छत्तीसगढ़

महामारी में फ्लैट की कीमत बढ़ाया, हितग्राहियों को आरडीए का करंट

Admin2
23 July 2021 5:25 AM GMT
महामारी में फ्लैट की कीमत बढ़ाया, हितग्राहियों को आरडीए का करंट
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  • बेरोजगारी-आर्थिक तंगी से जूझ रहे लोंगों पर दोहरा मार, सरकार से हस्तक्षेप की गुहार
  • आरडीए कुप्रबंधन और लेट-लतीफी की सजा हितग्राहियों को दे रहा
  • पजेशन के लिए दो साल से इंतजार, मकान भाड़ा और बैंक लोन के किस्त पटाते हितग्राही पहले ही बेहाल
  • पूर्व मुख्यमंत्री को बताई पीड़ा सीएम से मिलने की तैयारी

पीडि़त हितग्राहियों ने अपना एक वाटसअप ग्रुप बनाया है जिसके जरिए वे अपनी पीड़ा एक दूसरे से साझा कर रहे हैं। ग्रुप में जुडऩे वाले सदस्यों से पीएमओ में शिकायत दर्ज कराने कहा जा रहा है। कई हितग्राहियों ने शिकायत मेल भी किया है। जानकारी मिली है कि ग्रुप के सदस्यों ने आरडीए अध्यक्ष से मिलकर उन्हें अपनी पीड़ा से अवगत कराया लेकिन कोई बात नहीं बनी। हितग्राहियों ने इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से भी मुलाकात की और मूल्य वृद्धि वापस कराने की मांग की, पूर्व मुख्यमंत्री ने इस विषय को विधानसभा में उठाने का आश्वासन दिया है। वहीं अब हितग्राही सीधे मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी समस्या से उन्हें अवगत कराने की तैयारी कर रहे हैं।

अतुल्य चौबे

रायपुर। रायपुर विकास प्राधिकरण रायपुरा के इंद्रप्रस्थ फेस-टू में निर्माणाधीन फ्लैट्स का पजेशन हितग्राहियों को पांच साल में भी नहीं दे सका है, ऊपर से अपनी कुप्रबंधन और लेट-लतीफी की सजा भी हितग्राहियों को दे रहा है। दिसंबर 2019 में हितग्राहियों को फ्लैट्स के पजेशन मिलने थे लेकिन निर्माण में देरी के चलते आज लगभग पांच साल होने को है और अब भी लोगों को चाबी मिलने का इंतजार ही है। आरडीए के कुप्रबंधन के चलते ही निर्माण में देरी हुई, कोरोना काल में रेरा की तरफ से उसे चार महीने का अतिरिक्त समय भी मिला बावजूद निर्माण के कछुआ चाल से वर्तमान में भी वहां 10-15 फीसदी काम शेष हंै। आरडीए ने अब महंगे रा-मटेरियल के चलते बढ़ी निर्माण लागत का हवाला देकर फरमान जारी किया है कि दस किश्त पटा चुके हितग्राही एकमुश्त ढाई लाख रुपए जमा कर फ्लैट की रजिस्ट्री करवाएं तभी उन्हें फ्लैट की चाबी दी जाएगी। आरडीए के इस फरमान ने हितग्राहियों के होश फांक्ता कर दिया है। मकान किराया, बैंक लोन की किश्त और ब्याज के बोझ से दबे हितग्राही फ्लैट लेकर खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। आरडीए आबंटन पत्र में पजेशन के समय निर्माण लागत में वृद्धि का भार वहन करने का उल्लेख होना बताकर कीमत में बढोत्तरी को जायज ठहरा रहा है।

2019 दिसंबर में मिलना था पजेशन

वर्ष 2016 में लॉटरी, बुकिंग व आवंटन लिस्ट जारी करने के बाद आरडीए ने तीन साल के भीतर प्रोजेक्ट पूरा करने का निर्णय लिया था। कभी वित्तीय संकट तो कभी काम-काज में लेटलतीफी की वजह से प्रोजेक्ट लगातार विलंब होते गया। 2019 दिसंबर तक पजेशन का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन यह प्रोजेक्ट अब साल के अंत तक खींच सकता है। तीन-चार महीने का समय मिला कोविड-19 की वजह से वर्तमान में निर्माणाधीन प्रोजेक्ट को रेरा से तीन-चार महीने की छूट मिली हुई है। इसमें इंद्रप्रस्थ प्रोजेक्ट को भी मोहलत मिली है। इस मोहलत के बाद प्रोजेक्ट में काम पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय के बाद रूके हुए कार्यों को पूरी करने की कोशिश की जा रही है।

