जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। आरटीओ में अब आनलाइन सिस्टम होने के बाद भी दलालों के बगैर कोई काम नहीं होता। आरटीओ कार्यालय में लायसेंस बनाने व रिनेवल कराने से लेकर बसों एवं अन्य वाहनों के परमिट व फिटनेस देने तथा नाम परिवर्तन में जमकर लूट मची है। यह भी देखा गया है की बिना पैसे दिए काम नहीं होता। यहां हर काम ठेकेदारी पर चल रहा है। हालाकि अब सीधे परिवहन आयुक्त कार्यालय से परिमट जारी किया जा रहा है बावजूद कमीशन व अवैध वसूली बंद नहीं हुआ है। फिटनेस के लिए शुल्क के अलावा भी वाहन मालिकों से रकम मांगे जा रहे हैं। स्पेशल परिमिट के लिए तो बगैर चढ़ावे के बात ही नहीं बनती। दफ्तर में परिवहन विभाग के कर्मचारी सिर्फ कार्यालयीन कार्य में ही लगाए गए जबकि लायसेंस, फिटनेस से लेकर वाहन मालिकों से जुड़े कार्यो के लिए ठेकेदारों के लोग तैनात हैं। इतना ही नहीं तमाम प्रोसेस आनलाइन होने के बाद भी दलालों की सक्रियता पहले की तरह बनी हुई है।
ऑनलाइन प्रोसेस जटिल
ऑनलाइन प्रोसेस इतनी जटिल है कि आम आदमी इससे दूर भागता है। ऑनलाइन होने से घर बैठे अपना काम करवा सकते है, यह दावा सिर्फ सरकारी बनकर रह गया है, इससे परेशान उपभोक्ताओं को मजबूरी में ऑनलाइन प्रक्रिया से काम ना कर एजेंट के माध्यम से काम करवाना ही आसान लगता है। ऑनलाइन प्रक्रिया में नाना प्रकार के सवाल पूछे जाते है इन सब कारणों से लोग ऑनलाइन प्रक्रिया नहीं अपनाते साथ ही काम भी देरी से होता है। एजेंट हाथों-हाथ काम करा लेता है।
दलालों का आज भी दबदबा
आरटीओ कार्यालय में भले ही सभी कार्य अब आनलाइन होने का दावा किया जा रहा हो बावजूद आज भी वहां हर काम के लिए दलाल सक्रिय हैं। लायसेंस बनवाने व नवीनीकरण कराने के लिए भी लोगों को दलालों का ही सहारा लेना पड़ता है। समय की कमी व छोटे-छोटे कामों के लिए भी बार-बार की दौड़ और लंबा इंतजार के चलते लोग दलालों के माध्यम से ही इस तरह के काम करवाने मजबूर हैं। हालाकि दलाल भी अब सारा प्रोसेस आनलाइन ही करते हैं लेकिन उनके माध्यम से काम एक तय समय में हो जाने का आधार बन जाता है। इसका दलाल भी फायदा उठाते है और काम के लिए तय शुल्क का तीन गुना वसूलते हैं।
टैक्स नहीं पटाने भी सेंटिग
रायपुर आरटीओ में मोटी फीस लेकर पंजीयन निरस्त करने का भी खेल बड़े पैमाने पर धड़ल्ले से हो रहा है, अगर किसी ट्रांसपोर्टर के पास चार बसें है और उसमें से किसी एक का टेक्स नहीं पटता है तो भी उसका पंजीयन निरस्त नहीं किया जा सकता नियमानुसार टैक्स पेड होने के बाद ही पंजीयन निरस्त हो सकता है, बावजूद किसी वाहन मालिक को अपनी वाहन कबाड़ में बेचना हो तो वह टैक्स का भुगतान नहीं करता और मोटी रकम देकर उक्त वाहन का पंजीयन निरस्त करवा लेता है, जबकि नियमानुसार टैक्स पटने के बाद ही उक्त वाहन का पंजीयन निरस्त होना चाहिए।
ब्लैक लिस्टेड वाहनों को स्पेशल परमिट
आरटीओ रायपुर में ऐसा काम हो रहा है कि अन्य जिले के आरटीओ ने जिस वाहन को ब्लैक लिस्टेड कर दिया हो और जो टैक्स जमा नहीं किये हैं उसे प्रदेश में कही भी परमिट नहीं मिल सकता लेकिन रायपुर आरटीओ दफ्तर में उसे स्पेशल परमिट मिल जाता है। ऐसीे कई गाडिय़ां है जो ब्लैक लिस्टेड होने और टैक्स जमा नहीं करने के बावजूद कई स्पेशल परमिट पर दौड़ रही हैं। इस तरह के कार्यों से अधिकारियों का भ्रष्टाचार साफ नजर आता है।
