छत्तीसगढ़

बाजार में जहरीली मांगुर: पुलिस को अधिकार, फिर भी नहीं करती कार्रवाई

Nilmani Pal
22 Jun 2022 5:18 AM GMT
बाजार में जहरीली मांगुर: पुलिस को अधिकार, फिर भी नहीं करती कार्रवाई
x

रायपुर (जसेरि)। प्रतिबंधित मांगुर मछली के परिवहन, खरीदी-बिक्री, पालन पर कार्रवाई करने का अधिकार सीधे कोर्ट से मिलने के बाद भी इस मामले में कोताही बरती जा रही है। जिसके कारण मांगुर माफिया का रैकेट पूरे देश में फैल चुका है। जो धीमा जहर फैलाने का काम कर रहा है, जिससे मांगुर खाने से लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे है। वर्ष 2000 में अपमने निर्णय में कोर्ट ने आदेश दिया था कि पुलिस प्रशासन इसे हर हाल में रोकने के लिए शक्ति संपन्न है। कोर्ट ने ही अधिकार दिया है कि मांगुर के मामले में पुलिस सीधे कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है। इसके बाद भी पुलिस मांगुर के मामले में तमाशा देख रही है। जहरीली थाई मांगुर मछली पर प्रतिबंध के चलते पुलिस स्व निर्णय से मांगुर की खरादी-बिक्री, पालन और परिवहन पर अपने स्तर पर कानूनी कार्रवाई कर सकती है। पुलिस की मांगुर माफिया से सीधा संबंध होने का आरोप भी समय-समय पर लगते रहा है। झारखंड और महाराष्ट्र, तेलंगाना, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, प. बंगाल, यूपी-बिहार, मध्यप्रदेश के दबंग छुटभैया नेताओं का रैकेट मांगुर मछली माफिया के साथ मिलकर पूरे देश में अपने स्तर पर कानून को ताक में रखकर दबंगता के साथ मछली का उत्पादन करवा रहे हंै और एक राज्य से दूसरे राज्य में तस्करी मोंगरी के नाम से कर रहे है। पुलिस चाहे तो लोगों को इस जहरीली षड्यंत्र से लोगों को बचा सकती है लेकिन उसकी कार्रवाई नहीं करने के चलते मांगुर माफिया अपने काम को बेखौफ होकर अंजाम दे रहे है।

पाबंदी के बाद भी बेच रहे कैंसर वाहक थाई मांगुर

मछली बाजार में देशी मोंगरी, हाईब्रिड या बायलर मांगुर बता कर बेच रहे

मत्स्य विभाग-निगम की अनदेखी से चोरी-छिपे पालन भी

कम खर्च में बेहतर पालन होने से चोरी छिपे हो रहा कारोबार

थाई मांगुर की बिक्री और उत्पादन पर पूरी से रोक है। मत्स्य विभाग और निगम की अनदेखी के चलते मछली कारोबारी चोरी-छूपे दूसरे राज्यों से मंगाकर इसे देशी मोंगरी के नाम से भी बेच रहे हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2000 में थाईलैंड की थाई मांगुर नामक मछली के पालन और बिक्री पर रोक लगा दी थी, लेकिन इसकी बेखौफ बिक्री जारी है। इस मछली के सेवन से घातक बीमारी हो सकती है। इसे कैंसर का वाहक भी कहां जाता है। ये मछली मांसाहारी होती है, इसका पालन करने से स्थानीय मछलियों को भी क्षति पहुंचती है। साथ ही जलीय पर्यावरण और जन स्वास्थ्य को खतरे की संभावना भी रहती है।

राजधानी के कई इलाको में मांगुर का पालन

थाई मांगुर के पालन और बिक्री पर रोक के बाद भी कुछ लोग चोरी छिपे इसको न सिर्फ पाला जा रहा है, बल्कि शहर में इसकी अच्छी खासी खपत भी है। माना, छेरीखेड़ी, लालपुर सहित राजधानी के कई इलाकों में इस प्रजाति की मछलियों का पालन हो रहा है। लोगों में इसकी मांग होने के कारण मछली कारोबारी प्रतिबंध के बावजूद इसे पाल रहे हैं। वहीं राज्य का मत्स्य विभाग और नगर निगम का अमला मछली बाजार में समुचित जांच की कार्रवाई नहीं कर रहे हैं जिसके चलते मछली व्यवसायी को इसे खपाने में भी कोई बाधा नहीं झेलनी पड़ रही है। राजधानी में ओडि़सा-आंध्रप्रदेश से इसकी खेप पहुंचती है। कम खर्च में इसका पालन बेहतर होता है। यही कारण है कि इसका चोरी छिपे कारोबार किया जा रहा है। थाई मांगुर के बीज की आपूर्ति बांग्लादेश-कोलकाता से चोरी छिपे होती है।

