राजधानी में लालपुर, जोरा, मंदिर हसौद, खरोरा, नया रायपुर, माना में किया जा रहा पालन
जीएसटी चोरी पर भी विभाग मौन
पुलिस को अधिकार होने के बावजूद कार्रवाई नहीं
भारत में मांगुर मछली बेचना तो दूर उसे पालना भी अपराध
प्रतिबंधित मांगुर मछली को मोंगरी के नाम बेच रहे मछली विक्रेता
मांगुर मछली बेचने पर 5-7 साल की सजा और अर्थदंड का भी प्रावधान
रोजाना 3 करोड़ से अधिक माल का खपत, छुटभैया नेता और मांगुर माफिया हो रहे मालामाल
मांगुर मछली धीमा जहर, जिसके खाने से होती है गंभीर बीमारियां
केंद्र सरकार ने चमड़ा खरीदी पर लगाया प्रतिबंध, मत्स्य पालक वजन बढ़ाने मांगुर को खिलाते है छिछड़े और चमड़े
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। प्रदेश सहित राजधानी के आसपास ग्रामीण क्षेत्रों में कृत्रिम तालाब बनाकर मत्स्य पालन के नाम पर बड़ी संख्या में प्रतिबंधित मांगुर मछली का उत्पादन हो रहा है। जिसे मछली उत्पादक मोंगरी के नाम में बेच कर लोगों को धामी जहर दे रहे है। मांगुर मछली खाने के लोगों को कई तरह की बीमारियों का पता चलने के बाद से सरकार ने मांगुर मछली के उत्पादन और बचने पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह भाजपा शासनकाल के समय से पिछले 7-8सालों से प्रतिबंध लगा हुआ है। अधिक कमाई के लालच में मछली उत्पादक चोरी छिपे मांगुर का उत्पादन कर मोंगरी के नाम से बड़ी आसानी से मार्केट में बेच रहे है। जिसे तस्करी के रास्ते एक राज्य से दूसरे राज्य में पहुंचाया जा रहा है। हाल ही में इसका खुलासा कोंडागांवमें हुआ जहां एक मछली से भरे वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने पर उसमें परतिबंधित मछली मांगुर मिले जिसे प्रशासन ने तत्काल नष्ट कराया। राजधानी में स्वास्थ्य अमले को मछली मार्केट में जाकर जांच करनी चाहिए कि कहीं मोंगरी ने नाम पर यहां भी मांगुर तो नहीं बेचा जा रहे है। भारत सरकार ने मांगुर के उत्पादन और पूरी तरह बैन लगा रखा है उसके बाद भी छुटभैया नेता और मांगुर माफिया तस्करी के रास्ते लोगों को मांगुर परोस कर गंबी्र बीमारियों से पीडि़त कर रहे है।
कहीं आप तो नहीं खा रहे ये मछली! हो सकता है कैंसर
थाईलैंड में विकसित थाई मांगुर पूरी तरह से मांसाहारी मछली है। इसकी विशेषता यह है कि यह किसी भी पानी (दूषित पानी) में तेजी से बढ़ती है, जहां अन्य मछलियां पानी में ऑक्सीजन की कमी से मर जाती है, लेकिन यह जीवित रहती है। मछली का सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहतर माना जाता है, पर यह खबर आपको सावधान करने के लिए है। क्योंकि राज्य के मछली बाजारों में मांगुर मछली की बिक्री बेरोक टोक जारी है। थाईलैंड की प्रजाति होने के कारण इसे थाई मांगुर कहा जाता है. डॉक्टर मानते हैं कि मांगुर मछली खाने से कैंसर हो सकता है। मछली पर बैन होने के बावजूद यह खुलेआम बाजार में बेची जा रही है। राजधानी के थोक मछली बाजार में यह मछली जिंदा बेची जाती है. दुकानदार हाइब्रिड मांगुर को देसी मांगुर या बॉयलर मांगुर बता कर बाजार में बेच रहे हैं। जबकि रांची में समेत पूरे राज्य में इसकी बिक्री पर बैन लगा हुआ है। गौलतरब है कि भारत सरकार में साल 2000 में ही थाई मांगुर नामक मछली के पालन और बिक्री पर रोक लगा दी थी, लेकिन इसकी बेखौफ बिक्री जारी है। इस मछली के सेवन से घातक बीमारी हो सकती है. इसे कैंसर का वाहक भी कहां जाता है। ये मछली मांसाहारी होती है, इसका पालन करने से स्थानीय मछलियों को भी क्षति पहुंचती है. साथ ही जलीय पर्यावरण और जन स्वास्थ्य को खतरे की संभावना भी रहती है।
थाई मांगुर खाने के नुकसान
