सड्डू-विस कचना मार्ग को निजी प्रोजेक्ट को लाभ पहुंचाने किया डायवर्ट
- किसके इशारे पर सीधी सडक़ को मोड़ दिया गया?
- जमीनों को दबा कर तैयार किया आलिशान प्रोजेक्ट
- सडक़ की दिशा बदल दी, सीधा को कर दिया तिरछा
- राजनीतिक रसूख और अधिकारियों से सांठगांठ कर भू-माफिया बिल्डर बनकर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट लांच कर रहे
- कोटवारी जमीन में कोर्ट से रोक होने के बावजूद धड़ाधड़ तैयार हो रहे हैं प्रोजेक्ट पर प्रोजेक्ट
- विधायक-पार्षद नहीं करते सुनवाई,सुध लेने वाला कोई नहीं - रायपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र सड्डू में विधायक प्रतिनिधियों और पार्षदों की तूती बोलती है। राजनीतिक संरक्षण के चलते मकान खाली कराने और किराए से मकान दिलाने वाले लोग भी बिल्डर बन गए है। किसी की बी जमीन को जबरदस्ती हथिया लेना, और विरोध करने पर झूठे केस में फंसाने का केल चल रहा है। सड्डू सामने कालोनी होने की वजह से बिल्डर ने तो अपने सडक़ पर डामरीकरण करवा लिया है लेकिन कचना के लोगों का कोई सुध लेने वाला नहीं है। जनता से रिश्ता ने पूर्व में भी इन बिल्डर माफियाओं के बारे में खुलासा किया था, राजधानी में इन दिनों माफियाओं का कब्ज़ा चल रहा है। माफिया हर क्षेत्र में हैं, जो शहर में अपनी मनमानी चला रहे हैं। पैसे के बल पर वे राजनीतिक पार्टियों में भी सक्रिय हैं जो ऊंचे ओहदे पर काबिज हो गए हैं। और अपने पावर के दम पर शहर की फिजां को खऱाब करने से भी बाज़ नहीं आ रहे है। राजधानी में नशा माफियाओं ने तो लोगों का जीना मुहाल कर रखा है। हर क्षेत्र में इन लोगों का कब्ज़ा है। राजधानी में नशा माफिया के बाद जमीन माफियाओं और बिल्डर माफिया द्वारा शहर की सरकारी जमीन के अलावा निजी जमीनों को भी नहीं छोड़ रहे हैं।सरकारी जमीन पर कब्ज़ा तो इनका सबसे आसान काम है निजी जमीनों को हथियाने में भी वे पीछे नहीं रहते। निजी जमीन मालिक चाह कर भी विरोध नहीं कर पाते है अगर किसी ने विरोध करने की हिमाकत की तो उनके गुर्गे उन जमीन मालिकों को धमकाने में भी पीछे नहीं रहते। हैं। राजधानी रायपुर और उससे लगे आस-पास के इलाकों में सरकारी खाली जमीनों पर कब्जा कर प्लाटिंग और हाउसिंग प्रोजेक्ट डेव्हल्प कर बड़ा बिल्डर कहलाने वाला रियल स्टेट कारोबारी सरकार और राजस्व विभाग को करोड़ों की हानि पहुंचा रहा हैं। अधिकारी भी इस मामले में कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि उनको उक्त बड़े बिल्डर की राजनीतिक पहुंच की जानकारी अच्छे से है। अपनी राजनीतिक रसूख और अधिकारियों से सांठगांठ कर ये भू-माफिया करोड़ों का प्रोजेक्ट लांच कर अपनी तिजोरी भर रहा हैं। सरकारी जमीनों से लगे किसानों की कृषि जमीनों को औने-पौनेे दाम पर खरीद कर सरकारी जमीनों की पटवारियों व राजस्व अधिकारियों की मिली भगत से फर्जी दस्तावेज तैयार कर कई बड़े-बड़े बिल्डर अपना धंधा चमका रहे हैं। ऐसे कई मामले सामने आए जिसमें बिल्डरों ने खरीदे हुए जमीन के बीच में आने वाली सरकारी जमीनों और सडक़ व रास्ते के जमीनों को दबा कर अपने आलिशान प्रोजेक्ट तैयार किए। सरकारी जमीन के साथ कई निजी जमीनों को भी कूटरचना कर इन बिल्डरों ने लोगों के साथ धोखाधड़ी की।
