धमतरी। ग्रीष्मकालीन फसलों की कटाई पूर्णतः की ओर है। धान फसल कटाई के बाद खेत में बचे फसल अवशेष को जलाने की घटनाए होती रहतीं हैं, जिससे वातावरण में जहरीली गैस जैसे-मीथेन, कार्बनमोनोऑक्साईड, नाइट्राक्साईड के फेलने से प्रदूषण फेलता है, जो मानव के साथ-साथ पशुओं के लिए भी हानिकारक है। फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में उपलब्ध सूक्ष्म जीव के नष्ट होने पर उसकी उर्वरता क्षमता कम हो जाती है, साथ ही मित्र जीव जैसे-केंचुएं, मकड़ी इत्यादि नष्ट हो जाते हैं। इसके मद्देनजर उप संचालक कृषि मोनेश साहू ने किसानों से अपील किया है कि वे पराली नहीं जलाएं एवं पर्यावरण को सुरक्षित रखने में सहयोग प्रदाय करें।
उप संचालक ने बताया कि फसल अवशेष जलाने का प्रकरण शासन के संज्ञान में आता है तो अर्थदण्ड का प्रावधान किया गया है। इसके तहत 2 एकड़ कृषिभूमि धारक किसानों पर 2500 रूपये, 2 से 5 एकड़ तक कृषि भूमि धारक किसानों पर 5 हजार रूपये तथा 5 एकड़ से अधिक भूमिधारक किसानों पर 15 हजार रूपये जुर्माना एवं सजा का प्रावधान है। उन्होंने किसानों से फसल अवशेष को जलाने की बजाय उचित प्रबंधन करने के सुझाव दिए।
इसके तहत फसल कटाई के बाद खेत में पडे़ फसल अवशेष के साथ ही जुताई कर हल्की सिंचाई पानी का छिडकाव किया जाये, इसके बाद ट्राइकोडर्मा का छिड़काव करने से फसल कटाई के बाद खेत में पड़े हुए अवशेष के साथ ही गहरी जुताई कर पानी भरने से फसल अवशेष खाद में परिवर्तित हो जाते हैं, जिससे अगली फसल के लिए मुख्य एवं सूक्ष्म पोषक तत्व प्राप्त होंगे। भूमि को फसल अवशेष से प्राप्त होने वाले कार्बनिक तत्व जो कि मृदा में मिलकर खाद के रूप में परिवर्तित होकर फसलों को मिलती है, जिससे मृदा संगठन एवं संरचना में सुधार के साथ ही भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है। धान के पैरे को यूरिया से उपचार कर पशुओं के सुपाच्य एवं पौष्टिक चारे के रूप में उपयोग किया जा सकता है।