प्रशासनिक अधिकारियों का कमांड नहीं
आरटीओ कार्यालय में ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट का मूल अधिकारी का न होना भी परेशानी का सबब है। आरटीओ डेपुटेशन में जो भी अधिकारी आते है, वे राज्य प्रशासनिक सेवा के होते हैं, जब तक वे काम समझते है उनका ट्रांसफर कर दिया जाता है। जब तक इस व्यवस्था को बदला नहीं जायेगा इसमें सुधार की गुंजाइश नहीं के बराबर है और भर्राशाही चलते ही रहेगी। पहले सीधे आरटीओ अधिकारी ही बैठते थे, उन्हें सब काम की जानकारी होती थी, इस वजह से काम बिना परेशानी के होते रहता था। जब से प्रशासनिक अधिकारियों को डेपुटेशन पर आरटीओ बनाकर भेजने का प्रचलन शुरू हुआ है तब से वाहन मालिकों की परेशानी बढऩे के साथ लाइसेंस /परमिट के लिए अवैध वसूली का खेल चल रहा है।
ऐसे चलता है अवैध वसूली का खेल
छत्तीसगढ़ में ट्रांसपोर्ट विभाग में अधिकारियों, कर्मचारियों की पोस्टिंग 6 माह के लिए होती है। पोस्टिंग के लिए कर्मचारी लाखों रुपए देते हैं। आटीओ में तबादला होते ही वे टैक्स वसूली छोड़कर अपनी जेबें भरने में लग जाते हैं। दूसरे राज्यों से आने वाली गाडिय़ों से एंट्री के नाम पर अवैध वसूली किया जाता है। अवैध वसूली के लिए लठैतों द्वारा ट्रक संचालकों को टोकन दिया जाता है। टोकन इस बात का संकेत होता है कि उपर का पैसा मिल गया है। टोकन दिखाकर ट्रक चालक ओवरलोड सामान भरकर बड़ी आसानी से बार्डर पार कर लेते हैं। अधिकारियों की इस अवैध वसूली का भार ट्रंासपोर्टरों को पड़ता है जिसके चलते वे ट्रांसपोर्टिग चार्ज बढ़ा देते हैं। ट्रांसपोर्टिंग चार्ज बढऩे से वस्तुओं की किमत भी बढ़ जाती है जिसका सीधा असर जनता पर ही पड़ता है।
नन्हा-मुन्ना राही हूं, आरटीओ का सिपाही हूं...
आरटीओ कार्यालय में कुछ लोगों का ही कब्जा है जिनके कमांड और निर्देश पर ही वहां की सारी गतिविधियां संचालित होती हैं। ऐसा ही एक व्यक्ति भाजपा शासन के 15 सालों में वहां का सर्वेसर्वा बना रहा, कार्यालय में उसकी तूती बोलती रही। अब कांग्रेस शासन काल में अब उसका रुतबा और बढ़ गया है। इतना ही नहीं निष्ठा दिखाने के लिए उसने अपने परिवार वालों को कांग्रेस प्रवेश भी करवा दिया है। वह खुलेआम लोगों से कहता फिरता है कि आरटीओ में वह जो चाहे कर सकता है कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। वह न तो परिवहन विभाग का नियमित अधिकारी-कर्मचारी है और नही डेपुटेशन पर भेजा गया है कांट्रेक्ट पर ही उसकी पूरी दुकानदारी चलती है बावजूद वह सबसे पावरफुल है और उसी के इशारे पर ही सब कार्य संपादित होता है। वही दिन को रात और रात को दिन कहेगा तो कार्यालयीन अमले को यही कहना होगा। आरटीओ दफ्तर में एक बाहरी व्यक्ति का इतना अधिकार संपन्न होना हैरान करने वाला है। ऐसी भी चर्चा है कि उक्त फर्जी डिग्रीधारी से स्टेट के बड़े अधिकारी एवं आईपीएस भी दिशा-निर्देश लेते हैं।
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