रायपुर। अखिल विश्व गायत्री परिवार के तत्वाधान में राजधानी रायपुर में विभिन्न प्रबुद्ध वर्गों एवं धार्मिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ स्वाध्याय मंडल की सत्संग बैठक का शुभारंभ 10 अक्टूबर रविवार को बोरियाखुर्द रायपुर में किया गया। बैठक का शुभारंभ शांतिकुंज हरिद्वार से पधारे छत्तीसगढ़ समन्वयक श्री सुखदेव निर्मलकर एवं श्री अमरलाल नाग ने दीप प्रज्वल्लन कर किया। गायत्री परिवार के जिला समन्वयक लच्छू राम निषाद ने बताया कि स्वाध्याय मंडल का मुख्य उद्देश्य यह है कि इसमें अनेक धार्मिक व सामाजिक संगठन के सदस्य व प्रबुद्धजन व युवा वर्ग प्रत्येक रविवार को सायंकाल में एक ही स्थान में एक साथ बैठकर गुरुदेव के साहित्य एवं अन्य सत्साहित्य, धर्मिक प्रसंग, प्रेरणाप्रद प्रसंग, महापुरषो की जीवनी, नैतिक व पौराणिक कहानियों एवं अच्छे विचारों को सभी लोग आपस मे साझा करेंगे। आज के इस भागदौड़ की जिंदगी में घर परिवार के सदस्य आपस मे एक साथ बैठक ठीक से बात भी नही कर पाते। इसी को पुनर्जीवित करने के लिए स्वाध्याय मंडल एक अहम भूमिका निभाएगा।
ज्ञान देना या ज्ञान का प्रचार – प्रसार करने के लिए ज्ञानी होना पड़ेगा, ज्ञानी बनने के लिए अध्ययन करना होगा, अध्ययन अब या तो पढ़कर होगा या सुनकर होगा। प्राचीन काल में श्रुति का उपयोग अधिक होता था। एक विशेष वर्ग बना दिया गया था जो कि वेद, पुराण आदि धर्मग्रंथों को सुनकर मुखस्थ कर लेता था तथा आने वाली पीढ़ी को फिर सुनाकर कंठस्थ करा देता था। बाद में लिपि की आवश्यकता महसूस की गया। ताम्र पत्र पर वेद आदि ग्रंथों को लिखा जाने लगा। इसके बाद मुद्रण की आवश्यकता महसूस की गयी। इस प्रकार विकास का क्रम आगे बढ़ा। लेकिन यह विकास का क्रम आगे बढ़ाने में किस कारक ने मह्त्त्वपूर्ण भूमिका निभाई या उत्प्रेरक का कार्य किया? निश्चित रूप से इसमें स्वाध्याय का ही नाम आएगा। यदि मानव स्वभाव ज्ञान प्राप्ति की तरफ उत्तरोत्तर आगे नहीं बढ़ता तो आज जहाँ पर हम हैं वहां पर नहीं पहुँचते। स्वाध्याय में चिंतन, मनन तथा श्रवण इन बातों का भी समावेश होना चाहिए। अब यदि चिंतन, मनन तथा श्रवण करना है तो समूह की आवश्यकता पड़ेगी।इसके लिए एक स्वाध्याय समूह का निर्माण करना पड़ेगा। जीवन जीने का सही तरीका सिखाने के लिए पहले अपने में सही तरीके का विकास करना पड़ेगा। आज का समाज भोग-विलास में मस्त है. दूसरे को देखने की संवेदना समाप्त हो गयी है। केवल अपने तक ही सोच रह गयी है। किस प्रकार अन्य को गिराया जाए इसी में ध्यान केन्द्रित है। मानव-समाज का उत्थान हो ? मानव – मानव से प्रेम करे, इसकी कल्पना करने के लिए अभी किसी के पास समय नहीं है। स्वाध्याय का अर्थ अब काफी व्यापक हो गया। धर्मग्रंथो का अध्ययन समूह में करना तथा यह सुनिश्चित करना कि आज हमने क्या सीखा जिससे कि समाज का भला हो। हम क्या सोच रहे हैं? हम किस बात से डर रहे हैं? हम किस तरफ जा रहे है इत्यादि बातें भी हमारे स्वाध्याय का हिस्सा बने। बच्चों में आजकल नैतिक गुणों की कमी आ रही है। बच्चों में नैतिक गुणों का विकास हो – इसके लिए भी स्वाध्याय बच्चों के साथ बैठकर किया जा सकता है। स्वाध्याय का जीवन निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। स्वाध्याय से व्यक्ति का जीवन, व्यवहार, सोच और स्वभाव बदलने लगता है।
स्वाध्याय मंडल की बैठक के शुभारंभ के अवसर पर सर्वश्री सी.पी. साहू, लच्छुराम, गजेंद्र तिवारी, एन. के. शुक्ला, लक्ष्मण प्रसाद साहू, रुद्र कुमार साहू, लेखराम साहू, अनन्त साहू, उमाशंकर, कृष्णकुमार, विनय निगम, राजू देवांगन व अनोखी निषाद सहित अनेक प्रबुद्धजन शामिल थे।