छत्तीसगढ़

कुछ राज जासूसों से छुपाने होते हैं हकीकत बयां सभी से की नहीं जाती

Admin2
30 July 2021 5:55 AM GMT
कुछ राज जासूसों से छुपाने होते हैं हकीकत बयां सभी से की नहीं जाती
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ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव

पेगासस जासूसी ने कई राजनेताओं की नींद खऱाब कर दी है। स्वाभाविक भी है कि बिना सरकार की इजाज़त के कोई दूसरे देश के लोग यहाँ के लोगो की जासूसी कैसे कर सकते हैं। अगर सरकार की बिना इजाजत कोई ऐसा काम कर रहा है तो यह गलत है। पेगासस को लेकर आज आठवां दिन है जब विपक्षी संसद चलने नहीं दे रहे हैं। और यह भी खबर है कि देश के दो वरिष्ठ पत्रकार सुप्रीम कोर्ट भी पहुँच गए इस बात की जाँच करवाने कि सरकार पेगासस के जरिये लोगों की जासूसी करवाई है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा का कहना है कि राहुल गाँधी की जासूसी करने से क्या मिलेगा। किसके जासूसी से क्या मिलेगा ये तो आप ही बेहतर बता सकते हैं। वो तो सुप्रीम कोर्ट में फैसला होगा कि जासूसी हुई भी है या नहीं। इसी बीच भाजपा संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री जी ने भाजपा सांसदों को कहा कि वे विपक्ष को बेनक़ाब करें। जनता में खुसुर-फुसुर है कि जासूसी का आरोप भाजपा सरकार पर लगी है और बेनकाब विपक्ष कैसे होगा। इस बीच खबर ये भी है की पेगासस मामले की जाँच फ्ऱांस करने वाला है।

जनता की संपत्ति तो नहीं बेच रहे

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और पीयूष गोयल ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकारी कोष से अपने रिश्तेदार का कालेज खरीद रहे हैं, यह जनता के पैसे का दुरूपयोग है इसके जवाब में भूपेश जी ने सही कहा कि वे छत्तीसगढिय़ा छात्रों का भविष्य बचाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। उन्होंने आगे यह भी कहा कि जनहित का सवाल होगा तो नगरनार प्लांट भी खरीदेंगे जिसे केंद्र की भाजपा सरकार बेचने जा रही है। देखा जाये तो भूपेश दाऊ ने ऐसा कर प्रदेश के एक मेडिकल कालेज और वहां के सैकड़ो छात्रों का भविष्य को बचने का प्रयास कर रहे हैं। उनके इस काम से प्रदेश में नया मेडिकल कालेज बनाने का समय बचेगा और हर साल छत्तीसगढ़ को एमबीबीएस डाक्टर मिलेंगे बात एकदम सही है। छत्तीसगढ़ के सैकड़ो छात्रों का भविष्य दावं में लगा हुआ था। ऐसा काम कर भूपेश बघेल ने बहुत बड़ा परोपकार का काम किया है पक्ष और विपक्ष को उनका अभिनन्दन करना चाहिए। जनता में खुसुर-फुसुर है कि डूबते हुए किसी संस्थान को अगर सरकार खरीद कर चलाए तो गलत और फायदे में चलते हुए किसी सरकारी संस्थान, उपक्रम को बेचे तो सही। दोनों केंद्रीय मंत्री महोदय को सरकार की संस्थान बिकते हुए कैसे दिख नहीं रहा है समझ से परे है। एक के बाद एक सरकारी उपक्रमों को केंद्र की सरकार बेच रही है लेकिन कोई बोलने को तैयार नहीं है। और हमारे दाऊ जी की सरकार डूबते संस्था को खरीद कर कई सौ डाक्टर छत्तीसगढ़ को हर साल देने वाले हैं तो वो गलत ? रहा सवाल जनता के पैसे का दुरूपयोग का तो वह रायपुर में अधूरे बने स्काई वाक है

आखिरकार येदियुरप्पा चले गए

दक्षिण में भाजपा की नीव रखने वाले बीएस येदियुरप्पा आखिरकार चले गए। वे भी लालकृष्ण आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी या अन्य किनारे किये गए नेताओ की श्रेणी में आ ही गए। अंतिम समय तक वे अपने समुदाय के मठ प्रमुखों की मदद से पद पर बने रहने की भरपूर कोशिश करते रहे लेकिन हाईकमान के आगे उनकी नहीं चली मज़बूरी में उन्हें दुखी मन से इस्तीफा देना पड़ा। जाते जाते उनके आँखों से आंसू तक गिर पड़े जिसे वे ख़ुशी के आंसू बताते हुए बोले कि वे पार्टी के लिए काम करते रहेंगे। जनता में खुसुर-फुसुर है कि अच्छा हुआ येदि जी इस्तीफा देकर पार्टी का काम करने तैयार हो गए वर्ना पार्टी इनका काम कर देती।

अंग्रेज भी चले गए .....

