छत्तीसगढ़

उप निरीक्षक को सेवानिवृत्ति तक नहीं मिला प्रमोशन!

Nilmani Pal
13 Dec 2021 5:13 AM GMT
उप निरीक्षक को सेवानिवृत्ति तक नहीं मिला प्रमोशन!
x
  1. विभागीय अधिकारियों ने पुलिस उप-महा निरीक्षक के आदेश को भी नहीं दी तवज्जो
  2. पदोन्नति क्रम में होने के बाद भी विभाग ने की अनदेखी

रायपुर (जसेरि)। लोगों को उत्पीडऩ से बचाने वाला पुलिस विभाग के उप निरीक्षक अपने ही विभाग के उच्च अधिकारियों की अनदेखी और सह-कर्मियों की लापरवाही के चलते प्रमोशन से वंचित रह गया। पदोन्नति क्रम में होने, पुलिस महानिदेशक द्वारा अनुमोदन और हाईकोर्ट के निेर्देश के बावजूद पीडि़त उप निरीक्षक को आज तक पदोन्नति लाभ नहीं मिल सका है। पुलिस निरीक्षक के पद से सेवानिवृत मालिक राम वर्मा सेवाकाल में मिलने वाली दो पदोन्नति से वंचित रह गए। पदोन्नति के लिए विभागीय अधिकारियों से गुहार लगाने के बाद भी उसे न्याय नहीं मिला। अंत में उसने हाईकोर्ट की शरण ली जहां प्रकरण की सुनवाई के बाद कोर्ट ने विभागीय नियम कानून के तहत पदोन्नत करने का आदेश जारी किया, जिसके बाद भी पीडि़त को सेवाकाल में न तो पदोन्नति का लाभ मिला और ना ही सेवानिवृत्ति पश्चात किसी तरह की राहत मिली है। विभाग के अधिकारियों ने बड़ी चतुराई से वर्ष 2011 के पूर्व प्रभावशील नियम के तहत उपनिरीक्षक को सूबेदार बना दिया जबकि दोनों ही पद समकक्ष एवं समान वेतन वाला पद है। मालिक राम वर्मा ने लिखित दस्तावेज देकर बताया कि पुलिस विभाग में पदोन्नति के लिए वर्ष 2011 में योग्यता -सह-वरिष्ठता आधारित नया पदोन्नति नियम एसओपी 22/ 2011 लागू हुआ जो कि 23 मई 2011 से 9 अप्रैल 2012 तक प्रभाव सील रहा।

