छत्तीसगढ़

डाकघर में 10 करोड़ से ज्यादा फर्जी एफडी का घोटाला...पति-पत्नी मिलकर लेते थे जमा कराने के नाम पर पैसे, कई नेताओं- अफसरों के पैसे डूबे

Admin2
13 Jun 2021 3:44 AM GMT
डाकघर में 10 करोड़ से ज्यादा फर्जी एफडी का घोटाला...पति-पत्नी मिलकर लेते थे जमा कराने के नाम पर पैसे, कई नेताओं- अफसरों के पैसे डूबे
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10 करोड़ से ज्यादा फर्जी एफडी का घोटाला

दैनिक समाचार के पत्र में पत्रकार प्रमोद साहू द्वारा अपने लोक प्रिय समाचार पत्र में किया खुलासा

रविशंकर विश्वविद्यालय स्थित डाकघर में 10 करोड़ से ज्यादा फर्जी एफडी घोटाला फूटा है। एजेंट ने 50 से अधिक लोगों के पैसे डाकघर में जमा ही नहीं किए। अलबत्ता उनकी पासबुक और एफडी के दस्तावेज बैंक की सील ठप्पे के साथ दिए। एजेंट के पास पैसा जमा करवाने वालों में ज्यादातर विवि के प्रोफेसर, वकील, अफसर और कुछ नेता हैं।

पांच साल से किसी के खाते में एक पैसे जमा नहीं किए गए। 3 अप्रैल को एजेंट की बिलासपुर के रेलवे ट्रैक पर लाश मिली और उसी के बाद फर्जी एफडी का घोटाला सामने आया। एजेंट की पत्नी आकांक्षा पांडेय भी इसमें शामिल है। एजेंट भूपेंद्र पांडेय की मौत की खबर सुनकर उसके पास पैसा जमा करवाने वाले एक-एक ग्राहक बैंक और डाकघर पहुंचे।
वहां उन्हें पता चला कि उनके खाते में पैसे जमा ही नहीं हुए हैं। भूपेंद्र के पास पैसे जमा कराने वाले ग्राहकों ने अपनी पासबुक और एफडी के दस्तावेज दिखाए। डाकघर में उन सभी दस्तावेजों को फर्जी करार देकर उन्हें लौटा दिया गया। एजेंट की पत्नी भी सामने नहीं आ रही है। उसका मोबाइल भी बंद हो गया है, जबकि वह भूपेंद्र के साथ एजेंट का ही काम करती है। भूपेंद्र और उसकी पत्नी के पास डाकघर की पॉलिसी लेकर पैसा जमा करवाने वाले ज्यादातर अफसर और प्रोफेसर सामने नहीं आ रहे हैं। भूपेंद्र की मौत हो जाने की वजह से सभी हिचक रहे हैं।
फर्जी पासबुक और सील बनाने का आरोप
भूपेंद्र पर पासबुक और अन्य दस्तावेज फर्जी बनाने का आरोप है। हालांकि उसने जैसी पासबुक और सील बनायी है, उसे देखकर कोई भी नकली नहीं कह सकता। पासबुक के पन्ने, कवर और सील-मोहर बिलकुल असली की तरह है। डाकघर की सील देश में केवल एक ही जगह बनती है। इसे बाहर कहीं भी नहीं बनाया जा सकता। डाकघर की सील-मोहर को चोरी कर उसका उपयोग किए जाने का शक है क्योंकि स्याही भी डाकघर की है।
डाकघर के कर्मचारियों से सांठगांठ का शक
पुलिस को शक है कि घोटाले में डाकघर के कुछ अधिकारी-कर्मचारी शामिल हो सकते हैं। उनसे सांठगांठ के बिना ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि 2017-2018 में डाकघर से कुछ बड़ी रकम भूपेंद्र और उसकी पत्नी के खाते में जमा हुई है। एक से पांच लाख तक उनके खाते में जमा किए गए हैं, जबकि भूपेंद्र की खुद की कोई बड़ी पॉलिसी नहीं थी। पुलिस ने कुछ कर्मचारियों को शक दायरे में रखा है।
ऐसे मिल सकता है पैसा- विपिन अग्रवाल, वकील
पीड़ित सिविल न्यायालय और उपभोक्ता फोरम में वाद प्रस्तुत कर सकते है। इसमें दोषी एजेंट के साथ डाकघर को पार्टी बनाया जा सकता है। क्योंकि आरोपी डाकघर का अधिकृत एजेंट था। इसी विश्वास में लोगों ने अपना पैसा जमा किया है। पीड़ित डाक घर से पहले भी सेवा लेते रहे। कोर्ट को अधिकार है कि आरोपी एजेंट की संम्पति नीलाम करके पीड़ितों को पैसा लौटाया जा सकता है।
अगर डाकघर की जिम्मेदारी तय होती है तो उनसे भी पीड़ितों का पैसा रिकवर किया जा सकता है। कोर्ट में मृतक का फर्जीवाड़ा साबित करना होगा। उसके बाद कोर्ट के माध्यम से मृतक की प्रापर्टी को नीलाम कर उससे प्राप्त होने वाले पैसे पीड़ितों को दिलाए जा सकते हैं।
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