइट की मदद से कवर करने से प्रसारित करने में कुछ समय लगता है। इस वजह से लाइव प्रसारण में जब दो बॉल दिखाई जाती है, तब तक यह एप मोबाइल की स्क्रीन पर पांच गेंद तक का स्कोर बता देता है।
खाईवाल स्टेडियम में बैठकर ऑन लाइन कटिंग
रायपुर परसदा स्टेडियम में चल रहे रोड सेफ्टी वर्ल्ड सीरीज में देश के बड़े खाईवाल स्टेडियम में बैठकर ऑन लाइन कटिंग ले रहे हैं। स्टेडियम में मैच और टीवी के प्रसारण में 35-40 सेकंड(1 गेंद)का अंतर होता है। जब गेंद फेंके जाने के 35 सेकंड बाद टीवी पर दिखाई देता है। उस समय तक या तो छक्का पड़ चुका होता है या चौका। विकेट भी गिर चुका रहता है। इसी 35 सेकंड के अंतर को सटोरियों ने कमाई का जरिया बनाया है। मैदान में बैठा एजेंट गेंद, ओवर, टीम से लेकर खिलाडिय़ों के नाम से लगातार मोबाइल पर मैसेज करता है। उसमें दांव लगाने के लिए सिर्फ 30-32 सेकंड मिलते है। जिसका दांव सही हुआ, उसे पैसा दिया जाता है। मैच में दांव लगाने का सटोरिए वाट्सएप से लेकर सोशल मीडिया और एप पर ग्रुप बनाकर रखते हैं। सट्टा लगाने वालों से एडवांस में पैसा जमा कराया जाता है। ताकि बाद में पैसा के लिए किसी तरह का विवाद न हो।
साइबर सेल टीआई रमाकांत साहू ने बताया कि मुंबई, दिल्ली और गोवा के ज्यादातर बड़े खाईवाल लाइव मैच में ही दांव लेते हैं। इससे उन्हें मोटी कमाई होती है। किसी गेंद पर 10 लोगों ने दांव लगाया, जिसमें से सिर्फ 2 का दांव ही सही निकलने पर 8 लोगों का दांव गलत हो जाता है। उन आठ लोगों का पैसा खाईवाल के पास आ जाता है। स्टेडियम में बैठे एजेंट को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती है। उसे अपनी आईडी या ग्रुप में सिर्फ एक मैसेज करना होता है। उसी में पूरा दांव चलता है।
तीन या उससे ज्यादा सटोरिए बैठते हैं स्टेडियम में
एक मैच में तीन या उससे ज्यादा सटोरिए व एजेंट स्टेडियम में बैठते है। इसमें कोई टीम पर दाव लेता है, तो कोई गेंद, ओवर और खिलाडिय़ों पर। लगातार अलग-अलग तरह का दाव लिया जाता है। सभी चीजे की एप या ग्रुप में होता है। हिसाब करने के लिए अलग लोग होते हैं, जो घर पर बैठे होते हैं। वे ग्रुप को देखकर पूरा हिसाब करते हैं।
सटोरियों के एजेंट दूसरे राज्यों के
पुलिस के अनुसार ज्यादातर बड़े बुकी महाराष्ट्र्र, दिल्ली, गोवा और राजस्थान के है। ये मैदान में लाइव मैच देखते हुए हर शहर में कटिंग करते हैं। हर शहर में उनके एजेंट होते हैं। उनके माध्यम से पूरा खेल चल रहा है। एजेंट ही स्टेडियम में टिकट लेकर मैच देखने जाते है। वहीं से पूरा खेल खेलते है। एजेंटों से खाईवाल एडवांस में पैसा लेते हैं। ताकि उन्हें धोखा न दे सके। वहीं सट्टा खेलने वाले भी एडवांस में पैसा देते है। जितना पैसा खाते में जमा करते है, सटोरिए उतने तक का ही दांव लगा सकते हैं। उससे ज्यादा का दांव नहीं लगा सकते। पैसा जमा करने के बाद ही उन्हें पासवर्ड और आईडी दी जाती है, जिसमें सट्टा चलता है।
क्रिकेट एप से चलता सट्टा कारोबार
पिछले तीन दिनों से की जा रही धर पकड़ के बाद पुलिस की जांच में पता चला कि आरोपी गूगल पर क्रिकेट लाइव लाइन एप बनाकर बड़े बुकी की एक्सपर्ट टीम बनाया गया। इसमें स्कोर टीवी और अन्य लाइव दिखाने वाले माध्यम से ज्यादा तेजी से बदलता है। एप में यदि 4 बॉल फेंका छक्का या विकेट गिरना दिखाता है तो टीवी में उसकी तीन गेंद बाद दिखाता है। यानी टीवी से तीन गेंद पहले स्कोर बताता है। इसमें सट्टा का भाव भी दिखाता है। जो मैच के उतार-चढ़ाव के अनुसार कम ज्यादा होता रहता है। खाईवाल इसमें तीन सेशन में बांटकर दांव लेते है। पहला सेशन 1 से 6 ओवर में कितना रन बनेगा। दूसरा 7 से 12 ओवर और तीसरा 13 से 20 ओवर में टीम को कितना रन बन सकता है। इसके अलावा हर गेंद, हर ओवर, बल्लेबाज, गेंदबाज के ऊपर दांव लिया जाता है। एप की खासियत यह है इसमें वाइस भी है। हर गेंद पर स्कोर बोला जाता है।
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