महिला DSP की संघर्ष की कहानी: लोगों ने कहा - हाथ पीले करवा दो, लेकिन मां ने...
रायपुर। हर कामयाब इंसान के पीछे किसी न किसी तरह की एक संघर्ष की कहानी छिपी होती है। इन्हीं में से एक DSP ललिता मेहर की भी कहानी है, जो लोगों के लिए प्रेरणा भी है। पैसों की तंगी से लेकर समाज की कुरीतियां और पढ़ाई के बीच विवाह के लिए रिश्ता घर तक पहुंचा। किसान पिता की मेहनत और मां के साथ से पुलिस अफसर बनने तक का सफर इन्होंने तय किया है। छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव से निकल कर DSP बन वर्तमान में जगदलपुर में अपनी सेवाएं दे रहीं हैं। ललिता मेहर ने दैनिक अख़बार से खास बातचीत की। सुनिए ललिता की जुबानी उनके संघर्ष की कहानी....
ललिता ने बताया कि वो छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के एक छोटे से गांव गुडू की रहने वाली हैं। पिता किसान हैं। 5 भाई-बहनों में वे सबसे छोटी हैं। पिता खेती किसानी के काम के साथ बाजार-बाजार घूम कर कपड़ा बेचने का काम भी करते हैं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। साथ ही जिस गांव में रहते हैं वहां समाज में बेटियों को लेकर आज भी कई कुरीतियां हैं। ललिता ने कहा कि, उनकी दो बड़ी बहनें पढ़ना चाहती थी। लेकिन उस समय लड़कियों को ज्यादा पढ़ने नहीं दिया जाता था। एक बहन ने 9वीं तो दूसरी ने 12वीं तक की ही बड़ी मुश्किल से पढ़ाई की है। जिसके बाद उनकी शादी करवा दी गई।
घर की आर्थिक तंगी के बीच ललिता की पढ़ाई भी मुश्किल हो रही थी। 5वीं तक गांव के ही स्कूल में और फिर 6वीं से12वीं तक जैसे-तैसे पुसौर की एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई की। लेकिन, इस बीच लोग पिता से कहने लग गए थे कि बेटी है, पढ़ लिख कर क्या करेगी? शादी का समय आ गया है। हाथ पीले करवा दो। लेकिन, फिर भी पिता ने सामाजिक कुरीतियों के बीच सब की खरी-खोटी सुन जैसे-तैसे पढ़ाई करवाई। 12वीं की पढ़ाई के बाद ललिता ने आगे कॉलेज की पढ़ाई करने के लिए रायगढ़ गई। आर्थिक तंगी के बीच जैसे-तैसे उन्होंने फर्स्ट ईयर पास किया। जब सेकंड ईयर की पढ़ाई करनी शुरू की तो विवाह के लिए रिश्ता घर आ गया था।
अच्छा रिश्ता देख पिता ने शादी करवाने का मन बना लिया था। लेकिन, ललिता ने शादी करने से साफ मना कर दिया। जब पिता नहीं माने तो मां ने साथ दिया। और पति को समझाया कि बेटी पढ़ना चाहती है। खुद के पैरों में खड़ी होगी। अभी पढ़ने दीजिए। जिसके बाद पिता ने बात मान ली और रिश्ता ठुकरा दिया। ललिता के लिए चुनौती यहीं खत्म नहीं हुई थी। पढ़ना तो था लेकिन उसके लिए पैसे भी चाहिए थे। इस लिए पार्ट टाइम कुछ काम कर लेती थी। जिससे थोड़ी बहुत आमदनी हो जाती थी। ललिता ने बताया कि उनके भाई ने भी उनका पढ़ाई के लिए बहुत साथ दिया।
ललिता के भाई ने रेवेन्यू इंस्पेक्टर का फॉर्म भरवाया था। ललिता ने एग्जाम दिया और रेवेन्यू इंस्पेक्टर बन गई। बिलासपुर में ट्रेनिंग के बाद फिर अंबिकापुर में पोस्टिंग हुई। माता-पिता दोनों खुश थे। ललिता ने बताया कि CGPSC क्या होता है? इसके बारे में नहीं जानती थी। जब अंबिकापुर में काम कर रही थी तो उस समय आर आई बैच के कुछ लोग CGPSC की तैयारी कर रहे थे। जिसके बाद ललिता ने CGPSC का एग्जाम देने का मन बनाया और तैयारी शुरू कर दी। एग्जाम दिया और साल 2017 में DSP बन गईं।