छत्तीसगढ़

भूपेश बघेल का मास्टर स्ट्रोक साबित होगा आरक्षण विधेयक

Nilmani Pal
4 Dec 2022 6:01 AM GMT
भूपेश बघेल का मास्टर स्ट्रोक साबित होगा आरक्षण विधेयक
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जसेरि रिपोर्टर

खैरागढ़ और मरवाही में इसी प्रकार दॉव चलकर विपक्ष को मात दे चुके हैं सीएम

रायपुर/भानुप्रतापपुर। सीएम भूपेश बघेल राजनीति के ऐसे धाकड़ खिलाड़ी है जो चुनाव मैदान में बड़े-बड़े पहलवानों को पछाडऩे की कूबत रखते है। आरक्षण विधेयक लाकर उपचुनाव में भाजपा को चारों खाने चित कर दिया है। मात्र औपचारिकता ही रह गई है जो आठ तारीख को निभाई जाएगी। आरक्षण विधेयक पर जल्द ही राज्यपाल की मुहर लग जाएगी और नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में आदिवासियों को लाभ मिलना शुरू हो जाएगा। इस बात का संदेश पूरे प्रदेश में पहुंच चुका है कि भूपेश सरकार आदिवासियों के साथ सभी वर्गों की हितैषी है। प्रदेश में पिछले एक महीने से सर्वआदिवासी के आरक्षण आंदोलन ने बस्तर से लेकर सरगुजा तक जो तूफान उठा उसे विपरीत दिशा में मोडऩे में कामयाब हो गए है। 2 दिसंबर को विधानसभा के विशेष सत्र में 76 प्रतिशत आरक्षण संशोधन विधेयक पारित कर राज्यपाल की प्रेषित कर दिया है। भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव में प्रचार का दौर ख़त्म हो गया है अब डोर टू डोर संपर्क में राजनीतिक दलों के प्रत्याशी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। सर्वआदिवासी समाज के दखल से दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टी सकते में आ गए थे लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि चुनाव केवल भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होने वाला है। प्रारंभ में सर्व आदिवासी समाज का केंडिडेट तय होने के पहले काफी तादात में आदिवासी समुदाय से लोग चुनाव लडऩे की घोषणा का दिए थे और समुदाय की बैठक में सर्वसम्मति से एक प्रत्याशी उतरे जाने की चर्चा चली थी लेकिन अब कांग्रेस भाजपा को मिलकर कुल सात लोग किस्मत आजमा रहे हैं इसके बावजूद त्रिकोणीय मुकाबला भी दिख नहीं रहा है बल्कि सिर्फ कांग्रेस और भाजपा ही मैदान में दिख रहे हैं, हालांकि सर्व आदिवासी समाज के अकबर राम कोर्राम भी समर्थकों के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं लेकिन उनका प्रभाव कुछ क्षेत्र में ही दिख रहा है जो दोनों पार्टी को टक्कर देने में नाकाफी दिख रहा है। पूछने पर लोग यही कह रहे हैं की कुछ दिन बाद आम चुनाव होना है ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी जो कि दिवंगत पूर्व विधायक की धर्म पत्नी हैं तो उनके द्वारा किए गए अधूरे काम पूरा करने में कोई परेशानी नहीं होगी।