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। राजधानी में पिछले दिनों गोंदवारा में सरकारी जमींन पर अवैध प्लाटिंग कर रहे दम्पति को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, तब ऐसा लगा मानो अवैध रूप से सरकारी जमींन को बेचने वाले बिल्डरों पर अंकुश लगेगी। लेकिन हालात बयां कर रही है कि सिर्फ छोटे बिल्डरों पर ही इस प्रकार की कार्रवाई हो सकती है। क्योंकि बड़े बिल्डर जो राजनीतिक पार्टियों में भी अपना दखल रखने लग गए हैं और पार्टी के बड़े पदों पर काबिज हो गए है, उनके खिलाफ कोई शिकायत करने की हिम्मत नहीं कर पाता और अगर किसी ने कर दिया तो उसकी खैर नहीं साथ ही बिल्डर के खिलाफ पुलिस कोई करवाई नहीं करती। बिल्डरों ने शासन प्रशासन को भी अपने फायदे के हिसाब से काम करवाने लग गए हैं।
सड्डू से विधानसभा मार्ग पर सडक़ को ही हटाया
सड्डू से विधानसभा जाने वाले मार्ग में सड्डू नाले के आगे गणेश मंदिर कचना के पास मुख्य सडक़ को बिल्डरों के इशारे पर मोड़ दिया गया है। मजे की बात ये है कि सीधी सडक़ को बिल्डर को फायदा पहुंचने के गरज से ऐसा किया गया है,और अभी तक उक्त सडक़ पर डामरीकरण नहीं हुआ है। आसपास के रहवासियों ने बताया कि सैकड़ों बार विधायक और पार्षद को आवेदन दिया गया लेकिन उनके मुँह भी बंद कर दिया गया है। कचना के लोगों का कहना था की शहर में जरूर रहते हैं लेकिन स्थिति गांव से भी बदतर है। दिन भर गाडिय़ों का आना जाना लगा रहने के कारण धूल से जीना दूभर हो गया है। सड्डू में रहने वाले लोगों ने बताया कि धूल और बारिश के प्रदूषण से तरह-तरह की बीमारियों से ग्रसित हो रहे है। सांस दमा, चर्म रोग जैसी बीमारियों का संक्रमण सड्डू में तेजी से बढ़ रहा है। जिससे लोगों में आक्रोश है। हाल ही में हुई बेमौसम बारिश से जगह-जगह पानी भरने से लोगों का चलना दूभर हो गया है। रोड की मरम्मत नहीं होने से लोग हलाकान है।
निजी जमीन मालिक हलाकान
एक बड़े बिल्डर के खिलाफ शिकायत दर्ज करने में पुलिस भी पीछे रहती है। आम लोगों की जमीन पर कब्जे की शिकायतों पर न तो पुलिस कार्रवाई कर रहा है और न ही प्रशासन ही कारगर कदम उठा रहा है। पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए बिल्डरों ने सत्तापक्ष के नेताओं को भी साध रखा है। यही वजह है कि करोड़ों की जमीन हथियाने का खेल आउटर इलाके में चल रहा है। शहर के सबसे बड़े बिल्डर जो अपने हर प्रोजेक्ट में जंगल को किसी न किसी रूप में शामिल करता है उसने कबीरनगर हाऊसिंग बोर्ड में मकान खरीद कर पीछे रास्ता बनाया गया जो कि कानून के अंर्तगत अवैध माना जाता है। एक स्वीकृत ले आउट प्लान के अंदर दूसरा ले आउट प्लान के लिए रास्ता शासकीय जमीन से लेकर जाने का आरोप। रास्ते की जमीन को दबाकर अपना प्रोजेक्ट खड़ा किया, इसके अलावा 36 सिटी माल के पास निर्माणाधीन प्रोजेक्ट में भी सरकारी जमीन दबाने के साथ कचना रोड के रास्ते की शासकीय भूमि छोटे जंगल की भूमि और बड़े झाडों का जंगल अपने प्रोजेक्ट में अवैध रूप में कब्जा लिया। जिसकी उच्च स्तरीय जांच करने की उपरांत ही सच्चाई उजागर हो सकती है। सड्डू में नाले की जमीन पर अतिक्रमण किसी से छुपी नहीं है। बड़े बड़े अधिकारी सड्डू में रहते हैं जिन्हें इनका अतिक्रमण नहीं दिखना आश्चर्यजनक है। आउटर की जमीन निशाने पर अवैध प्लाटिंग को लेकर सबसे ज्यादा खेल आउटर इलाके में किया जा रहा है। कुछ साल पहले ही गोगांव, गोंदवारा, भनपुरी, सिलतरा में 25 एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन को ग्रीनलैंड में तब्दील करने का पर्दाफाश हुआ था। वहां कई लोगों ने सरकारी और घास जमीन पर अवैध प्लाटिंग और कब्जा कर लोगों को बेचने की कोशिश की थी। इन सभी जगहों की जमीन पर निगम ने बाउंड्रीवाल बनाकर उसे ग्रीनलैंड में तब्दील किया था। जिस कृषि भूमि पर बिना अनुमति के अवैध प्लाटिंग की गई है, खेती की जमीन पर अवैध प्लाटिंग होने पर पूरे