छत्तीसगढ़

सत्ता के करीबी होने का धौंस देकर पोर्टल वाले कर रहे है अवैध वसूली

Nilmani Pal
7 Sep 2022 6:24 AM GMT
सत्ता के करीबी होने का धौंस देकर पोर्टल वाले कर रहे है अवैध वसूली
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  1. बैठे-ठाले दुकानदारी का जरिया बना न्यूज वेब पोर्टल
  2. पत्रकार, कारोबारी, बिल्डर, अपराधी, छुटभैय्ये नेता न्यूज पोर्टल की आड़ में कर रहे उल्लू सीधा
  3. पूरे प्रदेश में गिरोह सक्रिय, व्लैकमेलिंग और अवैध वसूली का चल रहा धंधा
  4. बैठे ठाले सरकारी विज्ञापन से कमाई का बन बैठे है कृपा पात्र
  5. सैकड़ों की संख्या में रसूखदार और राजनीति से जुड़े छुटभैया चला रहे न्यूज पोर्टल
  6. अपने आका को खुश करने सोशल मीडिया को बना रखा है हथियार

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। कांग्रेस सरकार में छुुटभैया नेताओं की निकल पड़ी है। बैठे ठाले हर महीने 20-30 हजार का विज्ञापन लेकर सरकार को चूना लगा रहे है। हर नेता का अपना खुद का न्यूज पोर्टल है, जिसे उनके गुर्गे संचालित कर रहे है। कार में न्यूज पोर्टल के नाम स्टीकर लगा कर अधिकारियों और दुकान दारों से हर रोज हजारों की वसूली का धंधा शुरू कर दिया है। सूचना के अधिकार से जुड़े लोग सारे विभागों में जा-जा कर जानकारी के लिए आवेदन लगा रहे है और उसके बाद मिली जानकारी को कमाई का जरिया बनाकर अधिकारियों को ब्लेकमेल कर रहे है। जो अधिकारी वसूली में आनाकानी करते है उसके खिलाफ पोर्टल और सोशल मीडिया में न्यूज वायरल कर ब्लेकमेल करने की खबर आ रही है। वहीं पोर्टल के दुकानदारों ने सोशल मीडिया को एक हथियार के रूप में उपयोग कर रहे है। राजनीतिक पार्टियों से सैकड़ों की संख्या में चल रहे न्यूज पोर्टल छत्तीसगढ़ में वार रूम बन चुका है। जिसका उपयोग सिर्फ बदला लेने के लिए किया जा रहा है। न्यूज पोर्टल के लाखों यूजर बताकर सरकार से फर्जी तरीके से दबाव बनाकर विज्ञापन लेकर हर महीने लाखों का फर्जीवाड़ा कर रहे है। एक-एक नेता के पांच-पांच पोर्टल होने की खबर है जो अपने विरोधियों से बदला लेने के लिए बिना सिर पैर के खबरों को अपलोड कर संबंधित को फोन पर यह पूछते है कि फलां पोर्टल में आपके खिलाफ जो न्यू चल रहा हा उसकी सत्यता क्या है? यदि इस बारे में आप कुछ कहना चाहते है तो हमारे पर्टल के माध्यम से अपनी बात रख सकते है? इस तरह अधिकारियों तक पहुंचने के लिए रास्ता निकाल रहे है। वहीं खबर तो यह भी है कि सरकार के 23 कमाई वाले विभाग विभाग और निगम मंडलों में पुराने भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे अधिकारियों को निशाना बना रहे है। इस पचड़े से बचने के लिए भ्रष्ठ अधिकारियों ने भी रास्ता निकाल लिया है। हर महीने 100 से अधिक न्यूज पोर्टल वालों को मासिक फंड तय कर दिया है। जिससे उनके खिलाफ सोशल मीडिया और पोर्टल में अनर्गल प्रचार रूक जाए। छुटभैया नेता जो कभी सूचना के अधिकार एक्टीविस्ट रहे है आजकल मंत्रियों और अधिकारियों के बंगले में खास बनकर बैठ रहे है। उनके रोजी-रोटी का जुगाड़ मंत्रियों को के समर्थक छुटभैया नेता कर रहे है।

