टिकट माफिया के जद में राजधानी की चारों विधानसभा की टिकट
राजधानी में कांटे की टक्कर होने की संभावना, होगा चतुष्कोणीय मुकाबला
भाजपा ने एक माह पहले जिन 21 प्रत्याशियों की घोषणा की वहां के लोगों को माफिया गिरोह भड़का रहा
कांग्रेस की टिकट में देरी का फायदा माफिया गिरोह अपने रसूख से टिकट दिलाने का ठेका ले रहे
पांच साल जिन लोगों का सत्ता पक्ष और विपक्ष ने सहयोग लिया वो उनका खेल खराब करने में तुले
पैराशूट और बाहरी प्रत्याशियों का विरोध का काम कर रहा माफियाओं का गोपनीय संगठन
नए नवेले नेता की लगी क्लास - प्रेस क्लब को जागीर समझने वाले तथाकथित नए नवेले नेता का बड़बोलेपन को सभी जानते है, जितना करेगा नहीं उससे ज्यादा चिल्ला-चोट कर माहौल बना लेता है। शनिवार को प्रेसक्लब में प्रेसवार्ता 1.00 बजे रखा और जब ढाई बजे पहुंचे तो पूर्व अध्यक्ष अनिल पुसदकर ने देरी को लेकर क्लास लगा दी। बसंत अग्रवाल को बुलाया और कहा कि कितने बजे था प्रेस कांफ्रेंस दो घंटा कैसे लेट आ रहे हो क्या यहां भी दादागिरी चल रही है। ये दादागिरी उसको दिखाना जिसके खिलाफ चुनाव लडऩे की बात जमाने भर में कहते फिर रहे हो। धार्मिक आयोजन कर लोगों को ब्लेक मेल करते हो, लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करते हो। वहीं पत्रकारों को भी खूब लताड़ा कहा जब डेढ़ घंटा लेट आया तो बसंत अग्रवाल को बहिष्कार करना था। पत्रकारों को चाहिए कि अनुशासन में रहकर लेटलतीफ करने वाले प्रेस कांफ्रेंस का बहिष्कार करना चाहिए...
रायपुर। एक तरफ विरोध की राजनीति तो दूसरी तरफ पार्टी टिकट पाने के लिए लोग 5 से 25 करोड़ लेकर घूम रहे है। राजधानी में बड़े जोरशोर से राजधानी में चर्चा चल रही है कि पार्टी टिकट के लिए 5 से 25 करोड़ भाव तय हो गए है। पैराशूूट प्रत्याशियों के खिलाफ जो विरोध चल रहा है उसके पीछे माफियाओं का गिरोह काम कर रहा है। माफिया गिरोह अपने लोगों को दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों से टिकट पक्की करने के लिए पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी का विरोध करवाने के लिए करोड़ों रूपए फंूक रहे है ताकि उनकी सोची समझी साजिश सफल हो जाए। राजनीतिक रसूखदारों की मानें तो रायपुर की चारों सीटों रायपुर पश्चिम से कांग्रेस के वर्तमान विधायक और संसदीय सचिव विकास उपाध्याय तो भाजपा से राजेश मूणत प्रबल दावेदार है, लेकिन यहां भी बाहुबली और जमीन माफिया, सटोरिया,अवैध कब्जा करने वाला गिरोह सक्रिय होकर राजेश मूणत का पत्ता काटने के लिए षडयंत्र कर रहे है ताकि उनके किसी माफिया को भाजपा टिकट दे दे। कांग्रेस में भी विकास उपाध्याय का नाम फाइनल कहा जा रहा है, लेकिन वहां से भी माफिया गिरोह टिकट के लिए जोरआजमाइश कर रहा है। रायपुर उत्तर में कांग्रेस के रूलिंग विधायक कुलदीप जुनेजा के हाउसिंग बोर्ड के कार्यकाल बढ़ाने के बाद राजनीतिक गलियारे में माफिया गिरोह हवा उड़ा दी है कि कुलदीप जुनेजा को टिकट तो गया। अब बात करते है रायपुर गा्रमीण की जहां वर्तमान विधायक सत्यनारायण शर्मा ने नई पीढ़ी को मौका देेने के लिए अपने पुत्र वर्तमान जिला सहकारी केंद्रीय बंैक अध्यक्ष पंकज शर्मा का नाम आगे किया है, लेकिन वहां से भी जमीन माफिया पैसे के बल पर टिकट अपने किसी खास को दिलाने के लिए हाथ पैर मार रहे है। राजधानी की हाट सीट रायपुर दक्षिण जहां अभी से चतुष्कोणीय मुकाबला देका जा रहा है जबकि सभीी जानते है कि यहां से भाजपा के बृजमोहन के अलावा किसी को भी जीत हासिल नहीं हो सकी है। इस बार राजधानी के चारों सीटों में चतुष्कोणीय मुकाबला देखा जा रहा है।