भानुप्रतापपुर उपचुनाव नामांकन के पहले आरक्षण में कटौती को लेकर आदिवासी समाज की अस्मिता और प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर प्रत्याशी खड़ा करने की चर्चा चली थी, लेकिन लोगों का कहना है कि आदिवासी समाज आरक्षण को लेकर मुखर थी और उन लोगो ने कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों को सबक सीखने की मुहिम भी छेड़ दिए थे, लेकिन भूपेश सरकार द्वारा विधानसभा में आदिवासी समुदाय को 32 प्रतिशत आरक्षण देने का विधेयक पास कर एक प्रकार से सर्व आदिवासी समाज के विरोध की धार को कम कर दिया है। विधानसभा में सर्वसम्मति से आरक्षण विधेयक का पास होना यह दर्शाता है कि भाजपा भी आदिवासी समुदाय के कोप भाजन से बचने और लाभ हानि को देखते हुए विरोध नहीं कर सकी। हालांकि नेता प्रतिपक्ष यह जरूर बोल रहे हैं कि सत्ता पक्ष जल्दबाजी में आरक्षण बिल पेश किया है और बहुमत का दुरूपयोग किया है लेकिन खुलकर विरोध करने से बचते रहे। एकाएक आरक्षण में कटौती ने आदिवासियों को जगा दिया था, लेकिन भूपेश बघेल के राजनीतिक सूझबूझ ने सबको फिर से ठंडा कर दिया है। राजनीतिक जानकार इसे भूपेश बघेल का मास्टर स्ट्रोक ही मान रहे हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे खैरागढ़ और मरवाही उपचुनाव में भूपेश बघेल द्वारा जिला बनाने का मास्टर स्ट्रोक चलाया था अब भानुप्रतापपुर उप चुनाव में सर्वसम्मति से 32 आरक्षण विधेयक पास करवाकर एक प्रकार से भानुप्रतापपुर सीट भी कांग्रेस की झोली में डाल लिया। चुनाव प्रचार में गए नेता इसी बात को लेकर घर-घर बता रहे हैं की प्रदेश की भूपेश सरकार ही आदिवासियों का सच्चा हितैषी है। जिसका असर भी भानुप्रतापपुर उपचुनाव में देखने को मिलने लगा है। आरक्षण में कटौती को लेकर सर्वआदिवासी समाज कोई बड़ा फैसला लेकर भाजपा-कांग्रेस को संकट में डाल सकता था लेकिन आरक्षण विधेयक पास होने के बाद सब धरा रहा गया। आरक्षण में कटौती के बाद जिस प्रकार से सर्व आदिवासी समाज के लोग लामबंद हो रहे थे उससे दोनों प्रमुख दलों के रणनीतिकारों के पेशानी में बल पड़ते दिखाई दे रहे थे। लोगों ने बताया कि आदिवासी समाज के अंदर चल रही बैठकों से जो हलचल सामने आई थी उससे संकेत मिल रहा था कि भानुप्रतापपुर उपचुनाव को सर्वआदिवासी समाज एक परीक्षण की तरह लेने की तैयारी में है। गांव-गांव में प्रत्याशी उतारने की जगह संगठन केवल एक प्रत्याशी खड़ा कर सकता है। ताकि चुनाव के नतीजों से साफ हो पाए कि सामाजिक आधार पर संगठन को कितने वोट मिल सकते हैं। इस प्रयोग के आधार पर समाज अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी करेगा। लेकिन अब ऐसा लग रहा है भूपेश सरकार ने उनको मुद्दाविहीन कर दिया है। गौरतलब है कि तीन माह पूर्व हाईकोर्ट ने राज्य शासन के आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें आदिवासियों की 32 प्रतिशत आरक्षण घटाकर 20 प्रतिशत हो गया था। इस मुद्दे पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं लगा कर आरक्षण को लेकर आदिवासी समाज अपने आंदोलन को और तेज करने की तैयारी कर रहा था कि भानुप्रतापुर में उपचुनाव कराने की घोषणा हो गई। राजनीतिक जानकार यह भी बता रहे हैं कि विधानसभा में 76 प्रतिशत आरक्षण विधेयक पास होने से अब यह चुनाव कांग्रेस के लिए आसान साबित होगा। लोग स्व. मनोज मंडावी के अधूरे काम को पूरा करने के लिए कांग्रेस प्रत्याशी को ही विधानसभा में भेजने के मूड में आ गए है। क्षेत्र की जनता से चर्चा करने पर उन्होंने इसी बात पर ही जोर दिया। मुख्यमंत्री भी कई चुनावी सभाओं को सम्बोधित कर चुके हैं हालांकि भाजपा और सर्व आदिवासी समाज के नेताओं ने भी कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी हैं दिन रात चुनावी सभा आयोजित कर सीएम भूपेश को कोस-कोस कर भाजपा का चुनाव मैदान में होने का अहसास करा चुके हैं। लेकिन जनता अभी भूपेश सरकार के साथ दिखाई दे रही है। अब देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठेगा 8 दिसंबर को शह और मात का पता चल जायेगा।

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