बढ़ी निर्माण लागत का बोझ हितग्राहियों पर

इंद्रप्रस्थ में पजेशन में लेटलतीफी की वजह से निर्माण लागत का बोझ आवंटितियों को वहन करना पड़ेगा। आवंटितियों के मुताबिक पहले जहां 1.50 लाख की राशि जमा करनी थीं, वहीं अब ढ़ाई लाख रुपए का नोटिस आ रहा है। इस मामले में अधिकारियों का कहना है कि आवंटन पत्र में यह उल्लेखित है कि पजेशन के समय निर्माण लागत में वृद्धि का भार वहन करना पड़ेगा। इसलिए आवंटितियों पर यह नया शुल्क नहीं है, वहीं फ्लैट्स के कुल लागत का 7.50 फीसदी मेंटेनेंस शुल्क का प्रावधान भी पहले से ही तय था। इसलिए पजेशन लेते समय सभी बकाया राशि जमा करने के बाद ही रजिस्ट्री की कार्यवाही की जाएगी।

किराए व किस्तों के बोझ में दबे सैकड़ों परिवार

रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) के प्रोजेक्ट इंद्रप्रस्थ रायपुरा में फ्लैट्स के लिए पूरी राशि देने के बाद भी हितग्राहियों को पजेशन नहीं मिल पा रहा है। आरडीए ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए वर्ष 2016 में एलआईजी और ईडब्ल्यूएस श्रेणी में कुल 2416 फ्लैट्स के लिए आवंटन जारी किया था, जिसमें बुकिंग व पूरी राशि लेने के बाद भी हितग्राहियों को पजेशन नहीं मिल पाया है। ज्यादातर आवंटितियों ने बैंक से फाइनेंस कराया है, जिसमें बैंक के जरिए आरडीए के खाते में फ्लैट्स की राशि भेजी जा चुकी है, वहीं अब आवंटितियों की किस्तें बैंकों में चल रही है। फ्लैट्स में किस्तें देने के बाद हितग्राहियों को वर्तमान में घर का किराया भी देना पड़ रहा है।

महामारी में कईयों की नौकरी गई, सेलरी भी आधी मिल रही

इंद्रप्रस्थ फेस टू में फ्लैट खरीदने वाले ज्यादातर हितग्राही छोटी-मोटी प्राइवेट नौकरी और व्यवसाय करने वाले लोग हैं, जिन्होंने योजना के तहत मिलने वाली सब्सीडी व अन्य राहतों के चलते एक छत जुटाने के लिए अपना और अपने परिवार का पेट काटकर फ्लैट खरीदने का साहस किया। योजना में निवेश करने के बाद मकान किराया और बैंक लोन की किस्त पटाने के बोझ से दबे हितग्राहियों को कोरोना काल में इससे इतर मार झेलनी पड़ रही है। इस दौर में कईयों की नौकरी चली गई है तो कई आधी सेलरी पर काम करने मजबूर हैं। छोटे व्यवसायी भी धंधा बंद होने से बड़ी मुश्किल से गुजारा कर पा रहे हैं। इस पर महंगाई की मार ने भी मुंह से निवाला छिन रखा है। कुछ तो कई महीने से बैंक लोन की किस्त भी जमा नहीं कर पाएं हैं, ऐसे में आरडीए का फ्लैट की कीमत में इजाफा करना आर्थिक तंगी से बेहाल हितग्राहियों के लिए हथौड़ा मारने जैसा है। लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि वह परिवार का पेट भरे, बच्चों की स्कूल फीस दे या बैंक का लोन पटाए। इन हालातों में हितग्राही आखिर किस तरह बढ़ी कीमतों का भुगतान कर सकेगा?

