छत्तीसगढ़

हाउसिंग बोर्ड में घपले, लोकायुक्त भी बयान लेकर जांच भूला...

Nilmani Pal
8 July 2022 5:49 AM GMT
हाउसिंग बोर्ड में घपले, लोकायुक्त भी बयान लेकर जांच भूला...
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  1. सरकार को बदनाम करने का नया पैंतरा, तालपुरी से लेकर खारुनग्रीन्स तक दर्जनों प्रोजेक्ट में घोटाले हुए
  2. कई प्रोजेक्ट पर कैग ने भी सवाल उठाए, फिर भी नहीं हुई जांच
  3. सरकार के लिए हाउसिंग बोर्ड धन उगलने वाली संस्था
  4. भ्रष्ट अधिकारियों को मनमानी और लूट की खुली छूट
  5. लोकायुक्त द्वारा प्रार्थी को पेशी की सूचना तक नहीं दी जाती

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। छत्तीगसढ़ हाउसिंग बोर्ड में भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग रहा है। सरकार बदलने और नए अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद भी अधिकारियों की ठेकेदारों से सांठगांठ कर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। भ्रष्टाचार और घोटालों के पुराने मामलों पर भी किसी तरह की कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी और फाइलें धूल फांक रही हैं। बोर्ड के विभिन्न प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार और घपले की रिपोर्ट लगातार मीडिया में सामने आती रही हैं। जनता से रिश्ता ने ही विभिन्न प्रोजेक्ट में अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत से हुए घोटालों को उजागर किया था। सरकारी एजेंसियों के साथ लोकायुक्त में भी इनकी शिकायत विभिन्न माध्यमों से की गई हैं। लेकिन किसी भी मामले में जांच और कार्रवाई की जरूरत नहीं समझी गई। लोकायुक्त ने मामले में संज्ञान लेकर शिकायतकर्ता का बयान दर्ज कर अधिकारियों से जवाब तलब किया था लेकिन इसके बाद कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी। सरकारी जांच एजेंसियां और यहां तक की लोकायुक्त जांच भी ऊपरी दबाव से प्रभावित की जा रही हैं। जांच आगे नहीं बढऩे से भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के हौसले बुलंद हैं और वे शिकायतकर्ताओं को सीनातान कर कहते हैं कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। साफ है सरकारी संरक्षण मिलने से बोर्ड के अधिकारियों के हौसले बुलंद हैं और उन्हें लूट की खुली छूट मिली हुई है।

गड़बडिय़ों-घपलों की जांच नहीं

छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड अपने गठन के समय से ही अनियमितताओं और घोटालों के लिए चर्चित रहा है। उसके दर्जनों प्रोजेक्ट्स में भ्रष्टाचार और अनियमितता उजागर हुए लेकिन न ही पूर्ववर्ती और न ही वर्तमान सरकार ने इसकी जांच और कार्रवाई की जरूरत समझी। हर सरकारों ने बोर्ड के अधिकारियों के घोटालों, कैग रिपोर्ट और विभागीय जांच में अनियमितता सिद्ध पाए जाने की अनदेखी की। इससे साफ पता चलता है कि हर सरकार के लिए हाउसिंग बोर्ड धन उगलने वाली ऐसी संस्था है जिसके माध्यम से सत्ता और बोर्ड में काबिज लोग अपना हित साध सकें, इसके लिए बोर्ड के अधिकारियों, कर्मचारियों को तमाम तरह की छुट दी गई है ताकि वे कमाई कर उनका जेब भर सकें, भले ही इसके लिए बोर्ड के अधिकारी किसी भी तरह की अनियमितता, गड़बड़ी या घोटाले करें और खुद भी अकूत संपत्ति अर्जित करें उनका कोई बाल बांका नहीं कर सकेगा। शायद यही कारण है कि विपक्ष में रहते बोर्ड की अनियमितता और अधिकारियों के भ्रष्टाचार को लेकर हल्ला बोलने वाले कांग्रेस के नेता सत्ता में आने के बाद आंखे बंद कर लिए हैं और स्वहित के लिए बहती गंगा में हाथ धोना ही श्रेयस्कर समझ रहे हैं।

जांच एजेंसियों के बांधे हाथ

15 सालों के भाजपा शासन काल में हाउंिसंग बोर्ड में कई घोटाले हुए। तालपुरी इंटरनेशनल आवासीय प्र्रोजेक्टस से लेकर, खारुनग्रीन्स कुम्हारी, हिमालयन हाइट्स, अभिलाषा परिसर, चिल्हाटी प्रोजेक्ट्स, पुरैना प्रोजेक्ट्स, जैसे बड़े प्रोजेक्टस के अलावा दर्जनों आवासीय प्रोजेक्टस में घोटाले हुए, कई मामलों में कैग ने आपत्ति जताई, फिर भी कोई जांच और कार्रवाई नहीं हुई। कुछ मामलों में विभागीय जांच हुई भी तो रसूखदार और पहुंच वाले अधिकारियों ने इसे दबा दिया अथवा अपने हक में ही निर्णय बदलवा लिया। जिन जिम्मदारों ने घोटाले किए वे प्रमोट होते गए और बोर्ड के कर्ताधर्ताओं के साथ सरकार के संबंधित मंत्री और अधिकारी कर्मचारी अपने जेब भरते रहे। वर्तमान में कांग्रेस सरकार को लगभग ढाई साल सत्तासीन हुए हो गए लेकिन इस सरकार ने भी हाउसिंग बोर्ड की अनियमितताओं की जांच की जरूरत नहीं समझी। यहां तक कि राज्य सरकार की जांच ऐजेंसी ईओडब्ल्यू, ने भी कई शिकायत के बाद भी जांच शुरू नहीं की है। वहीं लोक आयोग ने भी शिकायतकर्ता का बयान दर्ज कर कर्तव्य की इतिश्री कर ली है। हालाकि इस मामले में आरटीआई में जांच की प्रक्रिया को लेकर गोपनीयता के चलते कोई जानकारी में आयोग ने असमर्थता जताई है और अपील पर पेशी की तारीख दे दी है। इससे सबसे पता चलता है कि सरकार की मंशा हाउंिसग बोर्ड का अनियमितताओं की किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने की नहीं है और उसने जांच एजेंसियों के हाथ भी बांध दिए हैं।