कम खर्च में पालन, बेहतर मुनाफा

थाई मांगुर मछली को सबसेे गंदी मछलियों में शुमार किया जाता है। यह गंदगी में पलने के साथ ही सड़ा-गला मांस और गंदी चीजें खाती है। इसके बढऩे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चार महीने में ही यह तीन किलो वजन तक की हो जाती है। दूषित पानी में जहाँ दूसरी मछलियाँ ऑक्सीजन की कमी से मर जाती हैं, वहीं यह उस गंदगी में भी जिंदा रहती है। यह छोटी मछलियों सहित अन्य जलीय कीड़े-मकोड़े खाती है, जिससे तालाबों-नदियों का पर्यावरण भी खतरे में पड़ता है। इस प्रकार कम खर्च में इसका पालन होता है और यह 50 से 75 रुपए किलो तक बिक जाती है।

देशी मछलियों को कर देगी खत्म

बताया गया कि थाई मांगुर मछली छोटे से टैंक में ही बड़ी संख्या में पनप जाती हैं। इनको जानवरों का सड़ा मांस दिया जाता है। यदि टैंक ओव्हरफ्लो होगा और ये पानी के बहाव में नदी तक पहुँचेंगी, तो वहाँ की मछलियों को खा जाएँगी। यही कारण है कि एनजीटी ने इन्हें जलीय पर्यावरण के लिए खतरा मानते हुए इनके पालन और बिक्री पर रोक लगाई है।

पर्यावरण को भी मछली पहुंचाती है नुकसान

थाईलैंड में विकसित थाई मांगुर पूरी तरह से मांसाहारी मछली है। इसकी विशेषता यह है कि यह किसी भी पानी (दूषित पानी) में तेजी से बढ़ती है, जहां अन्य मछलियां पानी में ऑक्सीजन की कमी से मर जाती है, लेकिन यह जीवित रहती है। ये मछली सड़ा गला मांस, स्लॉटर हाउस का कचरा खाकर तेजी से बढ़ती है, नदियों के इको सिस्टम के लिए भी खतरा है ये मछली. ये मछली नदियों में मौजूद जलीय जीव जन्तुओं और पौधों को भी खा जाती है और इसका व्यापार भी प्रतिबंधित है। इससे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है।

थाई मांगुर से कई बीमारियों का खतरा

थाईलैंड की थाई मांगुर मछली के मांस में 80 प्रतिशत लेड और आयरन पाया जाता है. इस मछली को खाने से लोगों में गंभीर बीमारी हो सकती है। थाई मांगुर मछली मांसाहारी मछली है. मांस को बड़े चाव से खाती है। सड़े हुए मांस खाने से मछलियों के शरीर की वृद्धि एवं विकास बहुत तेजी से होता है। यह मछलियां तीन माह में दो से 10 किलोग्राम वजन की हो जाती हैं। इन मछलियों के अंदर घातक हेवी मेटल्स जिसमें आरसेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी, लेड अधिक पाया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक हानिकारक है। थाई मांगुर के द्वारा प्रमुख रूप से गंभीर बीमारियां, जिसमें हृदय संबंधी बीमारी के साथ न्यूरोलॉजिकल, यूरोलॉजिकल, लीवर की समस्या, पेट एवं प्रजनन संबंधी बीमारियां और कैंसर जैसी घातक बीमारी अधिक हो रही है।

देश में इन मछलियों की बिक्री पर है रोक

थाई मांगुर, बिग हेड और पाकु विदेशी नक्सल की हिंसक मांसाहारी मछलियां हैं. जिसका भारत में अवैध तरीके से प्रवेश हुआ है. भारत सरकार ने इन तीनों प्रजाति की मछलियों की बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दिया है। कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और केरल उच्च न्यायालय, ग्रीन ट्रिब्यूनल के द्वारा थाई मांगुर के पालन पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया है।

लगातार कर रहे मॉनीटरिग

हालाकि मत्स्य विभाग के अधिकारियों का दावा है कि वे शहर के बड़े मछली विक्रेताओं सहित मछलियों की आपूर्ति की लगातार निगरानी करते हैं। विक्रेताओं के टैंकों का हर सप्ताह निरीक्षण किया जाता है। यह मछली कैंसर के साथ ही कई अन्य बीमारियों को जन्म देती है। जलीय पर्यावरण के साथ ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह घातक है।

Next Story