थाईलैंड की थाई मांगुर मछली के मांस में 80 प्रतिशत लेड और आयरन की मात्रा होती है। इसलिए इसका सेवन करने से कई प्रकार की इस मछली को खाने से लोगों में गंभीर बीमारी हो सकती है. बता दे की मांगुर मछली मांसाहारी मछली है, यह मांस को बड़े चाव से खाती है। सड़ा हुआ मांस खाने के कारण इन मछलियों के शरीर की वृद्धि एवं विकास बहुत तेजी से होता है. यह कारण है क्य ह मछलियां तीन माह में दो से 10 किलोग्राम वजन की हो जाती हैं। इन मछलियों के अंदर घातक हेवी मेटल्स जिसमें आरसेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी, लेड अधिक पाया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक हानिकारक है। थाई मांगुर के द्वारा प्रमुख रूप से गंभीर बीमारियां, जिसमें हृदय संबंधी बीमारी के साथ न्यूरोलॉजिकल, यूरोलॉजिकल, लीवर की समस्या, पेट एवं प्रजनन संबंधी बीमारियां और कैंसर जैसी घातक बीमारी अधिक हो रही है।
थाई मागुर पर्यावरण के लिए घातक
थाईलैंड में विकसित थाई मांगुर पूरी तरह से मांसाहारी मछली है. इसकी विशेषता यह है कि यह किसी भी पानी (दूषित पानी) में तेजी से बढ़ती है, जहां अन्य मछलियां पानी में ऑक्सीजन की कमी से मर जाती है, लेकिन यह जीवित रहती है. थाई मांगुर छोटी मछलियों समेत यह कई अन्य जलीय कीड़े-मकोड़ों को खा जाती है. इससे तालाब का पर्यावरण भी खराब हो जाता है.
इन मछलियों की बिक्री पर है रोक
भारत में थाई मांगुर, बिग हेड और पाकु विदेशी नक्सल की हिंसक मांसाहारी मछलियों की बिक्री पर रोक लगी हुई है। उनका भारत में अवैध तरीके से प्रवेश हुआ है. भारत सरकार ने 2020 में इन तीनों प्रजाति की मछलियों की बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दिया है। कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और केरल उच्च न्यायालय, ग्रीन ट्रिब्यूनल के द्वारा थाई मांगुर के पालन पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया है।
देसी मछलियों का अस्तित्व बचाने बिग हैड एवं थाईलैण्ड मांगुर मछली पर प्रतिबंध
छत्तीसगढ़ मत्स्य क्षेत्र अधिनियम 1948 एवं छत्तीसगढ़ मत्स्य क्षेत्र संशोधन अधिनियम 2015 के अनुसार उपरोक्त प्रतिबंधित मछलियों का पालन, मत्स्य बीज उत्पादन, संवर्धन, आयात निर्यात, परिवहन तथा विपणन दण्डनीय अपराध है। अधिक उत्पादन और अधिक मास प्राप्त करने के लालच में थाईलैंड मांगूर और बिग हेड का पालन कुछ किसान और मत्स्य पालक कर रहे हैं, लेकिन इनकी वजह से देसी मछलियों और अन्य जलीय जीवो का अस्तित्व संकट में आ रहा है। लिहाजा शासन द्वारा इन मछलियों पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है ।बिग हैड एवं थाईलैण्ड मांगुर मछलियों का पालन, मत्स्य बीज उत्पादन, संवर्धन, आयात, निर्यात, परिवहन तथा विपणन को प्रतिबंधित किया गया है।
जानकारी के अनुसार बिग हैड (हाईपोप्थेलमिक्थिस नोबीलीस) एवं थाईलैण्ड मांगुर (क्लेरियस गेरीपिनस) के पालन से भारतीय प्रजातियों के विनाश की पूर्ण आशंका है। थाईलैण्ड मांगुर उच्च मांस भक्षी मछली है। बिग हेड एवं थाईलैण्ड मांगुर पालन से अन्य सभी जल जीवों की हानि होती है। भारतीय मत्स्य प्रजातियों एवं अन्य जल जीवों के सुरक्षित प्रजनन पालन एवं वंश को सुरक्षित रखने के लिये यह प्रतिबंध लगाया गया है।
छत्तीसगढ़ मत्स्य क्षेत्र अधिनियम 1948 एवं छत्तीसगढ़ मत्स्य क्षेत्र संशोधन अधिनियम 2015 के अनुसार उपरोक्त प्रतिबंधित मछलियों का पालन, मत्स्य बीज उत्पादन, संवर्धन, आयात निर्यात, परिवहन तथा विपणन दण्डनीय अपराध है। उक्त प्रतिबंध का उल्लंघन किये जाने पर दस हजार रूपये अथवा एक वर्ष का कारावास या दोनों दण्ड से दण्डित किया जाएगा।