छत्तीसगढ़

प्रदेश अध्यक्ष हुलास साहू ने कहा, पंचायती राज व्यवस्था पर सभाओं को उनका संवैधानिक अधिकार वापस दिलाना होगा

Admin4
13 Aug 2021 6:08 PM GMT
प्रदेश अध्यक्ष हुलास साहू ने कहा, पंचायती राज व्यवस्था पर सभाओं को उनका संवैधानिक अधिकार वापस दिलाना होगा
x
पंचायती राज व्यवस्था में ग्रामसभा को मजबूत करने की अत्यंत आवश्यकता है, पंचायती राज व्यवस्था पर अफ़सरशाही बेलगाम हो गई है इसलिए ग्राम सभाओं को उनका संवैधानिक अधिकार वापस दिलाना होगा।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- रायपुर- छत्तीसगढ़ ग्राम विकास संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष हुलास साहू ने मीडिया को जानकारी देते हुए कहा कि इतिहास देखें तो पता चलता है कि राजतन्त्र में राजा-पहली सत्ता होता था, प्रजा अन्तिम। लेकिन 26 जनवरी 1950 को पहली लोकतंत्र दिवस मनाया था और हमारे देश के संविधान में लिखा है कि लोकतन्त्र में संसद तीसरी सरकार होती है, विधानसभा दूसरी और ग्रामसभा पहली सरकार लेकिन ऐसा नही हुआ। आज संसद को पहली सरकार, दूसरी विधानसभा और तीसरी सरकार ग्रामसभा को बना दिया गया है। पंचायती राज व्यवस्था में ग्रामसभा को मजबूत करने की अत्यंत आवश्यकता है, पंचायती राज व्यवस्था पर अफ़सरशाही बेलगाम हो गई है इसलिए ग्राम सभाओं को उनका संवैधानिक अधिकार वापस दिलाना होगा।