राजनीती जो-जो करवाए कम है। नेता लोग जनता को ऐसा समझ रहे हैं जैसा जनता कुछ जानती ही नहीं है। एक मुख्यमंत्री जी ने मांग की है कि इस बार जनगणना जाति के आधार पर हो। कांग्रेस भी जब केंद्र की सत्ता में थी तब इस आधार पर जनगणना करा चुकी है लेकिन जनता की मांग पर उसे इसे सार्वजनिक नहीं किया था। वैसे भी देखा जाए तो जनगणना जाति के आधार पर ना होकर आर्थिक आधार पर हो तो कम से कम गऱीब तबकों की वास्तविक संख्या का पता चलेगा और उनके स्वास्थ्य,शिक्षा पर बेहतर कार्य किया जा सकेगा। जाति के आधार पर होने से जिस जाति के लोग कम होंगे वे अपनी जनसँख्या बढ़ाने में लग जाएंगे और जनसँख्या नियंत्रण कानून बेअसर होगा । बहरहाल मुद्दा ये नहीं बल्कि ये है कि एक समय अंग्रेजो को भगाने स्वाधीनता संग्राम में भारतीयों की एकता देखते बनती थी और वही एकता ने अंग्रेजो को भागने मजबूर कर दिया था। परन्तु अंग्रेजो ने इस एकता को खंडित करने जनगणना इसी जातिय आधार पर कर भारतीयों की एकता को छिन्न-भिन्न कर ही दिया। आखिरकार भारत के दो टुकड़े उन लोगो ने कर दिया। अब यही काम जनता द्वारा चुनी हुई सरकार कर रही है। किसी ने ठीक ही कहा है कि अंग्रेज चले गए.....

इनको क्या हो गया

असम-मिजोरम सीमा विवाद को लेकर दोनो राज्यों में तनाव बढ़ गया है। मजोरम की ओर से हुई फायरिंग से असम के पांच पुलिस जवानो और एक नागरिक की मौत हो गई। पूरा देश इस घटना से सकते में है कि देश के अंदर ही सीमा विवाद। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं कि गोलीबारी पहले उनके साइड से हुई है। बहरहाल गोलीबारी जहाँ से हुई हो आश्चर्यजनक और निंदनीय है। छह लोग बिना वजह जान गँवा बैठे क्या वे वापस आ सकते हैं। हालांकि गृहमंत्री अमित शाह ने हस्तक्षेप करते हुए दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को शांति और संयम बरतने की अपील की है। इस समस्या का स्थायी हल निकालना जरुरी है जिसके लिए किसी आयोग का गठन करना जरुरी है पर सोचने वाली बात ये है कि केंद्र सरकार इसका गठन कब करेगी। जनता में खुसुर-फुसुर है कि बार्डर में गोलीबारी क्या कम हो रही थी जो दोनों राज्यों ने पूरी कर दी ?

बड़ा पद नहीं तो छोटा ही मिल जाये

नेतागिरी का चस्का अगर किसी को लग जाये और कोई पद नहीं मिले तो वह बिना पद के जल बिन मछली के सामान है। निगम मंडल में जगह नहीं मिलने पर भी कुछ नेता अभी टेंशन में नहीं है और अभी भी इस उम्मीद में बैठे हैं कि लाल बत्ती नहीं तो कम से कम अपनी गाड़ी में ही पद लिखकर तो घूम सकते हैं। वे सारे नेता अब संगठन की ओर नजऱ गड़ाये हुए है कम से कम संगठन में कहीं सदस्य ही बन जाएँ तो भी हला-भला हो ही सकता है। कम से कम सरकार अपनी है गाड़ी के सामने पद लिखकर तो रौब झाड़ ही सकते हैं और अगली सरकार जिसकी भी बने खर्चा पानी के लाले तो नहीं पड़ेंगे।

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