स्वास्थ्य का सफाई से सीधा ताल्लुक पर मेकाहारा में सफाई माशाअल्ला...
स्वास्थ्य विभाग अपने कारनामों से सरकार को कर रही बदनाम
केंद्र और राज्य सरकारों के आदेश का भी पालन नहीं करते निजी अस्पताल प्रबंधन
वेक्सिनेशन में भी लापरवाही दिखी निजी अस्पताल संचालकों की
कोरोना पीडि़तों के परिजनों से निजी अस्पताल वसूल रहा कोरोना टैक्स
फर्क देखने में मिलता है सशुल्क और नि:शुल्क इलाज में
ज़ाकिर घुरसेना
रायपुर। सरकारी अस्पताल और निजी अस्पताल एक ढर्रे पर चल रहे है, जहां पैसा ही सब कुछ है। बिना पैसा दिए एक भी काम नहीं होता, जबकि प्रदेश की भूपेश सरकार गरीबों के लिए दिल खोलकर काम कर रही है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग उनके मनसूबे पर पानी फेर रही है। इलाज के नाम पर मरीज और उनके परिजन तकलीफ और परेशानी तो झेलते हैं साथ ही इधर-उधर भटकते देखे जा सकते हंै। जिनका कोई ठौर ठिकाना ही नहीं है, जबकि सरकार ने मरीजों के अटेंडर के लिए रहने खाने की व्यवस्था अस्पताल परिसर में ही की है। वहीं निजी अस्पताल में तो मरीजों के परिजनों को उनके साथ रहने के लिए 5 सौ रुपए कोरोना टैक्स वसूलने की खबर है।
पूरा देश कोरोना से हलाकान है शुक्र है भारतीय वैज्ञानिकों का जिनके अथक प्रयत्नों से कोरोना का वैक्सीन आ गया। कोरोना से बचाव के लिए भारत सरकार और राज्य सरकार के आदेशनुसार बुजुर्गो को वेक्सीन लगाने निजी और सरकारी अस्पतालों में व्यवस्था की गई थी लेकिन बुजुर्ग अव्यवस्था के कारण काफी परेशान हुए। सुबह से बुजुर्गो की भीड़ थी, लेकिन व्यवस्था नहीं बन पाने के कारण अस्पतालों में दोपहर बाद वेक्सिनेशन का काम शुरू हुआ। पिछले साल मार्च महीने में कोरोना का रौद्र रूप देख चुके लोगो के मन में वेक्सिनेशन के लिए भरी उत्साह था हालांकि अभी टीकाकरण सिर्फ बुजुर्गो को होना था, लेकिन निजी अस्पतालों की लापरवाही ने उत्साह पर पानी फेर दिया जबकि केंद्र और राज्य सरकार का स्पष्ट आदेश था कि 1 मार्च से वेक्सिनेशन हर हाल में शुरू किया जाना है, परन्तु हुआ वही जो निजी अस्पताल वाले चाहते थे। सुबह नौ बजे से बुजुर्ग अस्पताल पहुंच गए थे, लेकिन मायूस होकर अपने घरों को लौट गए।
बिना ट्रेनिंग वेक्सिनेशन शुरू
वेक्सिनेशन की प्रक्रिया में सरल करने के लिए स्वास्थ्य विभाग निजी और सरकारी अस्पताल के स्टाफ को ट्रेनिंग भी देना शुरू कर रही है। सवाल ये उठता है कि जब सबको मालूम था कि एक मार्च से वेक्सीन लगाया जाना है तो पहले से ट्रेनिंग क्यों नहीं दी गई। प्रदेश में इन दिनों स्वास्थ्य सेवाओं पर किसी का लगाम नहीं ह,ै ऐसा लगता है कि स्वास्थ्य अमला मनमानी पर उतर आया है। इसे मनमानी ही कहा जाए या दबंगई।
दूर-दराज़ के मरीज परेशान
ग्रामीण अंचल के मरीज सर्वसुविधा और बेहतर इलाज के लिए रायपुर आते हैं, लेकिन उन्हें क्या पता कि यहां सुविधा के नाम पर धोखा दिया जाता है। सरकारी अस्पताल हो या निजी अस्पताल दोनों ही एक ही नक्शे कदम पर चलने लगे है। निजी अस्पताल के प्रबंधन के कर्ताधर्ता अपरोक्ष रूप से कई ऐसे आईएएस,आईपीएस या रसूखदार विधायक हैं जो बेहतर इलाज के नाम पर लूट मचा रखे हैं। सरकार की मंशा के अनुरूप स्वास्थ्य विभाग अपना दायित्व पूरा नहीं कर रहा है, बल्कि निजी अस्पतालों के एजेंट के रूप में काम कर रहा हैं। स्वास्थ्य विभाग का सरकारी और निजी अस्पतालों पर नियंत्रण नहीं है ऐसा प्रतीत होता जैसे उनसे टाइअप है।
