बृजमोहन के जाने के बाद दक्षिण विधान सभा बरकरार रखना बीजेपी के लिए बनी चुनौती
उत्कल और मुस्लिम वोटर्स का रूझान ही तय करता है दक्षिण विस के लिए हार-जीत
ब्राह्मण और ओबीसी वोट महत्वपूर्ण भूमिका में
किसी भी पार्टी के लिए सबसे कठिन और खर्चीला विधानसभ क्षेत्र दक्षिण ही है
Brijmohan Agrawal बृजमोहन के बिना दक्षिण विधानसभा में क्या होगा...?
रायपुर raipur news । अब चुनाव चाहे सत्ता पक्ष के लिए हो या विपक्ष के लिए, बहुत ही खर्चीली हो गई है। बात हो रही है रायपुर दक्षिण विधानसभा की जहां आगामी कुछ दिनों बाद उपचुनाव होना है। तो वहां खर्चे की बात सबसे हट कर है। वैसे तो बृजमोहन का नाम लोकसभा के लिए फाइनल हुआ तब से दावेदारों में सुगबुगाहट बढ़ गई थी । रायपुर लोकसभा के लिए चुन लिए गए भाजपा के कद्दावर नेता और अविभाजित मध्यप्रदेश में भी मंत्री रहने वाले बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफा देने से खाली हुए रायपुर दक्षिण विधानसभा में दावेदारों की फेहरिस्त तो काफी लम्बी है लेकिन भाजपा हाई कमान जिसके नाम पर मुहर लगाए वही चुनाव लड़ सकता है। चूँकि राज्य में भाजपा की सरकार है और यह उप चुनाव है ऐसे में किसी के बागी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। लेकिन भाजपा हाई कमान अभी से ऐसे प्रत्याशी की तलाश में है जो बृजमोहन की कमी पूरी करे और जिसकी दक्षिण विधानसभा के लोगों से आत्मीयता से जुड़ाव हो। इसकी वजह भाजपा के सूत्र बताते हैं कि ऐसा प्रत्याशी मिलने से आगामी 20 से 25 साल तक भाजपा उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर सके। जैसा बृजमोहन अग्रवाल ने प्रतिनिधित्व किया था। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात ये है कि चुनाव में अधिक से अधिक खर्च कर सकने वाला सक्षम प्रत्याशी भी हाई कमान तलाश रही है जो सरकार के भरोसे ही न बैठा रहे और अपने व्यक्तिगत स्तर पर भी खर्च कर सके। सिफऱ् बृजमोहन को चुनाव संचालक बना देने मात्र से भी वे खजाने मुंह उतना नही खोलेंगे जितना वे अपने स्वयं के चुनाव में खोलते हैं। उनके इस खर्च को देखते हुए दक्षिण से कोई कांग्रेसी चुनाव नही लड़ता बल्कि एक डमी कैंडिडेट की तरह ही रहता है। ऐसी स्थिति में यदि प्रत्याशी बृजमोहन के पसंद का हो तो बृजमोहन खर्चा भी कर सकते हैं क्योकि वे बार बार बोलते हैं की दक्षिण से उनका लगाव परिवार जैसा है और किसी भी कीमत में वे दक्षिण विधानसभा को हाथ से जाने नहीं देना चाहते। ऐसे प्रत्याशी की तलाश के लिए भाजपा संगठन लोगों से राय भी ले रही है और अपने स्तर पर सर्वे भी करा रही है। वैसे भी भाजपा हाई कमान हर चुनाव में नए नए प्रयोग के लिए जानी जाती है भाजपा शीर्ष नेतृत्व यदि दक्षिण में प्रयोग करे तो ऐसा लगता है कि ये प्रयोग परेशानी का सबब न बन जाये। छत्तीसगढ़ की राजनीति को करीब से देखने और समझने वालों का मानना है कि दक्षिण विधानसभा में कोई प्रयोग बिना बृजमोहन के मदद या सलाह के बिना अधूरी मानी जाएगी। साथ ही प्रत्याशी चयन में जितनी देर होगी कांग्रेस को अपनी जड़ें ज़माने में मदद मिलेगी।
