छत्तीसगढ़

स्टूडेंट्स को आदिवासी परंपराओं को निभाने की दी गई प्रेरणा

Nilmani Pal
6 Nov 2024 11:15 AM GMT
स्टूडेंट्स को आदिवासी परंपराओं को निभाने की दी गई प्रेरणा
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रायगढ़। जिले के सुदूर आदिवासी अंचल स्थित ग्राम जोबी के शहीद वीर नारायण सिंह शासकीय महाविद्यालय में बुधवार को एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें आदिवासी जाति, जनजातियों के योगदान एवं उनकी सांस्कृतिक धरोहरों, परंपराओं, विशेषताओं, रीति-रिवाज और त्योहारों पर विस्तार से चर्चा की गई। आमंत्रित अनुभवी वक्ताओं ने अपने ज्ञान का प्रकाश बिखेरा और अतिथियों ने आदिवासी परंपराओं को निभाने की प्रेरणा दी।

उद्घाटन प्राचार्य श्री रविंद्र कुमार थवाईत ने किया, उनके साथ अतिथियों और वक्ताओं ने मां सरस्वती की आराधना की। छात्राओं में कु. धनेश्वरी, रागिनी और प्रिंसी ने छत्तीसगढ़ महतारी की स्तुति कर सभी का अभिवादन किया। तदोपरांत थवाईत ने आगंतुकों का आभार प्रकट कर आदिवासी जातियों के योगदान और उनकी संस्कृति की महत्ता पर संक्षेप में टिप्पणी की। उनके बाद, विशेष रूप से प्रशिक्षण प्राप्त सहायक प्राध्यापक एवं कार्यक्रम संयोजक श्री योगेंद्र कुमार राठिया सहित जिला मुख्यालय से आमंत्रित विभिन्न वक्ताओं ने मंच संभाला और अपनी बातें रखीं। इस दौरान राठिया ने कंवर समाज के वीरों सहित 1855-56 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध हुए संथाल विद्रोह के ऐतिहासिक घटनाक्रम, भील जनजाति के धनुष बाण कौशल और युद्ध कला की प्रसिद्धि पर जोशीला व्याख्यान दिया। बढ़ते क्रम में जिला मुख्यालय से विशेष रूप से आमंत्रित वक्ता, श्री सुरेंद्र पांडेय ने सभी जाति एवम जनजातियों को समतुल्य एवम महान बताते हुए एक पंक्ति में कहा की “जनजातियां कदापि पिछड़ी नहीं है, अपितु वे हमेशा से सभ्य समाज का प्रतिनिधित्व करती आ रही हैं।“ बाहर के लोग ही इन बातों को समझते नहीं, हमें मिल कर इन भ्रांतियों को दूर करना है। इस ओर उन्होंने इंदौर ओर नागपुर जैसी बड़ी नगरियों को जनजातीय समाज द्वारा बसाए जाने के उदाहरण भी प्रस्तुत कर अपने वक्तव्य की पुष्टि की। तदोपरान्त शासन द्वारा जाति एवं जनजातियों के लिए चलाई जा रही उज्जवला और प्रधानमंत्री आवास योजना आदि के बारे में विस्तार से समझाते हुए उन्होंने जरूरत, रूचि और जाति-जनजाति वर्ग के रहन सहन अभ्यास के तराजू में तोला। साथ ही ब्रिटिश शासन के दौरान एन्थ्रोपोलॉजी यानि जन्तु विज्ञान से आंकलन किए जाने जैसी भ्रांतियों पर खेद व्यक्त किया।

बढ़ते क्रम में सहायक प्राध्यापक सुरेन्द्र पाल दर्शन ने नृत्य एवं संगीत पर ध्यानाकर्षित करते हुए कहा कि संथाल जनजाति का “सुगना नृत्य“ और “धमसा संगीत“ सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। इसके अलावा, उन्होंने “सोहराई“ और “बाहा“ पर्वके बारे में भी जानकारी दी, जो प्रकृति के प्रति उनकी आस्था को दर्शाते हैं। साथ गोंड जनजाति के “धनकुल नृत्य“ और “गोंडी गीतों“ “मड़ई पर्व“ और “पोला“ त्योहार के कृषि आधारित संस्कृति को प्रतिबिंबित करने की बात कही। इधर, मंच संचालन कर रहे सहायक प्राध्यापक एवं सांस्कृतिक प्रभारी अधिकारी वासुदेव प्रसाद पटेल ने भील जनजाति की विशेषताओं पर बोलते हुए भील नृत्य “गवरी“ और “भगोरिया पर्व“ के सांस्कृतिक महत्व एवं विशेषकर ’भित्ति चित्रकला’ को रेखांकित किया।

वहीं, भारतीय संविधान को लेकर समस्त भारतीयों के लिए बाबा साहेब आंबेडकर के योगदान को प्रदीप्त करते हुए मुख्य लिपिक श्री पीएल अनन्त एवं प्रयोगशाला तकनीशियन एलआर लास्कर अपने बालपन से अब तक के अनुभव बांटे। उनके वक्तव्य के दौरान नागा लोगों की धरोहर और उनके परंपरागत शिल्प कौशल की भी चर्चा सहित जनजातीय लोगों के पारंपरिक वस्त्र और बुनाई कला की भी सराहना की गई। अंतिम चरण में, स्थानीय जनप्रतिनिधि एवं मुख्य अतिथि श्री भूपेन्द्र वर्मा सहित सामाजिक कार्यकर्ता एवं विशिष्ट अतिथि श्री राम कुमार वर्मा ने विद्यार्थियों को आदिवासी परंपराओं को निभाते रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर और रीति-रिवाज हमारी पहचान हैं और हमें इन्हें सहेजकर रखना चाहिए। उल्लेखनीय है कि कार्यक्रम में अतिथि व्याख्याता श्री रितेश राठौर, श्री किशोर साहू, श्री राम नारायण जांगड़े, श्रीमती रेवती राठिया, प्रयोगशाला परिचायक श्रीमती रानू चंद्रा एवं कर्मचारी श्री महेश सिंह सिदार का योगदान सराहनीय रहा।

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