लोकआयोग में सामाजिक कार्यकर्ता ने दर्ज कराई है शिकायत
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड के तालपुरी प्रोजेक्ट में हुए घोटाले पर लोक आयोग ने संज्ञान लिया है। लोकायुक्त ने घोटाले को लेकर एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत पर दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा है। तालपुरी प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर अनियमितता सामने आई थी। कैग रिपोर्ट में भी 115 करोड़ के खर्च को लेकर सवाल खड़े किए गए थे। अनियमितताओं पर कई जांच हुई लेकिन लीपा पोती कर सारे घोटालों पर पर्दा डाल दिया गया। अनियमितता करने वाले अधिकारी पदोन्नत होते रहे लेकिन कार्रवाई शिफर रही।
तालपुरी घोटाला ऐसे शुरू हुआ
भिलाई के रुआबांधा में तालपुरी प्रोजेक्ट को इंटरनेशनल कॉलोनी के नाम से प्रचारित कर 2008 से जमकर बुकिंग करवाई गई. प्रस्तावित कॉलोनी में करीब 1800 आवासों का निर्माण किया गया. जिसमें करीब 1800 मकान ईडब्लूएस के और शेष 1800 सामान्य एलआईजी, एमआईसी व एचआईजी टाइप के। ईडब्लूएस के आवासों को परिजात, व अन्य सामान्य में गुलमोहर, लोटस, रोज, लिली, टिली, बीजी, डहलिया, आरर्किड, जूही, मोंगरा टाइप के आवास बनाए गए। इस पर लगभग 550 करोड़ रुपए खर्च किए गए, लेकिन इसमें सर्विस टैक्स और खऱाब गुणवत्ता की शिकायत मिलने पर सीएजी ने 2012 में जांच के बाद एक रिपोर्ट तैयार की जो मार्च 2013 में सार्वजनिक हुई।
इस रिपोर्ट के अनुसार करीब 115 करोड़ रुपए का घोटाले पर प्रश्न खड़ा किया गया था ! लेकिन जानकारों के अनुसार ये घोटाला इससे कहीं ज्यादा का है ! सीएजी की रिपोर्ट में निर्माण का काम एजेंसी मेग्नॉटोस कोलकाता को जिस दिन दिया गया, उसी दिन मेग्नॉटोस ने एसएस निर्माण नामक एजेंसी को काम दे दिया। इन दोनों एजेंसियों ने अधुरा निर्माण कर गड़बडिय़ां की ! जिसमें ए और बी टाइप के जनसामान्य के आवासों के निर्माण में अलग-अलग रेट कोट किया गया। लेकिन बाद में जब मोंगरा व जूही आवासों का निर्माण हुआ, उसमें भी ए टाइप को छोड़ बी टाइप का रेट कोट किया गया। जबकि पहले ए टाइप के निर्माण में 19 प्रतिशत तक का डीस्काउंड था, जो बाद में बिना किसी कारण के नहीं दिया गया। इस डिस्काउंट की आड़ में इससे ही करीब 90 करोड़ रुपए का घोटाला किया गया. प्रोजेक्ट के टेंडर जारी होने के पहले ना तो उसकी प्रशासकीय स्वीकृति ली गयी और ना ही टेक्निकल और लेआउट अनुमति ली गई।
नियमों को ताक में रखकर भ्रष्टाचार करने के लिए हाऊसिंग बोर्ड के तत्कालीन अधिकारियों ने बिना हृढ्ढञ्ज स्वीकृति के इस प्रोजेक्ट का टेंडर जारी किया था. हाऊसिंग बोर्ड के भ्रष्ट अफसरों ने ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के लिए टेंडर अनुबंध में क्लास 3 सी के प्रावधान पूरी तरह से हटा लिए थे. तालपुरी प्रोजेक्ट में गोलमाल यही तक सीमित नहीं था बल्कि ठेकेदार को सिक्युरिटी एडवांस और मोबलाइजेशन एडवांस भी बगैर किसी वैधानिक प्रक्रिया को पूर्ण किये जारी किया गया. आमतौर पर इस तरह की प्रक्रिया को अपनाने से पहले प्रोजेक्ट का फिजिकल वेरिफिकेशन के साथ साथ मटेरिटयल वेरिफिकेशन की प्रक्रिया पूर्ण कराई जाती है. लेकिन अफसरों ने इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया. समय पर काम नहीं करने से टाइम एक्सटेंशन बढ़ाने के बहाने ठेकेदार को अधिक भुगतान कर सीधा फायदा पहुंचाया गया !
