- कोराना महामारी को अवसर बनाकर धंधेबाजों ने लूटा
- इस दवा के लिए लोग घंटो लाइन में लग रहे थे
- लोगों ने 2200 के इंजेक्शन को 30-35 हजार में भी खरीदा
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। कोरोना काल में रेमडीसिविर के इंजेक्शन को लेकर देश में खूब मारामारी रही। इस दवा के लिए लोग मेडिकल स्टोर के चक्कर काटते रहे और किसी भी कीमत पर रेमडीसिविर का इंजेक्शन खरीदने को तत्पर थे। लेकिन फिर भी लोगों को यह दवा नहीं मिल रही थी। देश में कोरोना की दूसरी लहर से हाहाकार मचा हुआ था। कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा था। इस बीच देश में अचानक रेमडिसिविर दवा चर्चा में आई जिसे गंभीर मरीजों को लगाने के लिए सरकार ने अनुमति दी थी। इस दवा की कमी कई राज्यों में पाई गई है। इस कारण कोरोना मरीजों के इलाज में मुश्किलें आईं। कोरोना काल में रेमडेसिविर दावाओं को लेकर मारामारी की स्थिति रही। जिसे रेमडेसिविर की ज़रूरत नहीं थी वो भी इस दवा के लिए लाइन लग रहे थे। इस दवा के लिए लोग मेडिकल स्टोर का चक्कर काट रहे थे लेकिन फिर भी लोगों को यह दवा नहीं मिल रही थी।
क्या है रेमडेसिविर
ये एक एंटीवायरल दवा है, जिसे अमेरिका की दवा कंपनी गिलियड साइंसेज ने बनाया है। इसे आज से करीब एक दशक पहले हेपेटाइटिस सी और सांस संबंधी वायरस का इलाज करने के लिए बनाया गया था, लेकिन इसे कभी बाजार में उतारने की मंजूरी नहीं मिली। लेकिन कोरोना के दौर में रेमडेसिविर इंजेक्शन को जीवन रक्षक दवा के रूप में देखा गया। यही कारण है कि रेमडीसिविर इंजेक्शन को लोग महंगी कीमत पर भी खरीदने को तैयार थे। रेमडेसिविर इंजेक्शन का इस्तेमाल कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में किया जा रहा था। हालांकि, कोरोना के इलाज में इसके प्रभावी ढ़ंग से काम करने को किसी ने मान्यता नहीं दी है। ङ्ख॥ह्र ने भी ये कह दिया था कि रेमडेसिविर कोरोना का सटीक इलाज नहीं है। इसके बावजूद कोरोना संकट के दौरान इसकी बिक्री में काफी उछाल आया। भारत में इस दवा का प्रोडक्शन सिप्ला, जाइडस कैडिला, हेटेरो, माइलैन, जुबिलैंट लाइफ साइंसेज, डॉ रेड्डीज, सन फार्मा जैसी कई कंपनियां करती रही हैं। अमेरिका की गिलियड साइंसेज कंपनी ने रेमडेसिविर को इबोला के ड्रग के रूप में विकसित किया था, लेकिन अब माना जाता है कि इससे और भी तरह के वायरस मर सकते हैं। इसमें नया नाम कोरोना वायरस का भी जुड़ गया है।
क्यों हुई देश में किल्लत?
देश में कोरोना की दूसरी लहर के कारण मरीजों की संख्या में भारी बढ़ोतरी देखने को मिली इस दौरान कोरोना के गंभीर मरीजों के लिए रेमडेसिविर की मांग ज्यादा बढ़ गई। 2020 के अंत में कोरोना के नए मामलों में कमी आऩे के बाद रेमडेसिविर दवा का उत्पादन कम कर दिया गया था। इस दौरान भारत ने करीब 10 लाख से ज्यादा रेमडेसिविर इंजेक्शन अन्य देशों को निर्यात कर दिया था। देश में कोरोना की किल्लत का एक कारण रेमडेसिविर इंजेक्शन की जमाखोरी और कालाबाजारी की समस्या भी रही। ड्रग स्टाकिस्ट और सप्लायरों ने जहां जमाखोरी और कालाबाजारी से इसका कृत्रिम अभाव पैदाकर महामारी में मुनाफा कमाया वहीं अस्पतालों और उसके कर्मचारियों ने रेमडेसिविर इंजेक्शन को दलालों के माध्यम से बाजार में बेचकर लोगों की मजबूरी का फायदा उठाया। देश के अलग-अलग राज्यों से रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी और चोरी की की घटनाएं सामने आई जिससे समस्या और जटिल हुई। हालाकि कोरोना की तीसरी लहर में रेमडेसिविर का इस्तेमाल कम हुआ और अस्पतालों ने इसका इस्तेमाल नहीं किया।
नकली इंजेक्शन भी खपाए
महामारी में लोगों की मजबूरी का दवा निर्माताओं ने भी खूब फायदा उठाया। कुछ मौकापरस्त दवा निर्माताओं ने रेमडेसिविर का नकली इंजेक्शन भी स्टाकिस्टों व सप्लायरों के माध्यम से बाजार में उतारे। ऐसे कई मामले भी सामने आए। मध्यप्रदेश में तो बाकायदा गिरोह काम कर रहा था। इंदौर-जबलपुर में कई मेडिकल व्यवसाय से जुड़े लोग नकली इंजेक्शन खपाते धरे गए। यूपी सहित कई राज्यों में भी इस तरह के मामले आए। जिसकी जांच भी कराई गई। छत्तीसगढ़ में भी एक कारोबारी ने गुजरात की उसी कंपनी को दवा के लिए आर्डर दिया था जिसने नकली इंजेक्शन सप्लाई किए। हालाकि उसने आर्डर सप्लाई होने से पहले इसकी शिकायत पुलिस में की। इस मामले की जांच का अता-पता नहीं है।
अस्पताल संचालकों ने भी रेमडेसिविर इंजेक्शन को लेकर लोगों को खूब लूटा। सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई स्टाक इन्होंने अपने कर्मचारियों के माध्यम से बाजार में कई गुनी महंगी कीमत पर लोगों को बेचे। ऐसे कई मामले पकड़ाए और इंजेक्शन भी बरामद हुए। कुछ अस्पतालों ने तो मृत मरीजों के नाम पर भी इंजेक्शन इश्युकरवाकर जरूरतमंद मरीजों को दस-दस गुना ज्यादा कीमत पर बेचे। अपनों को बचाने लोग भी इंजेक्शन के लिए कोई भी कीमत चुकाने मजबूर थे।