छत्तीसगढ़

हाउसिंग बोर्ड के घोटालों पर अध्यक्ष की चुप्पी...!

Admin2
22 March 2021 5:42 AM GMT
हाउसिंग बोर्ड के घोटालों पर अध्यक्ष की चुप्पी...!
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विपक्ष में रहते गुर्राने वाले नेताओं के भाजपा शासन काल से जमे अधिकारियों से मिलते ही सूर बदले

भ्रष्ट अधिकारी 15 सालों से बोर्ड में अपना एकाधिकार रखने में सफल

हाऊसिंग बोर्ड की सभी शिकायतों पर स्वतंत्र एजेंसी से गंभीरता से जांच कराने की जरूरत

शिकायतों पर जांच एजेंसियां भी नहीं लेते संज्ञान

वर्तमान पदाधिकारी भाजपा शासन की घोटालों की जांच को लेकर अपने ही बडे नेताओं को कर रहे गुमराह

भ्रष्ट अधिकारियों ने विगत 15 सालों मेें अपने अधिकारों से बाहर जा कर आवासीय कॉलोनियों को नियम विरूद्ध व्यवसायिक बनाया व नियमितीकरण किया

रायपुर। छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड अपने गठन के समय से ही अनियमितताओं और घोटालों के लिए चर्चित रहा है। उसके दर्जनों प्रोजेक्ट्स में भ्रष्टाचार और अनियमितता उजागर हुए लेकिन न ही पूर्ववर्ती और न ही वर्तमान सरकार ने इसकी जांच और कार्रवाई की जरूरत समझी। हर सरकारों ने बोर्ड के अधिकारियों के घोटालों, कैग रिपोर्ट और विभागीय जांच में अनियमितता सिद्ध पाए जाने की अनदेखी की। इससे साफ पता चलता है कि हर सरकार के लिए हाउसिंग बोर्ड धन उगलने वाली ऐसी संस्था है जिसके माध्यम से सत्ता और बोर्ड में काबिज लोग अपना हित साध सकें, इसके लिए बोर्ड के अधिकारियों, कर्मचारियों को तमाम तरह की छुट दी गई है ताकि वे कमाई कर उनका जेब भर सकें, भले ही इसके लिए बोर्ड के अधिकारी किसी भी तरह की अनियमितता, गड़बड़ी या घोटाले करें और खुद भी अकूत संपत्ति अर्जित करें उनका कोई बाल बांका नहीं कर सकेगा। शायद यही कारण है कि विपक्ष में रहते बोर्ड की अनियमितता और अधिकारियों के भ्रष्टाचार को लेकर हल्ला बोलने वाले कांग्रेस के नेता सत्ता में आने के बाद आंखे बंद कर लिए हैं और स्वहित के लिए बहती गंगा में हाथ धोना ही श्रेयस्कर समझ रहे हैं।

जांच एजेंसियों के बांधे हाथ

15 सालों के भाजपा शासन काल में हाउंिसंग बोर्ड में कई घोटाले हुए। तालपुरी इंटरनेशनल आवासीय प्र्रोजेक्टस से लेकर, खारुनग्रीन्स कुम्हारी, हिमालयन हाइट्स, अभिलाषा परिसर, चिल्हाटी प्रोजेक्ट्स, पुरैना प्रोजेक्ट्स, जैसे बड़े प्रोजेक्टस के अलावा दर्जनों आवासीय प्रोजेक्टस में घोटाले हुए, कई मामलों में कैग ने आपत्ति जताई, फिर भी कोई जांच और कार्रवाई नहीं हुई। कुछ मामलों में विभागीय जांच हुई भी तो रसूखदार और पहुंच वाले अधिकारियों ने इसे दबा दिया अथवा अपने हक में ही निर्णय बदलवा लिया। जिन जिम्मदारों ने घोटाले किए वे प्रमोट होते गए और बोर्ड के कर्ताधर्ताओं के साथ सरकार के संबंधित मंत्री और अधिकारी कर्मचारी अपने जेब भरते रहे। वर्तमान में कांग्रेस सरकार को लगभग ढाई साल सत्तासीन हुए हो गए लेकिन इस सरकार ने भी हाउसिंग बोर्ड की अनियमितताओं की जांच की जरूरत नहीं समझी। यहां तक कि राज्य सरकार की जांच ऐजेंसी ईओडब्ल्यू, ने भी कई शिकायत के बाद भी जांच शुरू नहीं की है। वहीं लोक आयोग ने भी शिकायतकर्ता का बयान दर्ज कर कर्तव्य की इतिश्री कर ली है। हालाकि इस मामले में आरटीआई में जांच की प्रक्रिया को लेकर गोपनीयता के चलते कोई जानकारी में आयोग ने असमर्थता जताई है और अपील पर पेशी की तारीख दे दी है। इससे सबसे पता चलता है कि सरकार की मंशा हाउंिसग बोर्ड का अनियमितताओं की किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने की नहीं है और उसने जांच एजेंसियों के हाथ भी बांध दिए हैं।