कमजोर वर्ग के लिए स्कीम फिर भी कमाई की चिंता

आरडीए ने केन्द्र प्रवर्तित प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत यह निम्न व कमजोर वर्ग के हितग्राहियों के लिए यह योजना शुरू की थी। इस योजना में ऐसे अभ्यर्थियों को पात्र किया गया है, जिनके पास स्वयं का पक्का मकान नहीं है। ऐसे में लोगों को आवास उपलब्ध कराने के सरकार की योजना के तहत निर्मित फ्लैट्स की कीमतों में निर्माण लागत में वृद्धि की बात कहकर बढ़ोतरी करना सिर्फ इसलिए तर्कसंगत नहीं है कि आबंटन पत्र में इसका उल्लेख किया गया है। आरडीए ने इन फ्लैट्स का निर्माण कमल विहार की तरह पैसे कमाने के उद्देश्य से स्वयं की योजना के तहत नहीं किया है। केन्द्र प्रवर्तित योजना के तहत उसकी मंजूरी और दिशा-निर्देशों के अनुरूप किया है ऐसे में नो-प्राफिट-नो लास के आधार पर प्रारंभिक घोषित मूल्य पर ही हितग्राहियों को फ्लैट्स आबंटित की जानी चाहिए। कमजोर व वर्ग विशेष के लोगों के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं लोगों को राहत देने के लिए होती है इससे सरकार या सरकारी एजेंसियां लाभ नहीं कमाती।

कुप्रबंधन और लेट-लतीफी की सजा हितग्राही क्यों भुगते?

फ्लैट्स के निर्माण में अनावश्यक विलंब के लिए आरडीए स्वयं जिम्मेदार है, देरी के लिए ठेका कंपनी और ठेकेदारों की ओर से फंड नहीं मिलने की बात बार-बार कही जाती थी। बावजूद निर्माण एजेंसी ने कोराना काल में भी निर्माण कार्य जारी रखा। लेकिन आरडीए के कुप्रबंधों के कारण और फंड की कमी से ठेका एजेंसी समय पर निेर्माण कार्य पूरा नहीं कर सकी। अपनी कमियों की सजा अब आरडीए हितग्राहियों को दे रहा है और निर्माण लागत में हुई वृद्धि की भरपाई हितग्राहियों से कर रहा है। योजना के तहत मिल रही राहतों और सुविधाओं के चलते अपने घर का सपना पूरा करने की मंसूबा पाले हितग्राहियों पर यह किसी वज्रपात से कम नहीं है। निर्माण में देरी और पजेशन नहीं मिलने से मकान का किराया और बैंक लोन की किश्त भरने का बोझ पिछले दो साल से हितग्राही उठा रहे हैं। अब कीमत बढऩे से उनकी आर्थिक दिक्कते और गहरा गई हैं। लोग समझ नहीं पा रहे हैं वो क्या करें। फ्लैट लेने की स्थिति में लोन का दायरा बढ़ेगा जिससे किस्त चुकाना मुश्किल होगा, दूसरी तरफ चार साल से फ्लैट के इंतजार में आर्थिक नुकसान सहकर आबंटन निरस्त कराने से भी घाटा ही होना है ऐसे में लोगों के सामने एक तरफ कुंआ दूसरी तरफ खाई जैसी स्थिति है।

सरकार और जनप्रतिनिधियों की बेरूखी

इस पूरे मामले में राज्य सरकार और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता दो हजार से अधिक प्रभावित हितग्राहियों को और भी पीड़ा दे रही है। अखबारों, न्यूज चैनल के साथ सोशल मीडिया के माध्यम से हितग्राहियों की पीड़ा सार्वजनिक हो चुकी है, इसके बावजूद राज्य सरकार के किसी जिम्मेदार मंत्री और ना ही विपक्ष के नेताओं की इस पर कोई प्रतिक्रिया आई है। क्षेत्र के विधायक ने भी मामले में कोई संज्ञान लेना जरूरी नहीं समझा है। इस योजना के तहत घर का सपना साकार करने की चाह रखने वाले राज्य सरकार के साथ जनप्रतिनिधियों की तरफ भी आशा भरी नजरों से टकटकी लगाए हैं कि कोई उन्हें इस तकलीफ से बाहर निकाले और समस्या का समाधान करे।

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