तालपुरी प्रोजेक्ट में 100करोड़ का घपला

भिलाई के रुआबांधा में तालपुरी प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर अनियमितता सामने आई थी। कैग की रिपोर्ट में भी 115 करोड़ रुपये के खर्च को लेकर सवाल खड़े किए गए थे। जांच हुई, लेकिन लीपापोती कर घोटाले को दबा दिया गया। गड़बड़ी करने वाले जिम्मेदार अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, बल्कि पदोन्नात कर दिया गया। अब लोकायुक्त में शिकायत के बाद एक बार फिर से यह मामला गरमा गया है। इस संबंध में बोर्ड के अधिकारी जांच का हवाला देकर अधिकृत तौर पर कुछ भी बताने को तैयार नहीं हैं। हाउसिंग बोर्ड के सूत्रों ने बताया कि भिलाई के रुआबांधा में तालपुरी प्रोजेक्ट को इंटरनेशनल कालोनी के नाम से वर्ष 2008 में प्रचारित कर मकानों की बुकिंग करवाई गई। इस प्रस्तावित कालोनी में करीब 1800 मकान ईडब्ल्यूएस और 1800 सामान्य एलआइजी, एमआइजी व एचआइजी थे। ईडब्ल्यूएस आवासों को पारिजात व अन्य को गुलमोहर, लोटस, रोज, लिली, टिली, बीजी, डहलिया, आर्किड जूही, मोंगरा टाइप बनाए गए थे। इस पर लगभग 550 करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन इसमें सर्विस टैक्स में गड़बड़ी करने और गुणवत्ता खराब होने की शिकायत मिलने पर सीएजी (कैग) ने 2012 में जांच के बाद एक रिपोर्ट तैयार की थी। यह रिपोर्ट मार्च 2013 में सार्वजनिक हुई थी,जिसमें करीब 115 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था। जानकारों का दावा है घोटाला इससे कहीं ज्यादा का है। सीएजी की रिपोर्ट में निर्माण का काम एजेंसी मेग्नाटोस कोलकाता को जिस दिन दिया गया, उसी दिन मेग्नाटोस ने एसएस निर्माण नामक एजेंसी को काम दे दिया। इन दोनों एजेंसियों ने अधूरा निर्माण कर गड़बड़ी की। ए और बी टाइप के जनसामान्य के आवासों के निर्माण में अलग-अलग रेट कोट किया गया। बाद में जब मोंगरा व जूही आवासों का निर्माण हुआ, उनमें भी ए टाइप को छोड़कर बी टाइप के आवास का रेट कोट किया गया, जबकि पहले ए टाइप के निर्माण में 19 प्रतिशत तक की छूट का प्रावधान दिया गया था। बाद में बिना कारण के यह छूट नहीं दी गई। छूट की आड़ में बोर्ड के जिम्मेदार अफसरों पर करोड़ों का घोटाला करने का आरोप लगा है।

एनएमडीसी का प्रोजेक्ट हाथ से निकला

छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड ने भारत सरकार की नवरत्न कंपनियों में से एक एनएमडीसी यानी नेशनल मिनिरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन को जगदलपुर में टाउनशिप बनाने के लिए 1200 करोड़ का टेंडर 2017 में जारी किया था. इस प्रोजेक्ट में भारी गड़बड़ी का खुलासा हुआ था इस टाउनशिप के निर्माण और डिजाइन के लिए आर्किटेक्चर कंसल्टेंसी के बतौर एके. एसोसिएट्स इंदौर और डिजाइन एसोसिएट्स नोएडा की कंपनी ने आवेदन भरा. नियत तिथि के बाद जब टेंडर खुला और कंपनियों के दस्तावेजों की पड़ताल शुरू हुई तो दोनों ही कंपनियों के कई दस्तावेज फर्जी पाए गए. इसके बाद हाउसिंग बोर्ड ने आखिरकर दोनों ही कंपनियों के टेंडर निरस्त कर दिए, लेकिन दोनों ही कंपनियों से परदे के पीछे चल रही डील के तहत उनके खिलाफ वैधानिक कार्यवाही ना करने के लिए लीपापोती की गई। बाद में नया टेंडर जारी किया गया लेकिन एनएमडीसी ने पूरा प्रोजेक्ट ही हाउंिसग बोर्ड से वापस ले लिया।

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