क्षेत्र की जमीन को फिर से ग्रीनलैंड में बदला जाएगा। मास्टर प्लान में जो क्षेत्र कृषि या आमोद-प्रमोद का है और वहां अवैध प्लाटिंग की गई है उसे फिर से ग्रीनलैंड में तब्दील किया जाएगा। फर्जी दस्तावेज कर लेते हैं तैयार दूसरों की खाली जमीनों को जानबूझकर बिल्डर विवादों में लाते हैं। जमीन मालिक उस जमीन को खोने के डर से विवश होकर सस्ती दरों पर भी बेचने के लिए तैयार हो जाता है। ऐसे में मध्यस्थता निभाने के लिए क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि या बड़े और छुटभैय्ये नेता आगे आते हैं। उनके द्वारा इन जमीनों को अपने खास लोगों को सस्ती दरों पर दिलवा दिया जाता है। इस तरह से महंगी जमीन भी सस्ती दर पर भू-माफियाओं को मिल जाती है। ऐसी कई शिकायतें पुलिस के पास पहुंचती है, जिसमें जमीन पर जानबूझकर कब्जा करने या उसके फर्जी दस्तावेज तैयार करने का मामला सामने आता है। पुलिस ऐसे लोगों को चिह्नित जरूर करती है, लेकिन उन पर कार्रवाई करने में सालों लगा देती है।
आउटर पर बिल्डरों की नजऱ-शहर के बड़े बिल्डरों की नजऱ आउटर पर ज्यादा है। शहर से लगे माना, नवा रायपुर, मुजगहन, डूंडा, बोरियाखुर्द, बोरियाकला, सरोना, चंगोराभाठा, डूमरतालाब, गोगांव, गोंदवारा, बिरगांव, भनपुरी, सिलतरा, खम्हारडीह, कचना आदि इलाके की खाली जमीनों पर कब्जा कर प्लाटिंग करने के कई शिकायतें रायपुर और बिरगांव नगर निगम तक पहुंची है जिस पर कार्रवाई भी हो रही है लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ लीपापोती ही हो रही है। अवैध प्लाटिंग के मामले में नगरीय निकायों ने कई छोटे-बड़े बिल्डरों और सहयोगियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाए हैं। हालाकि दूसरों की जमीन पर जबरिया कब्जा कर उसे प्लाटिंग कर बेचने की कोशिश करने वाले बिल्डर, उनके पार्टनरों के राजनीतिक रसूख के चलते छोटी शिकायतों पर तो पुलिस और नगर निगम ने कार्रवाई की, लेकिन जिस जमीन पर बड़े भू-माफियाओं के नाम जुड़े निकले, उन शिकायतों को जांच के नाम पर या तो रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया या फिर पीडि़त पक्ष को कोर्ट जाने की सलाह देकर जिम्मेदारों ने अपने हाथ खींच लिए। खाली जमीनों-प्लाटों पर बिल्डरों का कब्जा रायपुर जिले में पिछले कई सालों से दूसरे की खाली और सरकारी जमीन पर कब्जा कर उसे बेचने का खेल चला आ रहा है। खासकर शहर के आउटर इलाके की खाली जमीन छोटे-बड़े बिल्डरों के निशाने पर है। प्रशासन चाहकर भी इस पर लगाम कसने में नाकाम है। हालांकि, कुछ शिकायतों पर नगर निगम अमले ने कार्रवाई भी की है, लेकिन ये वह जमीन है, जो सरकारी है।
राजनीतिक घुसपैठ कर सरकारी पटटा दिला रहे
भू-माफियाओं ने चेहरा-मोहरा बदल कर किसी तरह राजनीतिक घुसपैठ कर सरकारी पटटा देने के साथ फैक्ट्रियों के आसपास वाले जमीनों पर लोगों को कब्जा कराने में जुट गए है। सरकार के नए कानून पास किया है जिसमें उद्योग विभाग की जमीान पर काबिज लोगों पट्टा दिया जाएगा। इस कानून के बनते ही भू-माफिया ने चोला बदल लिया है। राजनीतिक संरक्षम के भू-माफिया अब बिल्डर हो गए है। जो फैक्ट्री और नालों के किनारे, या तालाब से लगी जमीन पर जब्बा करने वालों से सौदा कर धड़ाधड़ प्रोजेक्ट बनाकर राजनीतिक सोर्स का फायदा उठा रहे है। नए-नए बिल्डर से नेता बने भू-माफिया राजनीतिक सोर्स से पटवारी, तहसील, आरएआई को घेरकर सारे अवैध को वैध कर नामांकन और बटाकंन की पावर ऑफ अटर्नी लेकर सरकारी और घास भूमि को बेचने की फिराक में है।
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