
पुलिस प्रशासन और प्रशासनिक अधिकारियों की प्रदत्त शक्तियों को कारोबारी दे रहे खुली चुनौती
राष्ट्रीय मुद्रा को प्रचलन से बाहर करने की साजिश
दस के सिक्के को अव्यवहारिक बना दिया व्यापारियों ने
दुर्ग में दस का सिक्का चलता है तो रायपुर-बिलासपुर में क्यों नहीं?
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। राजधानी के बड़े-बड़े अफसरों के दम पर पूरा प्रशासनिक अमला चलता है पर दस का सिक्का नहीं चलता है । यदि प्रशासनिक अधिकारियों में प्रशासनिक शक्तियां हैं तो साहब रायपुर-बिलासपुर में दस का सिक्का चलाकर बता दीजिए तो मान जाएंगे साहब? राजधानी में भारतीय मुद्रा का खुलेआम अनादर हो रहा है और पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही है। मामला है दस रुपए के सिक्के को व्यापारियों के एक गिरोह बाजार से बहिष्कृत कर दिया है। दुर्भाग्य देखिए दस का सिक्का राष्ट्रीय मुद्रा होते हुए भी बाजार में प्रचलन से बाहर हो गया है। जबकि पूरे देश में दस का सिक्का स्वीकार्य है? सिर्फ राजधानी में क्यों व्यापारी इसे स्वीकार नहीं कर रहे है समझ से परे है जो शोध और जांच का विषय हो गया है। राजधानी से 40 किमी दूरी पर दुर्ग जिले के शहर और गांव-कस्बे में दस का सिक्का शान से चल रहा है। तो राजधानी रायपुर और न्यायधानी बिलासुपर में ऐसा क्या हो गया जो प्रचलन से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। जनता से रिश्ता की एक खोजपरक सर्वे में यह बात सामने आई है कि यहां के व्यापारियों को दस के सिक्के के प्रति दुराग्रह की अस्वीकार्यता सबसे बड़ा कारण है। 22 लाख की आबादी वाले राजधानी के शहर अंदर में 70 वार्डों और दस जोनों के किसी भी मार्केट में दस का सिक्का व्यवहार में नहीं लिया जाता है । ऐसा क्या है जो दस का सिक्का को व्यापारी और जनसामान्य उसे व्यवहार से बाहर कर दिया है। जबकि 20 रुपए के नए सिक्के को लोग सहर्ष स्वीकार्य कर रहे है।
बाजार में लेन-देन नहीं होता :यदि कोई शख्स दुर्ग की बस में बैठकर रायपुर आता है तो उसे किराया काट कर बचा हुआ पैसा दस रुपए के सिक्के के रूप में दिया जाता है। जब वह रायपुर पहुंचता है तो आटो वाले से लेकर सिटी बस वाले या व्यापारी दस का सिक्का लेने से इंकार कर देते है? कहते है कि यहां दस का सिक्का नहीं चलता है। जहां चलता है वहां चलाओ रायपुर में तो कलदार नोट ही चलते है। जबकि पांच रुपए का सिक्का को स्वीकार कर लेते है। समझ में नहीं आता कि क्यों दस के सिक्के के साथ दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है। जबकि सभी भारत सरकार की मुद्राएं है। बाजार में सभी सिक्कों की तरह उसे भी दौडऩा चाहिए मगर व्यापारियों की साजिशों के चलते यह दस का सिक्का बाजार में बिना खोटा साबित हुए बाहर कर दिया गया है। व्यवहारिक लेन-देन को अव्यवहारिक बना दिया जा रहा है।