भाजपा-कांग्रेस, आप और हमर राज पार्टी मैदान ंमें उतर चुके है ऐसे में कांग्रेस से प्रमोद दुबे के नाम फाइनल होने की बात सोशल मीडिया में चल रहा है वहां भी बृजमोहन को टक्कर देने के लिए एक साल पहले से एक तथाकाथित भू-माफिया और शराब माफिया की दावेदारी सामने आ चुकी है। ऐसे हालातों में राजधानी का 2023 का होने वाला चुनाव बहुत ही दिलचस्प होने वाला है। यदि पैसे के बल पर पार्टी ने गलत आदमी को टिकट दे दिया तो लेने को देने पड़ सकते है ऐसा राजनीतिक सूत्रों का कहना है। राजनीतिक पार्टियों में विधानसभा टिकट के नामों की सूची जारी करने देरी होने का फायदा, सटोरिया माफिया, बिल्डर, जमीन माफिया, अवैध कब्जा करने वाला माफिया, शराब-गांजा, माफिया चौक-चौराहों, गली, मोहल्लों में चौखड़ी लगाकर किसको टिकट मिल रही है और किसकी टिकट कट रही है शगूफा छोड़ रहे है। ताकि इसका सीधा फायदा उनके आदमी को मिल सके। रायपुर दक्षिण में अभी तक भाजपा का दबदवा रायपुर दक्षिण विधानसभा का जातिय समीकरण 2023 में बदला हुआ नजर आ रहा है, ब्राम्हाण, उडिय़ा और मुस्लिम आबादी बाहुल क्षेत्र है। सामान्य और पिछड़ा वर्ग का प्रतिशत कम है। इसलिए बृजमोहन को टक्कर देने के लिए स्थानीय को यहां से टिकट देने की मांग बलवती हो रही है। लेकिन अभी भी मतदाताओं की पहली और आखिरी पसंद बृजमोहन बने हुए है। रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट बीजेपी की परंपरागत सीट मानी जाती है। 33 साल से एक ही व्यक्ति इस सीट विधायक बन रहे हैं। दक्षिण विधानसभा के नागरिकों का कहना है कि रायपुर दक्षिण ऐसी सीट है, जहां हर बार दर्जन भर से ज्यादा प्रत्याशी मैदान में होते हैं, लेकिन टक्कर केवल कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही है। डमी कैंडिडेट का खेल भी रायपुर दक्षिण विधानसभा में देखने को मिलता है। खास बात ये है कि यहां बृजमोहन अग्रवाल पार्टी नहीं नेतृत्व के दम पर चुनाव जीत जाते हैं। यहां कोई जातिगत समीकरण भी काम नहीं आता। यहां पूर्ण रूप से लोकतांत्रिक व्यवस्था दिखाई देती है। कई पीढिय़ों से वोटर बृजमोहन अग्रवाल को वोट दे रहे हैं। बृजमोहन अग्रवाल की यहां के हर परिवार में पहुंच है। कांग्रेस इस सीट पर आती तो है और चुनाव के पहले दम भी दिखाती है, लेकिन बृजमोहन के रणनीति के सामने सब फेल हो जाते हैं। यहां बृजमोहन का घरेलू संगठन काम करता है। इसलिए अब कांग्रेस भी इस सीट के लिए ज्यादा गंभीर नजर नहीं आती। छत्तीसगढ़ चुनावी मुहाने पर खड़ा है। राजनीतिक सरगर्मी इतनी बढ़ गई है नेताओं का पसीना विधानसभा क्षेत्र में दिखाई देने लगा है। कांग्रेस 2018 की जीत को बरकरार रखने के लिए संभागीय सम्मेलन कर रणनीति बना रही है, लेकिन एक ऐसी विधानसभा सीट है जहां कांग्रेसी चुनाव लडऩे से घबराते हैं। इसे बीजेपी का अभेद किला माना जाता है। इस सीट पर पिछले 33 साल से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ रहा है।