वेटिंग कब ख़त्म होगा
निजी अस्पतालों में किसी भी इलाज के लिए वेटिंग नहीं होती, जब डाक्टर चाहे तब एमआरआई, सिटी स्कैन और सोनोग्राफी हो जाती है लेकिन सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा रायपुर में एमआरआई, सीटी स्कैन, सोनोग्राफी व कलर डाप्लर जाँच के लिए अभी दो सप्ताह की वेटिंग है, इस वजह से मरीजों को काफी तकलीफ उठानी पड़ रही है। खासकर बाहर गांव से आये मरीजों की समय पर जांच और इलाज शुरू नहीं हो पाता साथ ही उनके परिजनों को भी रहने खाने की व्यवस्था के लिए भटकना पड़ता है। इसलिए अधिकतर ऐसे मरीज जिनको भर्ती नहीं लिया गया जिनका जांच होना है ऐसे मरीजों के परिजन सुबह मेकाहारा के पीछे मरही माता मंदिर में टिफिन थैले की लाइन लगाए रहते है।
जारी है कमीशन का खेल
प्रदेश शासन द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर कमीशन का खेल चल रहा है। सरकारी अस्पताल से मरीज भेजो पैसा कमाओ का खेल बदस्तूर जारी है। भूपेश सरकार व्दारा भारी भरकम बजट का प्रावधान होने के बावजूद स्वास्थ्य अमला निजी अस्पतालों से मिलने वाले कमीशन के चलते नई मशीन मंगाने में हीला हवाला कर रहे हैं। निजी अस्पताल प्रबंधन इसका फायदा उठा रहे हैं। सूत्रों से जानकारी मिली है कि मेकाहारा में जल्द नई एमआरआई व सीटी स्कैन मशीन मांगने हेतु प्रस्ताव भेजा जायेगा ताकि मरीजों को जाँच के लिए ज्यादा दिन इन्तजार न करना पड़े, लेकिन कब तक नई मशीनों की खरीदी होगी या नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता।
स्वास्थ्य विभाग की दुर्गति ?
स्वास्थ्य अमले का फेल होने का प्रमुख कारण राजनेता और रसूखदार अधिकारियों के निजी अस्पताल है इनके धौंस या रसूख की वजह से स्वास्थ्य विभाग का चुप रहना मज़बूरी है। लेकिन प्रश्न ये उठता है कि क्या स्वास्थ्य मंत्री भी सब कुछ देखने के बाद अनदेखी कर रहे है। पूरे छत्तीसगढ़ में कुछ बड़े अधिकारियों और विधायकों के स्वामित्व या पार्टनरशिप वाले अस्पताल हैं। क्या यही वजह है जिसके कारण निजी अस्पताल वाले खुली लूट मचा रखे हैं। निजी अस्पताल प्रबंधन व्दारा संचालित मेडिकल स्टोर में उंचे दाम पर दवाइयां मिलती हैं। जो बाजार मूल्य से कही अधिक होते है। मरीज की जान को खतरा बता कर बेतहाशा कमाई करने में पीछे नहीं रहते।
सरकार को बदनामी स्वास्थ्य विभाग से ही
एक बाल्टी दूध में एक बूंद नीबू टपकाने की कहावत चरितार्थ हो रही है। बूपेश बघेल छत्तीसगढ़ के गरीब जनता के लिए निस्वार्थ भाव से सेवा में लगे है परंतु स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली से सरकार पर गरीबों के साथ अन्याय का ठप्पा लग रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बजट में गरीबों के लिए दिल खोलकर प्रावधान किया है। लेकिन मुख्यमंत्री की योजनाओं पर स्वास्थ्य अमला पतीला लगाने से बाज नहीं आ रहा है शहर के कई निजी अस्पताल छुटभैय्या नेताओ,ं आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के है। इस वजह से सरकारी अस्पताल से मरीजों को निजी अस्पताल की तरफ भेजा जाता है । छुटभय्ये नेताओं और बड़े अधिकारियों के निजी अस्पताल होने से सरकारी अस्पतालों में मरीजों का इलाज सही ढंग से नहीं किया जाता। सबसे ज्यादा मरीज मेकाहारा अस्पताल आते है वहां से उन मरीजों को निजी अस्पताल में भेज दिया जाता है।