आरटीआई की जानकारी देने में भी परेशानी

हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों को सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी देने में भी एतराज है। अधिकारी प्राय: आवेदनों को अस्पष्ट बताकर या फिर मांगी गई जानकारी लोकहित में न होने का बहाना बताकर जानकारी देने से इंकार कर देते हैं। अपीलीय अधिकारी और यहां तक सूचना आयोग भी हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों के संबंध में किसी भी तरह की जानकारी मांगने पर निचले अधिकारी के

जवाब को जायज ठहराते हुए कोई भी जानकारी साझा करने से बचते हैं। जनता से रिश्ता ने बोर्ड के घोटालों में लिप्त और जिनके खिलाफ अनियमितता की शिकायतें मिलती रही हैं ऐसे कुछ अपर आयुक्तों के संबंध में जानकारी मांगने कई आवेदन लगाए हैं जिसमें लगभग आधे से ज्यादा को बोर्ड के जनसूचना अधिकारी ने विषयवस्तु का उल्लेख स्पष्ट नहीं होने का बहाना बनाकर जानकारी देने से इंकार कर दिया। वहीं कुछ आवेदनों पर आधी-अधूरी जानकारी देकर सिर्फ खानापूर्ति की गई।

वाहन आबंटित लेकिन लॉगबुक नहीं

आरटीआई के तहत कुछ अधिकारियों के वाहन से संबंधित जानकारी मांगने पर जनसूचना अधिकारी ने बोर्ड में राज्य शासन के वाहन आबंटन नियमों के तहत ही वाहन आबंटित तथा आबंटन का अधिकार आयुक्त को होने की जानकारी दी गई लेकिन कुछ अधिकारियों के वाहनों के ईंधन खर्च व लॉगबुक की जानकारी होने पर यह उपलब्ध नहीं होना बताकर जानकारी ही नहीं दी गई। इससे सवाल उठता है कि बिना लॉगबुक के वाहनों का ईंधन खर्च की राशि कैसे और कहां से दी जाती है, क्या अफसर अपने पैसों से आबंटित वाहनों का खर्च वहन करते हैं? ऐसा तो संभव नहीं है। कितने ही अफसरों को दो-दो, तीन-तीन गाडिय़ां आबंटित है तो क्या ये अपने जेब से इसे चलाने के लिए रकम खर्च करते हैं। बोर्ड के जनसूचना अधिकारी द्वारा लॉगबुक नहीं होने की बात कहना दर्शाता है कि वाहनों के आबंटन और उसके ईंधन खर्च के भुगतान में भी अधिकारी बड़े पैमाने पर घालमेल करते हैं। इसी तरह इन वाहनों के चालकों के संबंध में जानकारी मांगने पर भी कहा गया कि उनकी नियुक्ति प्लेसमेंट एजेंसी द्वारा की जाती है और वेतन भी वही एजेंसी करती है इसलिए उनके वेतन आदि के बारे में कोई जानकारी बोर्ड के पास उपलब्ध नहीं है। तो क्या वाहन चालको के वेतन के तौर पर हाउंिसग बोर्ड प्लेसमेंट एजेंसी को किसी तरह का भुगतान नहीं करता?

जमीनों को कामर्शियल करने में नियमों की अनदेखी

हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए नियमों को भी ताक पर रखकर काम करते हैं। हाउसिंग बोर्ड द्वारा आवासीय कालोनियों की भूमि को नियमों के विपरित कामर्शियल बनाया जा रहा है। राजधानी की पुरानी और सबसे पौश आवासीय कालोनी शंकरनगर में हाउसिंग बोर्ड ने बिना टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की अनुमति लिए ही योजना में परिवर्तन कर भूमि का कार्मशियल इस्तेमाल कर रही है। हाउसिंग बोर्ड को आवासीय योजनाओं के लिए राज्य सरकार रियायती दर पर भूमि आबंटित करती है। लेकिन बाद में हाउसिंग बोर्ड अपने तरीके से भूमि का इस्तेमाल करती है। इसके लिए वह टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की अनुमति लेने की जरूरत भी नहीं समझता और बोर्ड के अधिकारी अपने तरीके से नियम कायदे बनाकर भूमि का बंदरबांट करते हैं।

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