छग शासन सामान्य प्रशासन विभाग मंत्रालय के परिपत्र अनुसार एसीआर लिखने का समय प्रति वर्ष माह अप्रैल से माह जून तक निर्धारित है एसीआर पदोन्नति के लिए आवश्यक है इसलिए उसी वर्ष का डीपीसी माह जुलाई से दिसंबर के मध्य की जाकर प्रतिवर्ष आगामी 1 जनवरी तक योग्यता सूची जारी करने का नियम है यदि किन्ही कारणों से उस वर्ष 2011 की डीपीसी आगामी वर्ष में कभी भी किया जाता है तो उस वर्ष की योग्यता सूची के लिए उस वर्ष में प्रभाव सील नियम लागू होंगे। इस प्रकरण में योग्यता वर्ष 2011 की डीपीसी विलंब से 2012 में की जाकर योग्यता सूची वर्ष 2011 जारी की गई है। इस प्रकार एस ओ पी 22/ 2011 के आधार पर निरीक्षक पद पर पदोन्नति की जाना प्रावधानित है किंतु विभाग द्वारा एसओपी 22/ 2011 में निर्धारित नियमानुसार निरीक्षक पद पर न किया जाकर सूबेदार पद पर पदोन्नत किया गया जबकि सूबेदार का पद एवं धारित उप निरीक्षक का पद समान पद एवं वेतनमान का है जो पदोन्नति ही नहीं था बल्कि निरीक्षक पद पर पदोन्नत किया जाना था जो नहीं किया गया। वहीं अपात्र कर्मचारियों को निरीक्षक पद पर पदोन्नत किया गया जो अपात्र होते हुए भी निरीक्षक के पद पर बने रहे और यही अपात्र कर्मचारी शासन के आदेश दिनांक 14 सितंबर 2021 को उप पुलिस अधीक्षक के पद पर पदोन्नत हो गए जबकि एसओपी 22/ 2011 में उप निरीक्षक एवं सूबेदार पद से निरीक्षक पद पर पदोन्नति प्रावधानित है इस प्रकार अपात्र पुलिस कर्मियों को निरीक्षक पद पर पदोन्नति दे दी गई तथा अभ्यावेदक श्री वर्मा जो योग्यता धारी और पात्र है जिसे निरीक्षक पद पर पदोन्नत नहीं किया गया इस आदेश के विरुद्ध श्री वर्मा ने 24 जुलाई 2012 से लगातार अभ्यावेदन विभाग में प्रस्तुत कर निरीक्षक पद पर पदोन्नति चाहा, जिसका वर्ष 2018 तक कोई निर्णय नहीं हो पाया । इस प्रकार न्याय पाने हेतु अभ्यावेदक द्वारा माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर में याचिका दायर किया गया जिसमें हाईकोर्ट ने 90 दिनों में नियम सहित प्रकरण निर्णित करने के लिए आदेशित किया, जिस पर डीजीपी द्वारा 2 फरवरी 2019 को मनगढ़ंत तथ्य लेख किया गया कि चूँकि योग्यता वर्ष 2011 की डीपीसी 2012 में की गई है। इसलिए 2012 का नियम लागू किया गया है इसलिए 2011 के नियम का लाभ नहीं दिया गया। इस प्रकार बिना नियम के प्रकरण नस्तीबद्ध करने का निर्णय लिया गया।

उक्त निर्णय के विरुद्ध अभ्यावेदक श्री वर्मा द्वारा 19 दिसंबर 2019 को डीजीपी के समक्ष पुनर्विचार अभ्यावेदन प्रस्तुत कर नियम सहित निर्णय चाहा गया, जिसमें 9 वर्ष से पेंडिंग प्रकरण को डीजीपी द्वारा विधिवत निर्णय दिनांक 24 फरवरी 2020 को पारित किया गया जो इस प्रकरण के नोटशीट पृष्ठ 32 पर मौजूद है किंतु कार्यालय अधिकारी कर्मचारियों द्वारा आज तक पदोन्नति आदेश की प्रति अभ्यावेदक श्री वर्मा को उपलब्ध नहीं कराई गई जिससे अभ्यावेदक का वेतन निर्धारण निरीक्षक एवं उप पुलिस अधीक्षक पद पर नहीं हो पाया है प्रकरण में श्री वर्मा को दिनांक 8 जुलाई 2011 से निरीक्षक एवं 18 जुलाई 2016 से उप पुलिस अधीक्षक पद की पात्रता है। पीडि़त के अनुसार सामान्य प्रशासन विभाग के नियम अनुसार प्रतिवर्ष डीपीसी का नियम है तथा प्रकरण में डीपीसी कभी भी हो, चूँकि डीपीसी वर्ष 2011 है, इसलिए वर्ष 2011 की डीपीसी के लिए 2011 के प्रभावशील नियम एसओपी 22/2011 ही लागू होंगे, चाहे डीपीसी कभी भी की जावे। डीपीसी की बैठक दिनांक का नियम लागू नहीं होता, इसलिए डीजीपी. द्वारा दिनांक 24 फरवरी 2020 को नोटशीट पृष्ठ 32 पर नियम अनुरूप निर्णय दिया गया है, जिस पर विभाग अमल नहीं कर रहा है। पीडि़त सेवानिवृत्त निरीक्षक ने मुख्यमंत्री को भी हालात से अवगत कराते हुए न्याय की मांग की है।



Next Story