वहीं बीजेपी की तरफ से एक ही विधायक सात बार इस विधानसभा सीट से चुनाव जीतने का रिकार्ड बना चुके हैं। ये सीट बीजेपी के लिए हमेशा से सेट रही है। वहीं कांग्रेस के बड़े बड़े दिग्गज नेता आए, लेकिन रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट को पतह नहीं पाए। यहां कांग्रेस के सारे राजनीतिक अस्त्र धरे के धरे रह गए। 2018 विधानसभा चुनाव के आंकड़ों की बात करें तो बीजेपी के दिग्गज नेता बृजमोहन अग्रवाल17 हजार से अधिक वोट से जीतकर सातवीं बार छत्तीसगढ़ विधानसभा में पहुंचे। दक्षिण सीट का इतिहास राज्यगठन के पहले ये पूरा इलाका केवल एक सीट का हुआ करता था। अभी वर्तमान में रायपुर सिटी में चार विधानसभा सीटे हैं, लेकिन पहले केवल एक ही सीट हुआ करती थी। तब से ही बृजमोहन अग्रवाल यहां के विधायक हैं। बृजमोहन अग्रवाल 1990 में पहली बार अविभाजित मध्य प्रदेश में विधायक बनें। इसके बाद भी वो 1993,1998 में भी अविभाजित मध्य प्रदेश में विधायक बनें. फिर छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद वो लगातार चार बार 2003, 2008, 2013 और 2018 में चुनाव जीत चुके हैं। रायपुर सिटी का सबसे ज्यादा ट्रैफिक वाला इलाका है। यहां रोजाना लाखों लोगों की आवाजाही होती है। इसलिए रायपुर दक्षिण इलाके में ट्रैफिक जाम की बड़ी समस्या कई साल से बनी हुई है। यहां सड़क किनारे बाजार लगने से यातायात व्यवस्था प्रभावित होती है।
इसका स्थाई समाधान आज तक नहीं निकाला जा सका है। यहां की जनसंख्या भी तेजी से बढ़ रही है. यहां बाहर से लोग काम करने नौकरी की तलाश में आते हैं। यहां होने वाले विकास कार्यों की रफ्तार भी स्लो है। सड़कें जर्जर होती जा रही हैं। वहीं बारिश के मौसम में जल भराव की भी स्थिति नजर आती है। मतदाता 2 लाख 38 हजार रायपुर दक्षिण विधानसभा सामान्य सीट है। 2018 के चुनाव परिणाम के अनुसार इस सीट में कुल मतदाता 2 लाख 38 हजार 780 हैं, लेकिन 2018 में यहां 1 लाख 47 हजार 228 लोगों ने मतदान किया. यानी 61 फीसदी मतदाता ही मतदान करने पहुंचे थे. इसमें से बृजमोहन अग्रवाल को सबसे ज्यादा 77 हजार 589 वोट यानी 52.70 फीसदी वोट मिले. दूसरी स्थान पर कांग्रेस पार्टी रही. कांग्रेस के प्रत्याशी कन्हैया अग्रवाल को 40.82 फीसदी वोट मिले। वहीं तीसरे स्थान पर नोटा ने अपनी जगह बनाई। यानी 1514 लोगों ने किसी को वोट नहीं किया और चौथे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी उमेश दास मानिकपुरी को 1514 वोट मिले। इसमें खास बात ये भी है की पिछली बार यहां 90 हजार से अधिक मतदाताओं ने अपने वोट का प्रयोग ही नहीं किया। पैराशूट और बाहरी प्रत्याशी किसी भी कीमत में मंजूर नहीं छत्तीसगढ़ में राजनीतिक तापमान 90 डिग्री से ऊपर हो गया है। 21 सीटों के नाम एक माह पहले घोषित कर जिस तरह भारतीय जनता पार्टी में पैराशूट बाहरी प्रत्याशी का विरोध हो रहा है ठीक उसी तरह का विरोध कांग्रेस पार्टी जमकर देखने को मिलने वाला है। दक्षिण विधानसभा में पुराने प्रत्याशी जिन्होंने ने पूर्व में चुनाव लड़ा है । सभी आपस में एकजुट एकराय होकर उन्हीं में से किसी एक को प्रत्याशी बनाने की मांग की जा रही है। लगता है कांग्रेस पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं ने ऐलान कर दिया है कि बाहरी और पैराशूट प्रत्याशी बिल्कुल नहीं चलेगा। अगर दक्षिण विधानसभा कांग्रेस को जीतना है तो दक्षिण विधानसभा में ही रहने वाले को ही प्रत्याशी बनाना चाहिए । ना कि पैराशूट से उतरने वाला हवाला बाज, अवैध कारोबार, होटल माफिया, सट्टा माफिया, जुआ माफिया, शराब माफिया ऐसे किसी भी प्रत्याशी को दक्षिण विधानसभा के कार्यकर्ता बर्दास्त नहीं करेंगे। विधानसभा की कामोबेस स्थिति के हिसाब से कांग्रेस हमेशा मुकाबला भी नहीं कर पाती है। लेकिन पिछले विधानसभा में कन्हैयालाल अग्रवाल ने भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान विधायक अग्रवाल को कड़ी चुनौती देते हुए बहुत ही कम मार्जिन से चुनाव पलटने की नाकाम कोशिश जरूर की थी, लेकिन उस वक्त भी सफलता नहीं मिली।