वर्तमान में राजतंत्र तथा अफसर राज हावी है लोगो को समझना होगा कि राजतंत्र हमारे इस लोकतंत्र में प्रजातंत्र के लिए कितना घातक है। जनता को सत्ता के केन्द्र में रखने के लिए पंचायती राज व्यवस्था के मूलमंत्र के बुनियाद को जमीदारी प्रथा के तरफ पीछे ढकेल दिया गया है, यानेकी केन्द्रीयकरण हो गया है। बोलचाल की भाष में संसद से बड़ा ग्राम सभा है यू कहे तो पहली संसद ग्रामसभा है। लेकिन ग्रामसभा को तीसरी सरकार बना दिया गया है, सत्ता के केंद्र बिंदु के पिरामिड को उलटा रख दिया गया है। परन्तु सत्ता नीचे से कहाँ चल रही है। सारा झगड़ा तो सत्ता का ऊपर एक संसद और विधानसभा में केन्द्रित होने के कारण ही तो है। पंचायती राज व्यवस्था कानून का मकसद, सत्ता को विकेन्द्रित कर ग्रामसभााओं के हाथ में दे देना ही तो था। वह पंचायत की भूमिका, पंचायती राज के वर्तमान संवैधानिक ढाँचे के साथ-साथ उन मूल्यों और दायित्वों में देखते हैं, जिनके साथ कभी गाँवों में परम्परागत पंचायतें चला करती थीं।
गढ़बो छत्तीसगढ़ के नारे के साथ सत्ता में आई कांग्रेस सरकार को महात्मा गांधी के सपनों के अनुरूप गाँव समाज की मूल चेतना ग्रामसभा और गाँवों के बुनियादी लोकतान्त्रिक, संवैधानिक पंचायती राज व्यवस्था के उचित क्रियान्वयन और ग्रामसभा सर्वोच्च हो में संजीदा व सक्रियता से कार्य करनी चाहिए। पंचायती राज संस्थानों की कार्यकुशलता, चुनौतियों व अनुभवों का आकलन इस दिशा में पहला कदम हो सकता है और विधायको द्वारा चुने हुए आदर्श गाँवों में ग्रामसभा की सक्रियता और पंचायत की ईमानदारी दूसरा।
परन्तु गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का सपना साकार करने से पहले भूपेश सरकार द्वारा पंचायतों के अधिकारों को छिनने का जो कार्य किया जा रहा है। लोग आज भी पंचायती राज व्यवस्था को मान्यता प्राप्त एजेंसी मानते है। जबकि पंचायती राज व्यवस्था कानून में ग्राम पंचायत अपने आप में खुद ही एक मान्यता प्राप्त स्वशासन संस्था है, यू कहे तो पंचायती राज कानून एक पवित्रग्रंथ है। ये भी सच है कि पंचायती राज व्यवस्था का सपना, पंचायतों को महज सरकारी योजनाओं की क्रियान्वयन एजेंसी बनाकर रखने का नहीं था। दुर्भाग्य से आज पंचायतें एक एजेंसी बनकर रह गई हैं। तथा छत्तीसगढ़ सरकार पंचायतों के कार्यो को ग्रामसभा को सत्ता के केंद्र बिंदु में रखकर विकेंद्रीकरण करने के बजाय। एक एजेंसी के कार्यो को किसी दूसरे एजेंसी से कराना चाहती है जो गलत है। 2अक्टूबर 1959 को पंचायती राज की जो मजबूत नींव पंडित नेहरू जी ने रखी थी, उस पर अधिकारों की एक शानदार इमारत खड़ी करने का काम स्व.श्री राजीव गांधी जी ने किया था। उनके पंचायती राज व्यवस्था के सपनो और प्रयासों की रक्षा करने की बजाय पैरों तले रौंदने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस सरकार अपने निजी व्यक्तियों एवं एजेंसियों को लाभ पहुचाने तथा जनहित की आड़ लेकर भ्रष्टाचार करने के उद्देश्य से किया जाने वाला यह कृत्य बेहद ही अनुचित है, आम जनता और पंचायतों के हितों के खिलाफ है। जब तक सरकार अपने इस फैसले को वापस नही लेते तब तक छत्तीसगढ़ ग्राम विकास संघर्ष समिति विरोध प्रदर्शन रहेंगे करेंगे।
साहू ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार के पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव जी ने हमर ग्रामसभा कार्यक्रम में लोगो को संबोधित करते हुए कहा था कि पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम सभा विकेंद्रीकरण की एक इकाई है। ग्राम सभा के प्रति पंचायत उत्तरदायी है। उन्होंने कहा था कि कुल मिलाकर ग्राम सभा का अधिकार काफी अधिक है ताकि ग्राम सभा में सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो। उन्होंने कहा कि धारा 129 में ये सभी प्रावधान उल्लेखित है। ग्राम सभा की गणपूर्ति एक तिहाई महिलाओं की उपस्थिति पर सुनिश्चित होती है। यदि बैठक स्थगित हो जाती है तो गणपूर्ति की जरूरत नही पड़ती है। लेकिन पंचायत मंत्री जी ने ये नही बताया कि गणपूर्ति के बिना ग्राम सभा स्थगित हो तो यह तय करने का दायित्व बहुत कुछ ग्रामसभा व पंचायती राज संस्थानों पर आकर टिक गया है। योजनाओं के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी ने इस भूमिका को जटिल, किन्तु और महत्वपूर्ण बना दिया है। यही पर सब खेल शुरू हो जाती है।
समिति के सचिव धर्मेन्द्र बैरागी ने। कहा कि पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता के 28 वर्ष से अधिक वक्त बीत जाने के बाद यह जाँच जरूरी है कि पंचायती राज का सपना कितना पूरा हुआ और कितना अभी अधूरा है और क्यों? भ्रष्टाचार की दीमक अंदर ही अंदर पंचायती राज व्यवस्था को खोखला कर रही है रोका छेका अभियान त्रिस्तरीय पंचायतों में चलाने की जरूरत है। इसके लिये पंचायती राज की कार्यकुशलता की जाँच जरूरी है। सम्बन्धित चुनौतियों और सीख पर गहन मन्थन जरूरी है। कार्यकुशलता के समक्ष पेश चुनौतियों की समझ और समाधान जरूरी है। यह काम वैचारिक मंथन के साथ-साथ जमीनी कार्रवाई की माँग भी करता है। जरूरी है कि अच्छे और सच्चे सामाजिक कार्यकर्ताओं और ग्राम विकास समिति बनाकर युवाओ को ग्रामसभा की भूमिका निभाने के लिये तैयार व प्रशिक्षित किया जाय। सम्बन्धित वर्ग, समाज व संस्थानों को वस्तुस्थिति का एहसास कराया जाए। खासकर ग्रामसभाओं को उनकी दायित्व पूर्ति के लिये प्रेरित करने का प्रयास हो। 73वें संविधान संशोधन का मूलमंत्र था – सत्ता का विकेन्द्रीकरण। जहाँ पंचायती राज संस्थानों को अनेक अधिकार सौंपे गए हैं, वहीं पंच परमेश्वर की ऐतिहासिक भूमिका को महत्वपूर्ण मानते हुए पंचायती राज संस्थानों का यह कर्तव्य भी निर्धारित है। कि ये गाँवों के जीवन व हकदारी का संरक्षण करेंगे।


Next Story