जूनियर डाक्टरों के भरोसे सरकारी अस्पताल
सरकारी अस्पताल जूनियर डाक्टरों के भरोसे चल रहा है ऐसा लगता है तभी तो मरीजों को देखने का काम अधिकतर जूनियर डाक्टर करते हैं , अगर इमरजेंसी हुई तो ही सीनियर डाक्टर आते हैं। सरकारी अस्पताल में मरीजों को किसी भी तरह का बहाना बताकर जैसे-तैसे उनको निजी अस्पतालों में भेजा जाता है। देखा जाये तो सरकारी अस्पतालों में हर प्रकार की सुविधा रहती है, लेकिन स्टाफ की मिली भगत से उसका फायदा मरीज नहीं उठा पाते।
सरकारी अस्पतालों का हाल बेहाल
प्रदेश में सरकारी अस्पतालों का हाल बेहाल है ऐसा सिर्फ एक अस्पताल का नहीं बल्कि ऐसा प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों का है। राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा को अव्यवस्थाओं का मर्ज लग गया है। यही मर्ज मरीज और उनके परिजनों को दर्द दे रहा है। हद तो तब हो जाती है जब इमरजेंसी में आए मरीजों को स्ट्रेचर तक नहीं मिल पातद्ग, जो स्ट्रेचर हैं भी वो टूटे-फूटे हैं। मेकाहारा अस्पताल शहर का सबसे बड़ा अस्पताल है। यहां न केवल शहर बल्कि छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से मरीज इलाज के लिए आते हैं। लेकिन, जब से अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में तब्दील किया गया है, व्यवस्थाएं चौपट हो गई है। यहां स्टे्र्रचर व व्हील चेयर की कमी की दुर्गति किसी से छुपी नहीं है। जहां स्ट्रेचर टूटे हुए है और मरीज़ों को दर बदर की ठोकरें खानी पड़ रही है। मरीज़ों के परिजनों का कहना है कि अस्पताल में समय पर सही उपचार नहीं मिलने से बीमारी और गंभीर हो रही है। इलाज की पूरी जिम्मेदारी प्रशिक्षु डॉक्टरों पर है। केस बिगडऩ़े पर ही सीनियर डॉक्टर मरीजों को देखने आते हैं।
चारों तरफ अव्यवस्था
सरकारी अस्पतालों में चारों तरफ अव्यवस्था का आलम है। स्थिति यह है कि इन दिनों नवीन इमरजेंसी में रखे सभी स्ट्रेचर कबाड़ हो चुके हैं। मरम्मत नहीं कराए जाने के कारण इनके कलपुर्जे टूट गए हैं। डॉक्टरों का कहना है कि स्ट्रेचर और बेड की मरम्मत कराई जा रही है। कुछ स्ट्रेचर दुरुस्त कराए गए हैं। मरीजों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें।
एक ओर इलाज में कोताही, दूसरी ओर नकली दवा की सप्लाई
छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन (सीजीएमएससी) में भ्रष्टाचार का बड़ा कारनामा सामने आया है। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन (सीजीएमएससी) में भ्रष्टाचार का बड़ा कारनामा सामने आया है। सीजीएमएससी द्वारा राज्य के सरकारी अस्पतालों में आपूर्ति की गई पोविडोन आयोडीन एंटीसेप्टिक साल्यूशन (घोल) को जांच में नकली पाया गया है। मामला खुलने के बाद शासन ने आनन-फानन में सभी अस्पतालों से दवा को वापस मंगाना शुरू कर दिया है। राजधानी के आंबेडकर अस्पताल समेत प्रदेश के कई सरकारी अस्पतालों से लंबे समय से दवा के बेअसर होने की शिकायतें मिल रही थीं। आंबेडकर अस्पताल की शिकायत पर 26 फरवरी को औषधि विभाग ने जांच की तो दवा गुणवत्ताहीन पाई गई। इस दवा की आपूर्ति हिमाचल के नालागढ़ स्थित एल्विस हेल्थकेयर कंपनी ने की है। खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सीजीएमएससी के प्रबंध संचालक से कई बार प्रयास के बाद भी संपर्क नहीं हो सका।