सरकार भी फिदा है पोर्टल पर

चुनावी साल के चलते सरकार भी पोर्टल वालों पर फिदा है, हर महीने 10-20 हजार का विज्ञापन देकर पोर्टल को आर्थिक रूप से सहयोग कर रही है। गुणवत्ता का कोई मापदंड नहीं, खबरों की चयन प्रक्रिया मौलिकता का दूर-दूर तक नाता ही नहीं है। वाट्सएप में आने वाले न्यूज को अपने पोर्टल में पोस्ट कर खबरों की दुनिया में सनसनी मचा कर कमाई कर रहे है।

हर कोई बन रहे पत्रकार

पत्रकारों को अपने विचारों व अभिव्यक्ति को व्यक्त करने के लिए एक नया क्रान्तिकारी मंच मिला। जिसे आज हम न्यूज पोर्टल के नाम से जानते है। दुनिया भर में न्यूज पोर्टल की शुरुआत बड़ी तेजी से हुई न्यूज पोर्टल्स की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए कई पुराने अख़बार व टीवी चैनलों ने भी अपना-अपना वेब पोर्टल चैनल शुरू किया । लेकिन जहाँ एक ओर न्यूज पोर्टल से पत्रकारिता में एक नई क्रांति आ रही है वही दूसरी ओर मीडिया के इस माध्यम को कुछ लोग अपने निहित स्वार्थ को पूरा करने का हथियार बनाकर इस्तेमाल कर रहे हैं। जिन्हें पत्रकारिता या लोक हित से कोई सरोकार नहीं होता वो वेबपोर्टल की आड़ में अवैध गतिविधियां, कारोबार संचालित करने के साथ ही ब्लैकमेलिंग और वसूली में लिप्त हैं। ऐसे ही तथाकथित पत्रकारों की वजह से वेबपोर्टल पर सवाल उठते हैं।

इंटरनेट बना फर्जी पत्रकारों का हथियार

इंटरनेट और डिजिटल के जमाने में न्यूज वेबपोर्टल सोशल मीडिया की ही तरह तेजी से प्रचलन में आ रहा है। लोग टीवी पर न्यूज चैनल देखने और अखबार पढऩे की जगह न्यूज पोर्टल और वेबसाइट के माध्यम से मोबाइल पर खबरों का अपडेट लेना पसंद कर रहे हैं। लेकिन इसका बुरा पहलू भी सामने आ रहा है कि कोई भी 10-12 हजार में वेबसाइट बनवा कर न्यूज पोर्टल संचालित करने लगा है। न्यूज पोर्टल चलाने के लिए कोई मापदंड और पात्रता नहीें होने के कारण न्यूज पोर्टलों की बाढ़ आ गई है। पत्रकार तो पत्रकार, कारोबारी, बिल्डर के साथ अपराधी और छुटभैय्ये नेता भी न्यूज पोर्टल की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने लगे हैं।

