छत्तीसगढ़

मंगल मुहूर्त में हुई प्रतिष्ठा, दादाबाड़ी में विराजे दादा गुरुदेव

Nilmani Pal
3 March 2023 12:07 PM GMT
मंगल मुहूर्त में हुई प्रतिष्ठा, दादाबाड़ी में विराजे दादा गुरुदेव
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रायपुर। सकल जैन समाज को जिस पल का इंतजार था वह शुक्रवार की सुबह दादाबाड़ी में दादा गुरूदेव के राजगद्दी पर आसीन होते ही पूरा हो गया। प्रतिष्ठा के साथ अमर ध्वजा मंदिर व दादाबाड़ी में फहरायी गई। श्री धर्मनाथ जिनालय एवं दादाबाड़ी की प्रतिष्ठा के लिए जैन समाज के प्रणधारी लोगों (जिन्होने मीठा का त्याग कर रखा था) एवं ट्रस्टियों ने जो नव निर्माण कार्य का जिम्मा ले रखा था पूर्ण हुआ। खुशी की इस बेला में सकल समाज का लापसी व शाही करबा से मुंह मीठा कराया गया फिर सबका मन केसरिया हो गया और प्रफुल्लित लोगों ने केसर की वर्षा की जिससेे केसरिया रंग में सब रंग गए। आनंद का यह क्षण और भी भावुक हो गया जब एक दूसरे से गले मिलकर बधाईयां देते रहे तो खुशी के आंसू छलक पड़े। पश्चात प्रतिष्ठाचार्य गच्छाधिपति आचार्य श्री जिन मणिप्रभ सूरीश्वर जी एवं आचार्य श्री जिन पियूष सागर सूरी जी एवं सभी साधु साध्वी भगवंत से सकल संघ ने आशीर्वाद लिया।

जैसे कि मालूम हो रायपुर के एमजी रोड स्थित श्री धर्मनाथ जैन मंदिर एवं श्री जिनकुशलसूरि दादाबाड़ी संपूर्ण छत्तीसगढ़ के जैन समाज की आस्था का केंद्र है। एक शताब्दी से भी प्राचीन यह जिनचैत्य, तीर्थतुल्य वंदनीय है। प्राचीन अवस्था के कारण श्री संघ ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया था कि मंदिर व दादाबाड़ी का जीर्णोद्वार कराया जाए। यह कार्य पूर्ण होने के बाद प्रतिष्ठा समारोह का दस दिवसीय आयोजन शुरू हुआ सकल जैन समाज जिस पल का इंतजार बेसब्री से कर रहा था आखिर शुक्रवार को वह शुभ क्षण पूरा हुआ। शनिवार को जिन मंदिर में द्वारोद्घाटन व प्रथम अष्टकारी पूजा के साथ दादा गुरुदेव की प्रथम पूजा होगी उसके बाद सकल संघ भी नियमित पूजा प्रारंभ कर देगा।

गुरु भगवन्तो ने जिन पूजा का महत्त्व बताते हुए हितोपदेश दिया कि जिन पूजा, प्रभु के विशिष्ट शक्ति केन्द्रो के पावन स्पर्श द्वारा की गई। अंग पूजा प्रभु के सामीप्य योग में ले जाती है, अग्र पूजा समर्पण योग का कारण बनती है, द्रव्य पूजा एवं परमात्मा की स्तवना से की गई भाव पूजा प्रभु के साथ एकत्व योग में ले जाती है यही एकत्व योग अंतत: सर्व जीवो के लिए परम अभयदान रूप मोक्ष तक ले जाता है। भगवन की पूजा सभी मंगलो में सर्व मंगल होती है,अनिष्ट का विनाश करके आत्मा को स्व में रमण कराती है।

** मन प्रफुल्लित,छलके आंसू, बिखरे खुशी के केसरिया रंग **

धर्म-संस्कृति में प्राचीनकाल से ही खुशियों के पल में केसरिया रंग रंगने का रिवाज रहा है। आज एक बार फिर दादाबाड़ी परिसर में वही उल्लास छाया जब दादा गुरुदेव के राजगद्दी पर विराजते ही ट्रस्टियों व व्रतधारी लोगों ने जमकर केसरिया रंग से एक-दूसरे को रंगा। एक दूसरे को बधाई के साथ कभी गले लगते तो कभी पैर छूते तो कभी मिले सहयोग के लिए सभी का आभार जताते, इस बीच भावुक क्षण में खुशी के आंसू भी नहीं थम रहे थे। वे सभी इस बात को लेकर खुश थे कि आज बड़ा नेक पुण्य धर्म का काम पूर्ण हुआ।

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