डबल वसूली में कार्यपालन अभियंता की भूमिका
जब पांच साल बाद भी तालपुरी प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ तो बैंक लोन लेने वाले हितग्राहियों ने हाऊसिंग बोर्ड के विरुद्ध दबाव बनाना शुरू किया. ऐसे में हाउसिंग बोर्ड ने यथास्थिति मकान देने की योजना निकाली. इस दौरान तत्कालिन कार्यपालन अभियंता ने सामान परिस्थिति के मकानों का अलग-अलग मूल्य निर्धारण करवाकर भारी घोटाला किया।इसके अलावा कार्यपालन अभियंता ने हितग्राहियों से जानबूझकर नियम विरुद्ध सर्विस टैक्स डबल वसूली की। उनके विरुद्ध विभागीय जांच भी हुई। लेकिन विजलेंस अधिकारी केडी दीवान जो खुद भ्रष्टाचार के मामले में बर्खास्त होने के साथ जेल गए। उन्होंने सांठगांठ कर जांच दबवा दी।
फाइलें कर दी गईं गायब
जब तालपुरी घोटाले की आंच बढऩे लगी तो बाद में तत्कालीन मुख्य संपदा अधिकारी सीएस बाजवा की अध्यक्षता में भी एक जांच कमेटी गठित की गई। जिसकी रिपोर्ट भी बनी. लेकिन यही रिपोर्ट वाली फाइलें उपायुक्त आरके राठौर तक पहुंचने के बाद हाउसिंग बोर्ड दफ्तर से गायब हो गई. हेराफेरी के लिए फर्जी बिल और फर्जी स्टॉक को हथियार बनाया गया था. काली कमाई का एक बड़ा हिस्सा राजनीतिक चंदे और दो रसूखदार लोगों ने हड़प लिया. घोटाले की शेष रकम हाऊसिंग बोर्ड के अधिकारीयों के पास चली गई. इस घोटाले के संदिग्ध आरोपी प्रमोशन पाकर एडिशनल कमिश्नर बन गए है. इस मामले में हैरान करने वाली बात यह है कि आरोपी अधिकारी अपने ही काले कारनामों की जांच कमेटी में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से शामिल रहते थे. जिसके कारण ना केवल जांच प्रभावित होती रही बल्कि मामला ही दबा दिया गया।
एनएमडीसी के नियानार प्रोजेक्ट के लिए खर्चे राशि की वसूली कब?
एनएमडीसी ने जगदलपुर के नियानार में बनने वाले अपने महत्वाकांक्षी हाउसिंग प्रोजेक्ट छग हाउसिंग बोर्ड से छिन लिया था। इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए 2018 में स्थल चयन के साथ प्रारंभिक तैयारियां शुरू हो गई थी. लेकिन बोर्ड के लचर कार्य प्रणाली के चलते एनएमडीसी ने इस प्रोजेक्ट को बोर्ड से छिन लिया। धरातल पर नहीं उतार सके। इस योजना के लिए हाउसिंग बोर्ड ने 26189826.00 रुपए खर्च कर डाले। इन खर्चों की स्वीकृति आखिर कहां से मिली और इसकी भरपाई बोर्ड कहां से करेगा? इसे लेकर हाउसिंग बोर्ड और सरकार दोनो ही खामोश हैं। खर्चेगए रकम की वसूली के लिए बोर्ड द्वारा अबतक काई कार्रवाई नहीं की है। एनएमडीसी ने नगरनार स्टील संयंत्र के लिए जगदलपुर के नियानार में एक बड़े हाउसिंग प्रोजेक्ट तैयार करने के लिए छग हाउसिंग बोर्ड को निर्माण एजेंसी नियुक्त किया था, लेकिन हाल ही में एनएमडीसी ने 1200 करोड़ की इस महत्वाकांक्षी योजना से छग हाउसिंग बोर्ड को अलग कर दिया। एनएमडीसी ने इस योजना की 2016 में घोषणा की थी। हाउसिंग बोर्ड ने हैदराबाद में इसके प्रेजेन्टेशन भी दिया था जिसके बाद उसे एनएमडीसी ने निर्माण एजेंसी नियुक्त किया था। हाथ से गवां चुके इस प्रोजेक्ट के लिए हाउसिग बोर्ड के अधिकारियों ने पानी की तरह रुपए खर्च किए। सूचना के अधिकार के तहत जुटाई गई जानकारी में जगदलपुुर संभाग के कार्यपालन अभियंता के अनुसार 2016 से 2020 तक यात्रा व्यय होटल, खाना, गाडिय़ों व बैठकों में ही 26189826.00 रुपए फूंक दिए गए और इसके बाद भी प्रोजेक्ट हाथ से खिसक गया।
किसकी मर्जी या आदेश से खर्च किया गया
सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत गृह निर्माण मंडल जगदलपुर संभाग से जो सूचना प्राप्त हुई है उसके अनुसार छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल ने एनएमडीसी जगदलपुर हाउसिंग प्रोजेक्ट में बेवजह 2 करोड़ 60 लाख 898 खर्च किया गया। सवाल यह है प्रोजेक्ट में इतनी बड़ी रकम किस अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में और किसकी मर्जी से यह रकम को सिर्फ प्रोजेक्ट को हवा में लाने के लिए ही उपयोग किया गया, हद तो तब हो गई जब प्रोजेक्ट का कोई निर्माण नहीं हुआ।
बगैर टेंडर/किसकी अनुमति से एक करोड़ 68 लाख का पेमेंट
आर्किटेक्ट ग्रुप को बिगर टेंडर के और बगैर किसी लेखा परीक्षण (ऑडिट) के एक करोड़ 68 लाख रुपए का पेमेंट कर दिया गया, होटल और ट्रैवलिंग खर्च के नाम पर 25 लाख 40 हजार लगभग खर्च करती है । हाउसिंग बोर्ड सबसे घाटे में चलने वाला सरकारी उपक्रम है और राज्य सरकार के लिए सफेद हाथी साबित घोषित हो चुका है । अधिकारी जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा मनमानी ढंग से उपयोग कर हाउसिंग बोर्ड का प_ा बताए जा रहे हैं अब सवाल यह उठता है कि 2 करोड़ 18 लाख जितनी बड़ी रकम किससे और कैसे सरकार वसूल करेंगे। बिगर की अनुमति के बगैर किसी जांच के बगैर किसी परमिशन के इतनी बड़ी रकम का खर्च कर देना हाउसिंग बोर्ड के हित में नहीं हुआ है।