रायपुर। सीटू, संघर्षरत किसानों और उनके समर्थकों के खिलाफ प्रधानमंत्री द्वारा संसद में दिये ओछे और अपमानजनक बयान की कड़ी निंदा करता है। प्रधान मंत्री ने क्रूर कृषि कानूनों और विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को निरस्त करने की मांग कर रहे संघर्षरत किसानों को 'विदेशी विनाशकारी विचारधारा' (एफडीआई) से प्रभावित 'आंदोलन-जीवी' की संज्ञा दी। किसानों की माँगों और उनकी न्यायपूर्ण माँगों को हासिल करने के लिए उनके दृढ़ संघर्ष के साथ बढ़ते समर्थन के कारण, प्रधान मंत्री ने स्वयं 'आंदोलन', जो लोकतांत्रिक समाज में लोगों का मूल अधिकार और लोकतांत्रिक समाज का आधार है, का मजाक उड़ाने की हिमाक़त की। अंग्रेजों के खिलाफ हमारे स्वतंत्रता संग्राम की परंपराओं पर सच्ची निष्ठा रखने वाले किसान उन कृषि कानूनों का शांतिपूर्वक विरोध कर रहे हैं जिनसे उनकी जमीन और आजीविका छीन जाने का खतरा हैं। प्रधान मंत्री की असहिष्णुता स्पष्ट रूप से आरएसएस के दर्शन, जिसकी स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं रही और इसके ब्रिटिश साम्राज्यवाद के सामने आत्मसमर्पण से है। आज उनकी सरकार ने देशी और विदेशी बड़े कॉरपोरे के हितों के लिए आत्मसमर्पण कर दिया है।
आज प्रधानमंत्री एक 'कॉरपोरेट जीवी' सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं जो बस मुनाफे के भूखे परजीवी कॉर्पोरेट वर्ग की सेवा करने के लिए किसानों, जो देश और उसके लोगों के लिए भोजन का उत्पादन करते है, के साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार करती है। किसानों को 'पराजीवी' कहना बेशर्मी की हद है। किसानों को 'खालिस्तानी', 'देशद्रोही', 'आतंकवादी' 'आदि बताकर दुव्र्यवहार करना; आंदोलन के केवल एक राज्य तक सीमित होन का झूठ, और 'गुमराह' होने जैसे सभी पैंतंरे विफल हो गए हैं। विरोध प्रदर्शन को पटरी से उतारने की नयी हताश कोशिशों का विफल होना निश्चित है।
सीटू सत्तारूढ़ भाजपा के इन सभी प्रयासों की और लोकतंत्र के प्रति सम्मान में कमी और असंतोष और विरोध के लिए असहिष्णुता के नग्न प्रदर्शन के लिए इसके नेताओं की कड़े शब्दों में निंदा करता है। हिटलर और मुसोलिनी की विचारधारा से उपजा इस तरह का तानाशाह और अपमानजनक दृष्टिकोण, देश की सबसे विनाशकारी और विध्वंसकारी विचारधारा है। इससे साफ होता है कि यह भाजपा सरकार है जो न केवल किसानों, बल्कि मजदूरों और मेहनतकश जनता के अन्य तबकों के विरोध प्रदर्शनों के बढ़ते ज्वार के लिए जिम्मेदार है। सीटू की मांग है कि सरकार को तीन कृषि कानूनों को तुरंत रद्द करना चाहिए, बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेना चाहिए और मजदूर विरोधी श्रम संहिता को भी तुरंत रद्द करना चाहिए और अपनी आवाज उठाने वाले लोगों को अपशब्द कहना और अपमानित करना बंद करना चाहिए। अन्यथा 'आंदोलन' और बढ़ेंगे।