पत्रकारिता की आड़ में अवैध गतिविधि

न्यूज़ पोर्टल की आड़ में अपराधी, छुटभैय्ये नेता, असामाजिक गतिविधि वाले लोग अपने काले कारोबार को चला रहे है। सरकार में बैठे लोगों के नज़दीकी और संबंधों का फायदा उठा रहे है। छुटभैय्ये नेता, अवैध कारोबारियों, यहां तक बिल्डर और इंडस्ट्रलिस्ट के लिए भी यह धंधा फायदे का साबित हो रहा है। वेबपोर्टल शुरू कर पत्रकार का टैग लगाकर आसानी से अधिकारियों को धौंस दिखाकर सरकारी विज्ञापन हासिल करना, उगाही करना आसान हो गया है। वही सोशल मीडिया पर मज़ाक बनाकर रख दिया है। जिधर देखो उधर वेब मीडिया की आवश्यकता है। जिले में रिपोर्टर, कैमरामैन तो मोबाइल से ही रिपोर्टिंग करना जानते है। पत्रकारिता को आज के समय में न्यूज़ वेबपोर्टलों द्वारा मज़ाक बनाया जा रहा है। कुछ गुंडे-दादा लोग भी अपने सगे-संबंधों के नाम से फर्जी वेबपोर्टल का डोमिन खरीद कर रजिस्ट्रेशन करवा लेते है। और दो चार रिपोर्टर और कैमरामैन रखकर खुद को पत्रकार घोषित करते है। फर्जी न्यूज पोर्टल का मतलब ही अवैध वसूली न्यूज पोर्टल ब्लेकमेलिंग, वसूली यहां तक की लोगों की निजता और व्यक्तिगत जिंदगी में दखलदांजी का प्लेटफार्म बनते जा रहा है। सोशल मीडिया पर किसी के खिलाफ अपमान जनक पोस्ट करने पर संबंधित प्लेटफार्म के साथ पुलिस का साइबर सेल भी शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करता हैं लेकिन न्यूज वेबपोर्टल पर ऐसे कंटेट और पोस्ट पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं होती। शिकायत तक दर्ज नहीं की जाती है, इससे न्यूज पोर्टल संचालित करने वाले बेखौफ होकर किसी को भी अपमानित और बदनाम कर ब्लेकमेल करते हैं।

पत्रकारिता हो रही कलंकित

मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। व्यवस्थागत कमियों को दूर करने की पहल के साथ समाज और लोकहित में शोषितों-वंचितों और पीडि़तों के लिए आवाज उठाना पत्रकारिता का धर्म है, लेकिन आज पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है। मीडिया भी पूरी तरह से व्यवसायिक हो गई है। लोग इसका इस्तेमाल व्यक्तिगत फायदे के लिए करने लगे हैं। पत्रकार भी अब पत्रकार नहीं रहा। स्वतंत्र पत्रकारिता करने वाले जहां अखबार, न्यूज पोर्टल की आड़ में आर्थिक लाभ के रास्ते तलाशते रहते हैं वहीं बड़े-बड़े बैनर्स, अखबार और न्यूज चैनल से संबद्ध पत्रकारों को संस्थानों ने पत्रकार की जगह समाचार संकलन और लाइजनर बना दिया है। जिन्हें ये विशेषज्ञता हासिल नहीं है उनकी पत्रकारिता ही संकट में है। अब न्यूज पोर्टलों को माध्यम बनाकर कोई भी आदमी पत्रकारिता के आड़ में व्यवसाय के साथ ब्लेमेलिंग और धौंस दिखाकर वसूली जैसा कृत्य कर रहे हैं।

वेबपोर्टल की जांच जरूरी

सरकार का संबंधित विभाग राज्य में संचालित न्यूज वेबपोर्टल को हर साल इम्पैनलमेंट कर न्यूज वेबपोर्टल को सूचीबद्ध कर विज्ञापन की सुविधा देती है। इसी के लालच में कोई भी न्यूज वेबपोर्टल बनाकर अनाधिकृत लाभ लेने में जुटे हैं। इसमें सबसे ज्यादा ऐसे लोग शामिल हैं जो सरकार में शामिल नुमाइंदों और राजनीति से जुड़े लोगों के करीबी हैं जो इनके रिकमेंड पर संबंधित विभाग से विज्ञापन हासिल करते हैं। इतना ही नहीं विभागीय अधिकारी और मंत्रियों से निकटता रखने वाले लोग भी अपने लोगों को वेबसाइट बनवाकर उपकृत करवा रहे हैं। ऐसे ही न्यूज पोर्टल के संचालक अवैध तरीके से लाभ लेने के राजनीतिक दलों और नेताओं के प्रलोभन में लोगों की छवि खराब करने जैसे कृत्य करते हैं। विभाग को ऐसे न्यूज पोर्टलों की सख्ती से जांच कर ही उन्हें सूची में शामिल कर सरकारी विज्ञापन आदि सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए। अवैध कंटेंट प्रसारित कर लोगों को बदनाम करने अथवा झूठी खबर प्रसारित करने वाले न्यूज वेबपोर्टल को ब्लैकलिस्ट कर कार्रवाई की जानी चाहिए।

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