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सुप्रीम कोर्ट ने व्हाट्सएप को दिए 5 अखबारों में विज्ञापन देने के निर्देश

Nilmani Pal
2 Feb 2023 2:27 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने व्हाट्सएप को दिए 5 अखबारों में विज्ञापन देने के निर्देश
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दिल्ली। व्हाट्सऐप की प्राइवेसी पॉलिसी 2021 के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि व्हाट्सऐप इस अंडरटेकिंग का व्यापक प्रचार करे कि लोग उसकी 2021 की पॉलिसी मानने को फिलहाल बाध्य नहीं हैं.

व्हाट्सऐप ने कोर्ट में इस आशय का ऐलान भी किया कि ना केवल लोग बाग 2021 की उसकी नीति मानने को बाध्य हैं बल्कि नए डेटा कानून आने तक एप के जरिए उनका काम भी प्रभावित नहीं होगा.वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस आश्वासन को रिकॉर्ड पर ले लिया कि मार्च में संसद के पटल पर नया डेटा प्रोटक्शन बिल लाया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस केएम जोसफ की अगुआई वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने आदेश दिया कि राष्ट्रव्यापी प्रसार वाले पांच अखबारों में इस बाबत कम से कम दो बार फुल पेज विज्ञापन दिए जाएं. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संसद के अगले सत्र में इस बाबत नया विधेयक पेश किया जाएगा. तब तक इंतजार करने में कोई हर्ज नहीं है.

जस्टिस के एम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सी टी रवि कुमार की पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान वाट्सएप ने कोर्ट को बताया कि वो उपभोक्ता के कौन से मोबाइल नंबर व्हाट्सऐप में कब रजिस्टर्ड हुए और किस तरह का मोबइल एप वो ऑपरेट करते है इसकी ही जानकारी साझा की जाती है. इसके अलावा वो और कोई जानकारी साझा नहीं करते. वैसे पांच साल पहले 2018 में हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक और व्हाट्सऐप से पूछा था कि वो क्या- क्या जानकारियां आपस में और तीसरे पक्ष से साझा करते हैं? पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा कि 31 जुलाई को उन्होंने श्री कृष्णा कमिटी बनाई है. कमिटी की रिपोर्ट आने के बाद तय करेंगे कि कानून लाना है या नहीं. भारत के नागरिकों के साथ दूसरे देशों के नागरिकों से भेदभाव नहीं किया जा सकता. देश में भी वही प्राइवेसी पॉलिसी हो जो दूसरे देशों में है. इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत नहीं बल्कि विधायिका के हस्तक्षेप की जरूरत है.

निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताने के नौ जजों के संविधान पीठ के फैसले के बाद व्हाट्सऐप का डाटा फेसबुक को शेयर करने के खिलाफ दाखिल याचिका पर पांच जजों की संविधान पीठ में सुनवाई हुई थी. इससे पहले हुई सुनवाइयों में सुप्रीम कोर्ट के सामने केंद्र सरकार ने निजी कंपनियों के लोगों के पर्सनल डेटा शेयर करने का विरोध किया था.- केंद्र ने कहा कि डाटा शेयर करना जीने के अधिकार के खिलाफ है.पर्सनल डाटा संविधान के आर्टिकल 21 राइट टू लाइफ यानी जीने के अधिकार का अभिन्न अंग है. टेलीकाम कंपनियां या सोशल नेटवर्किंग कंपनियां आसानी से किसी उपभोक्ता का डेटा तीसरे पक्ष को शेयर नहीं कर सकती और अगर कंपनियां उपभोक्ता के करार का उल्लंघन करती हैं तो सरकार को दखल देना होगा और कानून बनाना होगा. दरअसल सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि ये निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस केएम जोसफ की अगुआई वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने आदेश दिया कि राष्ट्रव्यापी प्रसार वाले पांच अखबारों में इस बाबत कम से कम दो बार फुल पेज विज्ञापन दिए जाएं. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संसद के अगले सत्र में इस बाबत नया विधेयक पेश किया जाएगा. तब तक इंतजार करने में कोई हर्ज नहीं है.

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