जीवन रूपी युद्ध भूमि पर विजय प्राप्त करने की कला ही राजयोग
भिलाई। 30 मई से प्रारंभ ब्रह्माकुमारीज़ द्वारा आयोजित "तनाव से मुक्ति"एक नई उड़ान शिविर के पांचवें दिन बिलासपुर से पधारी मुख्य वक्ता ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज मनुष्य मन की शांति के लिए इधर-उधर भटक रहा है पर वास्तव में शांति हमारा निजी संस्कार है इसके लिए इधर-उधर भटकने की जरूरत नहीं। स्वयं परमात्मा द्वारा बताये गये सृष्टि चक्र के ज्ञान को स्पष्ट करते हुए कहा कि वर्तमान समय सृष्टि एक वैश्विक परिवर्तन की ओर खड़ी है जिसमें भारत पुनः विश्व गुरु बनने जा रहा है ऐसे में अगर हम इस परिवर्तन के निमित्त बन जाए तो यह हमारा कितना सौभाग्य होगा।
तत्पश्चात महाभारत में वर्णित 'अर्जुन का युद्ध भूमि में श्रीकृष्ण को अपना सारथी चुनने' के सुन्दर वृतांत का आध्यात्मिक रहस्य स्पष्ट करते हुए कहा कि जिस तरह मात्र 5 पांडवों ने 100 कौरवों की सेना पर जीत पाई क्यूंकि उनके सारथी स्वयं श्रीकृष्ण थे, ठीक उसी भांति आप भी उन मुट्ठी भर लोगों में से हैं जो इस मुक्तिधाम में उपस्थित हुए हैं और परमात्मा का सत्य परिचय प्राप्त कर रहे हैं। कहा जिस तरह 'अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहा था कि वे जानते हैं कि धर्म क्या है पर उस पर चलने की ताकत नहीं है' उसी तरह आज सभी मनुष्य आत्माओं की भी यही मन: स्थिति है क्यूंकि परमात्मा की सत्य पहचान व उनसे यथार्थ सम्बंध नहीं है अतः उन्हें यथार्थ रूप से पहचान उनके निर्देशों पर चलना वा अपने जीवन रूपी युद्ध भूमि पर विजय प्राप्त करने की कला ही राजयोग हमें सीखाता है।
तत्पश्चात कैसे सर्व धर्मों में एक निराकार परमात्मा की ही मान्यता है यह बताते हुए उनका स्पष्ट परिचय दिया। एक गृहस्थ व्यक्ति का हास्यजनक उदाहरण देते हुए बताया कि 'एक व्यक्ति ने कहा मेरे घर में शांति है पर मेरे मन में शांति नहीं है! किसी के पूछने पर की ऐसा कैसे हो सकता? तो व्यक्ति ने कहा की शांति मेरी धर्मपत्नी का नाम है जो मेरे घर में अशांति मचाती है इसलिए मेरे घर में शांति है पर मेरे मन में शांति नहीं है।' इस तरह हंसी-खेल में बड़ी ही मूल्यवान बात बतायी कि आज किसी भी व्यक्ति का नाम कर्तव्य-वाचक नहीं है पर केवल एक निराकार परमात्मा का नाम ही कर्तव्य-वाचक है। यह कहते हुए भारत में प्रसिद्ध 12 शिव ज्योतिर्लिंगों के 12 कर्तव्य वाचक नामों को स्पष्ट किया। अंत में 2 मिनट राजयोग मेडिटेशन का सुंदर अभ्यास कराते व वरिष्ठ राजयोगिनी आशा बहनजी द्वारा 'मैं परमात्मा का बच्चा हूं' यह अवगत कराते इस पर एक संक्षिप्त अनुभव साझा किया और सत्र को पूरा किया।