![व्यंग्य कविता पढ़िए व्यंग्य कविता पढ़िए](https://jantaserishta.com/h-upload/2024/05/25/3749054-untitled-75-copy.webp)
रायपुर। मोखला निवासी रोशन साहू ने व्यंग्य कविता ई-मेल किया है।
सुबह -सुबह मिश्राजी
आज घर मेरे आए।
पढ आए थे अखबार
मन ही मन बुदबुदाए।।
मैंने कहा -महराज
अब तोल तोलकर बोलने का
गुजर गया जमाना
आप कुछ तो बोलिये?
अब तो मुँह खोलिये?
कहने लगे गुरुजी-
अब आप ही बताओ?
भाषा बड़ी या भाव ?
मुझे भी बताओ।
मैंने कहा भाव?
भाषा से तो हो जाता है
बड़ा- बड़ा तमाशा
पर ये भी सच है
जो दिल में है वो
जुबान पर आ ही जाता है
यहीं बखेड़ा खड़ा हो जाता है।
पर यह भी सही है कि
जो दिल मे नही यदाकदा
वो भी जुबां पे आ जाता है।
ऐसी बात ही तो
जुबान का फिसलना कहलाता है।
पर समझदार लोग
ऐसी बातों को दिल मे कहाँ लेते हैं?
वो तो कर्मपथयोगी होते हैं
ऐसी बातों को तवज्जो कहाँ देते हैं?
मैं और कुछ कह पाता
अब तो उखड़ गए मिश्राजी
मुझ पर ही गुर्राए ।
गुरुजी आप तो
भाषा और भाव मे सिर न खपायें।
सारी गड़बड़ी स्पेलिंग मिस्टेक की है
बच्चों से वही ठीक करवायें।