जहरीली मांगुर की बिक्री प्रतिबंधित: पुलिस को अधिकार, फिर भी नहीं करती कार्रवाई
- पाबंदी के बाद भी बेच रहे कैंसर वाहक थाई मांगुर
- मछली बाजार में देशी मोंगरी, हाईब्रिड या बायलर मांगुर बता कर बेच रहे
- मत्स्य विभाग-निगम की अनदेखी से चोरी-छिपे पालन भी
- कम खर्च में बेहतर पालन होने से चोरी छिपे हो रहा कारोबार
रायपुर (जसेरि)। प्रतिबंधित मांगुर मछली के परिवहन, खरीदी-बिक्री, पालन पर कार्रवाई करने का अधिकार सीधे कोर्ट से मिलने के बाद भी इस मामले में कोताही बरती जा रही है। जिसके कारण मांगुर माफिया का रैकेट पूरे देश में फैल चुका है। जो धीमा जहर फैलाने का काम कर रहा है, जिससे मांगुर खाने से लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे है। कोर्ट ने आदेश दिया था कि पुलिस प्रशासन इसे हर हाल में रोकने के लिए शक्ति संपन्न है। कोर्ट ने ही अधिकार दिया है कि मांगुर के मामले में पुलिस सीधे कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है। इसके बाद भी पुलिस मांगुर के मामले में तमाशा देख रही है। जहरीली थाई मांगुर मछली पर प्रतिबंध के चलते पुलिस स्व निर्णय से मांगुर की खरादी-बिक्री, पालन और परिवहन पर अपने स्तर पर कानूनी कार्रवाई कर सकती है। प्रदेश में 2016 में पुलिस को मांगुर की बिक्री और पालन पर सख्ती से रोक लगाने पुलिस का कार्रवाई का अधीकार दिया गया है। इसके बावजूद पुलिस कार्रवाई नहीं करती। पुलिस की मांगुर माफिया से सीधा संबंध होने का आरोप भी समय-समय पर लगते रहा है। झारखंड और महाराष्ट्र, तेलंगाना, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, प. बंगाल, यूपी-बिहार, मध्यप्रदेश के दबंग छुटभैया नेताओं का रैकेट मांगुर मछली माफिया के साथ मिलकर पूरे देश में अपने स्तर पर कानून को ताक में रखकर दबंगता के साथ मछली का उत्पादन करवा रहे हंै और एक राज्य से दूसरे राज्य में तस्करी मोंगरी के नाम से कर रहे है। पुलिस चाहे तो लोगों को इस जहरीली षड्यंत्र से लोगों को बचा सकती है लेकिन उसकी कार्रवाई नहीं करने के चलते मांगुर माफिया अपने काम को बेखौफ होकर अंजाम दे रहे है।
थाई मांगुर की बिक्री और उत्पादन पर पूरी से रोक है। मत्स्य विभाग और निगम की अनदेखी के चलते मछली कारोबारी चोरी-छूपे दूसरे राज्यों से मंगाकर इसे देशी मोंगरी के नाम से भी बेच रहे हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2000 में थाईलैंड की थाई मांगुर नामक मछली के पालन और बिक्री पर रोक लगा दी थी, लेकिन इसकी बेखौफ बिक्री जारी है। इस मछली के सेवन से घातक बीमारी हो सकती है। इसे कैंसर का वाहक भी कहां जाता है। ये मछली मांसाहारी होती है, इसका पालन करने से स्थानीय मछलियों को भी क्षति पहुंचती है। साथ ही जलीय पर्यावरण और जन स्वास्थ्य को खतरे की संभावना भी रहती है।
राजधानी के कई इलाको में मांगुर का पालन
थाई मांगुर के पालन और बिक्री पर रोक के बाद भी कुछ लोग चोरी छिपे इसको न सिर्फ पाला जा रहा है, बल्कि शहर में इसकी अच्छी खासी खपत भी है। माना, छेरीखेड़ी, लालपुर सहित राजधानी के कई इलाकों में इस प्रजाति की मछलियों का पालन हो रहा है। लोगों में इसकी मांग होने के कारण मछली कारोबारी प्रतिबंध के बावजूद इसे पाल रहे हैं। वहीं राज्य का मत्स्य विभाग और नगर निगम का अमला मछली बाजार में समुचित जांच की कार्रवाई नहीं कर रहे हैं जिसके चलते मछली व्यवसायी को इसे खपाने में भी कोई बाधा नहीं झेलनी पड़ रही है। राजधानी में ओडि़सा-आंध्रप्रदेश से इसकी खेप पहुंचती है। कम खर्च में इसका पालन बेहतर होता है। यही कारण है कि इसका चोरी छिपे कारोबार किया जा रहा है। थाई मांगुर के बीज की आपूर्ति बांग्लादेश-कोलकाता से चोरी छिपे होती है।