छत्तीसगढ़

कवि पं. प्रदीप के देशभक्तिपूर्ण गीतों का आयोजन

Nilmani Pal
13 Aug 2022 8:43 AM GMT
कवि पं. प्रदीप के देशभक्तिपूर्ण गीतों का आयोजन
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रायपुर। 12 अगस्त को भारतीय सांस्कृतिक निधि के तत्वावधान में वृंदावन सभागार, रायपुर में कवि पं. प्रदीप के देशभक्तिपूर्ण एवं जीवन दर्शन पर आधारित गीतों की संगीतमय प्रस्तुति की गई। इस कार्यक्रम में अंचल के लोकप्रिय गायक डॉ. चितरंजन कर, हुकुम शर्मा, बजरंग, ललित, योगेश, मनोज, तूलिका ने भाग लिया।

संस्था के प्रदेशाध्यक्ष अरविंद मिश्र ने बताया कि कवि पं. प्रदीप देश के लिये धरोहर है, उन्होंने देशभक्तिपूर्ण गीतों को लिखा और देश के लिये जिया है, इसलिये अमृत महोत्सव के अवसर पर उनकी स्मृति सार्थक है।

स्वतंत्रता दिवस चिंतन आलेख

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास बताता है कि 15 अगस्त 1947 के पूर्व अंग्रेज़ों की दमनकारी नीतियों और बढ़ते अत्याचारों के सामने जनसाधारण दासत्व में जीने को विवश हो चला था। नारकीय जिंदगी जीते दिन में भी अहसास होता था अंधियारी रात का,किंतु 1857 की क्रांति के साथ ही अत्याचार का घड़ा तोड़ने गूंज उठा यह स्वर--

उठो जवानों नाम मिटा दो पापी-शैतान का

अंग्रेज़ों के सीने में गाड़ो

झण्डा हिन्दुस्तान का।

ऐसे दौर में अंग्रेज़ों के विरूद्ध विद्रोह की मशाल लेकर मां भारती के अनेक लाल शहीद हो गए।उनके त्याग बलिदान से मिली आज़ादी के पर्व पर खुले आसमान में लहराते तिरंगा तले जय हिन्द,भारत माता की जय का उद्घोष जनमन को आज भावविभोर कर देता है।देशभक्ति से सराबोर करता हुआ गर्व का पर्व है स्वतंत्रता दिवस।

15अगस्त ऐसा ऐतिहासिक दिवस है,जो अनेक अर्थों में हरेक भारतीय के लिए आत्मविश्लेषण - आत्मचिंतन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।यही वजह है कि इस दिवस पर आज़ादी के पूर्व और बाद के चित्र'अतीत से अद्यतन' की चर्चा विविध माध्यमों से की जाती है।देश भर के वीर-वीरांगनाओं के त्याग समर्पण को नमन् किया जाता है।सूर्योदय से सूर्यास्त तक धरती से आकाश तक यही आवाज़ गूंजती है-

*यही पूजा सुबह- शाम कर लें,देश के अमर शहीदों को बस प्रणाम कर लें।*

अमर शहीदों का स्मरण करते हुए इस दिवस पर सर्वधर्म समभाव को भी बनाए रखने का संकल्प लेना है।यही वो शक्ति रही जिसके बूते देश को परतंत्रता की बेड़ी से मुक्त करने में कामयाबी मिली।

*छत्तीसगढ़ महतारी के रणबांकुरे*

आजादी की पच्छतरवीं सालगिरह के मौके पर छत्तीसगढ़ के बलिदानी सपूतों का उल्लेख करना गर्व का विषय होगा।इतिहास साक्षी है कि आदिवासी बाहुल्य छत्तीसगढ़ में 1857 के तैंतीस वर्ष पूर्व ही अर्थात 1824 में ही वीर आदिवासी सपूतोें ने फिरंगियों के खिलाफ़ जंगछेड़ दी थी। सुराज के लिए स्वंत्रता संग्राम के यज्ञ में अपना सर्वस्व होम कर देने वाले आदिवासी सेनानियों की हुंकार से ताकतवर अंग्रेज हुकुमत थर थर कांपती थी।

ऐसे पारंपरिक शौर्य का प्रदर्शन करने वालों में वीर गेंदसिंह, गुंडाधुर,इंदरू केवट,वीर नारायण सिंह,राजा भेरम देव आदि शामिल हैं।उन दिनों सोना खान के सपूत नारायण सिंह का शौर्य और साहस जनगीत बनकर गुंजता था-

परन ठान के, कफन बांध के

भारत मां के करीन बिचार, गरजिस बद्यवा वीर नारायण, लिन तलवार निकाल।

*वीरांगनाओं की धरा छत्तीसगढ़*

आदिवासी समाज की तरह फिरंगियों के राज को नेस्तनाबूत करने के लिए यहॉ की अनेक वीरंगनाओं ने भी ब्रिटिश हुकुमत की ईंट से ईंट बजा दी थी।जिनमें शामिल डॉ.राधाबाई,रोहणी बाई परगनिहा,केतकी बाई,बेला बाई,फुलकुंवर बाई और मिनाक्षी देवी (मिनीमाता) की राष्ट्रवादी भावना के आगे अंग्रेजों के नापाक ईरादे ताश के पत्तों से बने मीनार की भांति भरभरा कर गिरते-टूटते थे। वीरांगनाओं के भीतर कूट कूट कर भरी देशभक्ति के आगे अंग्रेजों को हार माननी पड़ी।अन्ततः पराधीनता की बेड़ियों से मॉ भारती को मुक्ति मिली।

*आज़ादी की हिफाज़त है ईबादत*

स्वतंत्र भारत में आज तक जो कुछ भी अर्जित किया गया है,वह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से तीन सौ वर्षों की गुलामी की भीषण पीड़ा सहे वीर पूर्वजों की देन है।इस नाते सदैव यह स्मरण रखना होगा कि विरासत में मिली आज़ादी की पूंजी खैरात की नहीं है।यह कठोर तपस्या से तैयार की गई फसल से उपजी पूंजी है।किसी भी क़ीमत पर इसकी हिफाज़त करने के लिए हर हिन्दुस्तानी को तत्पर रहना होगा।

याद रखें आज़ादी की हिफाज़त भी एक इबादत है,अतः स्वाधीनता के अमृत महोत्सव पर एक नया संकल्प लें कि अपने घर की दीवार को कम से कम एक महान पराक्रमी की तस्वीर से सुसज्जित करेंगें।यह पहल आत्मसुख-संतोष देगी।साथ ही साथ नई पीढ़ी के मानस पटल पर देशभक्ति की भावना का बीजारोपण करने में अवश्य कारगर होगी। आज़ादी के अमृत महोत्सव को अविस्मरणीय बनाने घर पर एक तिरंगा और एक महान सपूत की तस्वीर लगाने की पहल करें। जयहिंद।

Nilmani Pal

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