news रायपुर दक्षिण से किसे टिकट मिलेगी इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। यह भी हो सकता है की बृजमोहन के छोटे भाई विजय अग्रवाल जो उनके साथ कदम से कदम मिलाकर दक्षिण विधानसभा के लिए काम भी करते थे, मजे की बात है की वे राजनीति में नहीं होने के बावजूद दक्षिण विधानसभा के लोगो की समस्याओ के लिए आगे रहते थे इस लिहाज से उनको भी चुनाव मैदान में उतार दें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। या फिर एकदम नए नवेले कार्यकर्त्ता को भी पार्टी वहां उतर सकती है। हालांकि भाजपा के बड़े नेता भी चुनाव लडऩे की इच्छा रखते हुए लाबिंग कर रहे हैं। इनके सामने आने से छोटे कार्यकर्ताओ और नेताओं की बेचैनी बढ़ गई है क्योकि इस चुनाव में स्वच्छ छवि के आलावा धनकुबेर होना भी पैमाना माना जा रहा है जो हर किसी के बस की बात नहीं है। जानकारी के अनुसार दावेदारी करने वाले नेता, पदाधिकारी और कार्यकर्ता टिकट के लिए दिल्ली आना जाना चालू भी कर दिए हैं। और रायपुर प्रवास के दौरान हुई मुलाकात के जरिये परिचय को भी भुनाना चाहते हैं और किसी भी प्रकार से टिकट हथियाना चाहते हैं। chhattisgarh
कांग्रेस से कौन होगा प्रत्याशी
कांग्रेस के लिए खोने जैसा कुछ नहीं है। क्योंकि पिछले आठ से नौ बार से लगातार भाजपा का ही कब्ज़ा है दक्षिण विधानसभा मे, ऐसी स्थिति में कांग्रेस में ज्यादा घमासान होने का अंदेशा है। कांग्रेस के दावेदार भी अभी से सक्रिय होकर दिल्ली दौड़ लगाना चालू कर दिए हैं।
देर करने से परेशानी बढ़ सकती है
राज्य में भाजपा ही सरकार होने के वजह से और भाजपा का अभेद किला माने जाने की वजह से स्वाभाविक है भाजपा में टिकटार्थियों की लम्बी लाइन लगी है इसके वजह से ही प्रत्याशी का नाम फाइनल करने में देरी हो रही है। प्रत्याशी चयन में देरी करना भाजपा को जरूर चिंता में डालने वाला कदम हो सकता है। दूसरी ओर कुछ भाजपाई बताते हैं कि यदि आसानी से चुनाव जीतना है तो बृजमोहन अग्रवाल के पसंद का आदमी हो तो बेहतर हो सकता है इससे वे चुनाव में खर्चा भी करेंगे और भाजपा का अभेद किला को बरकऱार भी रखेंगे। देखा जा रहा है की दक्षिण से उनका लगाव कुछ ज्यादा है यही हाल मतदाताओं का भी है, वहां के मतदात चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान सभी बृजमोहन को दिल से चाहते हैं। और चुनाव परिणाम बताते हैं कि सभी उनके पक्ष में जमकर वोट भी करते हैं।
प्रशासन तैयार है चुनाव के लिए
हालांकि अभी रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव के लिए अभी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है लेकिन राजनीतिक जानकर बताते हैं कि नगरीय निकाय चुनाव के समय चुनाव तिथि घोषित होने का अनुमान है। जिसके लिए प्रशासन ने अपनी तैयारी लगभग कर रखी है।
बृजमोहन को विरोधी भी कराते हैं कैश
दक्षिण विधानसभा को लेकर जनमानस में एक बात घर कर गई है कि बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ़ किसी भी पार्टी का हो या निर्दलीय हो सबकी नजऱ उनके खजाने में होती है। दरअसल बृजमोहन चुनाव को हल्के में नहीं लेते। ख़ुद का चुनाव हो या किसी दूसरे को चुनाव जिताने की बात हो। यानी चुनाव संचालक बन कर उसी शिद्दत से काम करते हैं जैसे ख़ुद ही चुनाव लड़ रहे हों। दूसरी बात कांग्रेसियों को भी मालूम होता है कि उनका प्रत्याशी बिक गया है ऐसी स्थिति में उनके नेता,कार्यकर्ता भी पीछे दरवाजे से बंगले के परिक्रमा करते देखे जाते हैं। दक्षिण विधानसभा में देखा गया है कि किसी भी तरह से टिकट मिल जाय तो पांच से दस करोड़ का इंतजाम हो गया मानते हैं। इन सब धारणा को मतदाता भी समझने लगे हैं ऐसे में थोक में बृजमोहन को वोट करते हैं चुनाव परिणाम तो यही कहता है। लेकिन ऐसा सब चार पांच चुनाव से ही देखने को मिल रहा है जब टटपुंजिये नेताओं को टिकट दिया गया तब से ऐसी स्थिती बनी है, उसके पहले ऐसी स्थिति नही थी।