औषधि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि 100 मिलीलीटर पोविडोन आयोडीन में 500 मिलीग्राम आयोडीन की मात्रा होनी चाहिए। लैब जांच में आयोडीन की मात्रा शून्य पाई गई है, जो पूरी तरह गलत है है। यह सिर्फ एक पदार्थ के अलावा कुछ भी नहीं है। दवा का उपयोग चिकित्सकों ने बताया कि पोविडोन आयोडीन दवा एंटीसेप्टिक लोशन है। डा. भीमराव आंबेडकर अस्पताल रायपुर के अधीक्षक डा. विनीत जैन ने बताया, पोविडोन आयोडीन साल्यूशन का असर नहीं होने की शिकायत लंबे समय से मिल रही थी। सहायक औषधि नियंत्रक डा. कमलकांत पाटनवार ने कहा, आंबेडकर अस्पताल में सीजीएमएससी द्वारा आपूर्ति की गई पोविडोन आयोडीन की जांच कराई गई। दवा में आयोडीन की मात्रा शून्य है। एल्वेस हेल्थ केयर दवा एजेंसी पर कार्रवाई की प्रक्रिया जारी है। कंपनी ने कहा, दवा सब स्टेंडर्ड होने की जानकारी नहीं नालागढ़ स्थित एल्विस हेल्थके यर कंपनी के प्रोडक्शन मैनेजर रामपाल ने कहा कि उनकी दवाएं कई राज्यों में भेजी जाती हैं। उन्हें अभी तक दवा सब स्टेंडर्ड होने का कोई नोटिस नहीं मिला है। राज्य दवा नियंत्रक नवनीत मारवाह ने कहा कि अगर इस तरह का कोई मामला है तो संबंधित दवा निरीक्षक को जांच के लिए भेजा जाएगा।
भ्रष्टाचार का बड़ा मामला, राज्य के सरकारी अस्पतालों मे नकली दवा का वितरण
जिम्मेदार अधिकारी जानकारी देने से बच रहे
मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ न मिली सेवा वृद्धि, न हुआ नियमितीकरण पर नौकरी बजा रहे संविदा कर्मी
छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कारपोरेशन लिमिटेड में करीब 147 पदों पर तीन वर्ष से संविदा अवधि समाप्त हो चुकी है। लेकिन विभाग में ना ही संविदा सेवा अवधि बढ़ाई गई है। ना ही नियमित पदों पर नियुक्ति की गई है। जबकि अगस्त 2015 में शासन ने बड़े पदों पर नियमित नियुक्तियों के लिए स्वीकृति दे दी है। विभागीय जानकारी के मुताबिक स्वास्थ्य विभाग के लिए आवश्यक सामग्रियों को केन्द्रीयकृत तौर पर क्रय करने वाली संस्था सीजीएमएससी में स्वीकृत पदों के विरुद्ध सन 2012 में विज्ञापन प्रकाशित कर अधिकांशत: उच्च पदों पर संविदा के माध्यम से भर्ती की गई थी।
इन संविदा के पदों में कार्य कर रहे कर्मचारियों को प्रथम नियुक्ति तीन वर्ष के लिए व कार्य संतोषप्रद होने की स्थिति में प्रशासकीय विभाग या नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी के अनुमोदन के बाद अधिकतम केवल दो वर्ष के लिए संविदा अवधि बढ़ाई जाने के नियम भर्ती के लिए किए गए थे। लेकिन सीजीएमएससी में बेहद जिम्मेदार पदों पर वर्षों से बैठे हुए संविदा अधिकारी कर्मचारी संविदा सेवा की अवधि पूर्ण हो जाने के बाद भी कार्यरत हैं। जबकि शासन ने इन पदों पर संविदा समाप्ति के बाद नियमित नियुक्तियों के निर्देश भी दिए थे।
सीजीएमएससी के निविदा कार्य प्रभावित: बता दें कि जिन संविदा नियुक्तियों की सेवा अवधि 2018 से समाप्त हो गई है। बिना सेवा अवधि बढ़ाए सीजीएमएससी में विभिन्न् दवाओं, मशीनों के क्रय, निविदा से संबंधित कार्य लिए जा रहे हैं। इस स्थिति में कई अनियमितता के मामले भी सामने आते रहे हैं। महाप्रबंधक, उप महाप्रबंधक, स्टोर व पूर्ति अधिकारी, निविदा अधिकारी, गुणवत्ता नियंत्रण अधिकारी, कार्यालय सहायक, डाटा एंट्री आपरेटर, अधीक्षण अभियंता, सहायक अभियंता, उप अभियंता, ड्राफ्ट मैन, कार्यालय सहायक आदि 147 पदों पर भर्ती की गई थी।