अनादृत करने वालों पर लगे दंड : जिस तरह चेक अनादृत हो जाता है तो उस पर बैंक खातेदार पर चार्ज लगाती है, वैसे ही दस के सिक्के को लेने से मना करने वाले के लिए कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। रिवर्ज बैंक को सरकार के माध्यम से यह आदेश जारी करना चाहिए कि जो भी बैंक, अस्पताल, थोक बाजार, फुटकर बाजार, सामाजिक संगठन, कारोबारी-व्यापारी या जनसामान्य दस के सिक्के लेने से इंकार करें तो उसके खिलाफ भारतीय मुद्रा अनादरण का केस दर्ज किया जाए। जिस भी कंपनी ने दस का सिक्का लेने से इंकार कर दिया। उससे लिखित में इंकार के कारण सहित पत्र मांगे और उसके खिलाफ नजदीकी थाने में एफआईआर दर्ज करने का अधिकार आम जनता को देना चाहिए। क्योंकि बैंक ही व्यापारियों को दस रुपए का सिक्का चलाने के लिए थोक में देती है। लेकिन बाद में वहीं व्यापारी बाजार में दस का सिक्का खपाने के बाद लेने से इंकार कर देता है। ऐसा क्या कारण है कि दस का सिक्का देश भर में चल रहा है और राजधानी रायपुर और न्यायधानी बिलासपुर में नहीं चल रहा है। इस पर प्रशासन को सख्ती से काम लेना चाहिए जिससे दस का सिक्का अव्यवहारिक होने से बच सके।
प्रशासन व्यापारियों पर कसे नकेल :राजधानी में प्रशासनिक अधिकारियों को इस तरह के हो रहे दस के सिक्के के साथ अनादरण को लेकर सख्त कदम उठाना चाहिए। जो भी व्यापारी या जनसामान्य दस के सिक्के को लेने से इंकार करें तो उस पर तत्काल कार्रवाई करना चाहिए। इस तरह अव्यवहारिक मुद्रा अनादरण के मामले में प्रशासनिक सख्ती बहुत जरूरी हो गया है ऐसा लगने लगा है। बिना कड़ाई बरते ये लोग नहीं चेतने वाले है। इसलिए इन पर नकेल कसने की सख्त जरूरत है।
दस का सिक्का बैंक स्वीकार्य करें और उसे व्यापारियों को दे : जिस राष्ट्रीयकृत बैंक में व्यापारियों के खाते है इन बैंकों को व्यापारियों को दस का सिक्का अनुपात में देना होगा और उस प्रचलन पूरे देश की तरह बनाए रखने के लिए सख्ती बरतनी होगी। जिससे व्यापारी सिक्का लेकर लोगों को दे और उनसे स्वीकार्य भी करे। यदि न नुकूर करे तो तत्काल कानूनी कार्रवाई करने के लिए बाध्य रहे।
बैंकों में भी स्वाकारते नहीं : जब भी कोई व्यापारी पांच-दस हजार दस के सिक्के के रूप में जमा करने जाता है तो बैंक में केशियर और ब्रांच मैनेजर लेने से इंकार कर देते है। इस स्थिति में व्यापारी को भारी परेशानी झेलनी पड़ती है। 5-10 किलो वजन लेकर लौटना पड़ता है। सिक्का नहीं लेने के लिए कई तरह के बहाने बनाए जाते है। मजबूरन इस तरह की परेशानी झेलने के बाद व्यापारियों ने ेेेदस रुपए का सिक्का नहीं लेने का निर्णय लिया हो।
दूसरे शहरों में चल रहा है बाकायदा : दस का सिक्का राजधानी रायपुर छोड़कर सभी जगह फर्राटे से दौड़ रहा है। प्रदेश के ढाई करोड़ जनता इसे व्यवहारिक मानती है और राजधानी के 22 लाख लोग इसे अव्यवहारिक मानते है इस तरह की मानसिकता को बदलने की जरूरत है। यह भारत सरकार की मुद्रा है इसे सहर्ष लेन-देन में व्यवहारिक बनाना होगा तभी दस का सिक्का राजधानी में चल सकेगा। नहीं तो उसे अनादर झेलना पड़ेगा। जो न्याय संगत नहीं है।
