छत्तीसगढ़

मेकाहारा में अपनी कमाई के लिए मरीजों की जिंदगी से कर रहे है खिलवाड़

Nilmani Pal
14 Jun 2023 5:51 AM GMT
मेकाहारा में अपनी कमाई के लिए मरीजों की जिंदगी से कर रहे है खिलवाड़
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समय पर न इलाज हो रहा, न खाना मिल रहा डाइट के अनुसार

कैंसर विभाग ने 18 करोड़ की पेट मशीन को धूल खाने छोड़ दिया

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। नाम भले ही डा. भीमराव अंबेडकर रख लिया गया लेकिन मरीजों के साथ अस्पताल न्याय नहीं कर पा रहा है। क्योंकि वो खुद बीमार है। मेकाहारा अस्पताल नाम बड़े दर्शन खोटे लोकोक्ति को चरितार्थ कर रहा है। यहां के पदाधिकारी सिर्फ अपनी कमाई के लिए मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे है। यहां आने वाले मरीजों को इलाज तो नहीं मिलता बनिस्बत प्रताडऩा जरूर मिलता है। संसाधनों के अभाव से जूझते अस्पताल में डाक्टरों के साथ मशीनों के संचालित नहीं होने से मरीजों को भारी परेशानी झेलनी पड़ती है। प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई । अंबेडकर अस्पताल का बेहाल अन्य हॉस्पिटलों में डीकेएस में 13 ओटी मॉडलर है जबकि अंबेडकर में एक भी नहीं, फिर भी डॉक्टरों ने अभी तक कोई मांग नहीं किया, हालांकि हाल के दिनों में 6 ओटी मॉडूलर का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है ऐसी जानकारी मिली है। आलम तो यह है कि किसी भी विभाग के जिम्मेदार पदाधिकारी या नियुक्त अधिकारी अपने विभाग को ही देखने तक ही सीमित रह जाते है। नतीजन अब व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है और सभी प्रकार के मरीज के लिए कष्टदायक और दं झेलने लायक हो गया है । अंबेडकर अस्पताल लगातार छत्तीसगढ़ के अखबारों की सुर्खियों बन रहता है । अंबेडकर अस्पताल कैंसर के मरीज परेशान है । बच्चों का विभाग बदहाली में है। मरीजों के खानपान की सुविधा भी ठेकेदारों के भरोसे चल रही है । गंदा और सड़ा हुआ खाना हर अनाप-शनाप कुछ भी परोसा जा रहा है । हार्ट- बीपी-शुगर कैंसर के मरीजों को एक ही प्रकार का खाना परोसा जा रहा है। अंबेडकर हॉस्पिटल की जर्जर व्यवस्था पर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने किसी प्रकार का संज्ञान लेकर अभी तक कड़ाई से कार्रवाई नहीं करने पर आम जनता आश्चर्य चकित है। अंबेडकर अस्पताल प्रदेश का सबसे बड़ा सुविधाओं से सुसज्जित अस्पताल है जहां बड़े से बड़े रोग को इलाज हो सकता है। लेकिन अफसरशाही के चलते सिर्फ कमीशन और अपने चहेतों को उपकृत करने का खेल चल रहा है। यहां आने वाला मरीज भगवान भरोसे होता है जिंदा चला गया तो भगवान को धन्यवाद जरूर कहता है। कि आपने मुझे इस नर्क से निकाल दिया। कैंसर की जांच के लिए 18 करोड़ की लागत से खरीदी मशीन 6 साल से धूल खा रही है। अब तक चालू नहीं करा पाए। रेफर करने के लिए नहीं मिली एंबुलेंस जच्चा-बच्चा की मौत से भी कोई सबक नहीं लिया गया। वही अंबेडकर अस्पताल में छोटे बच्चों के खेलने के लिए बनवाया गया किड्स फ्ल रूम पिछले 3 सालों से बंद पड़ा है। बच्चों को खेलने के लिए यहां दो छोटे-छोटे रूम बनाए गए थे। जिसमें ताले पड़े है। जिसके कारण खेलने वाले बच्चे सिर्फ उन खिलौने को बाहर से देख सकते है, खेल नहीं सकते।

अभिशप्त है मेकाहारा के मरीज,

रायपुर का सरकारी अस्पताल मेकाहारा प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल है। जहां सुविधाओं और संसाधनों की कोई कमी नहीं लेकिन स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण गांव के मरीजों एवं शहर की आम जनता को इन सभी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। छत्तीसगढ़ का स्वास्थ्य विभाग को जिस हिसाब से हर बीमारी के इलाज के लिये मेकाहारा जैसे बड़े अस्पताल को तैयार रखना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य है स्वास्थ्य विभाग इस हॉस्पिटल को भगवान भरोसे छोड़ दिया है।

गुढिय़ारी हमर अस्पताल बन गया तुहर अस्पताल

विडंबना देखिए गुढिय़ारी हमर अस्पताल में प्रसव के बाद बच्चा-जच्चा की मौत को लेकर हर रोज स्वजनों को अस्पताल का घेराव करना पड़ता है। यहां इलाज के बजाय घेराव करने वालों का अस्पताल बन गया है। इस पर स्वास्थ्य विभाग का अमानवीय चेहरा भी सामने आया। मामले में अधिकारी जवाब देने से बचते रहे जिला नोडल अधिकारी ने सीएमएचओ को इसके लिए जिम्मेदारी बताते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया। जबकि दोनों ही जिम्मेदार है।

अस्पताल को इस दुर्दशा तक पहुंचाने वाले कौन?

प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल को इस दुर्दशा तक पहुंचाने के जिम्मेदार और कोई नहीं बल्कि प्रदेश के ही नेता और आईएएस और आईपीएस अधिकारी जो वर्तमान में सरकार के बड़े ओहदों पर बैठ लोग ही हैं। इन लोगों ने षड्यंत्र पूर्वक एनकेन प्रकारेण अपने द्वारा या रिश्तेदारों द्वारा संचालित निजी अस्पतालों में मरीजों को रिफर करने का काम बखूबी अंजाम दे रहे हैं और बेतहाशा कमाई कर रहे हैं।

एक संगठित ग्रप

इन लोगों का एक प्रकार से संगठित ग्रुप है जो सरकारी सुविधाओं का लाभ तथा स्वास्थ्य समस्याओं का निदान प्रदेश के गरीब मरीजों और शहर की आम जनता को उपलब्ध कराने में कोताही बरतते है। इसकी तहकीकात जनता से रिश्ता के रिपोर्टर ने विगत 6 सालों के स्वास्थ्य सेवाओं के ब्यौरा का अध्ययन करने के बाद चौकाने वाली बात सामने आई जिसमें पाया गया कि लगभग दो दजऱ्न से भी अधिक विधायक निजी फायदा देखते हुए प्रदेश में या तो अपने परिवारवालों के नाम से या किसी दोस्त, जान पहचान वालों के साथ पार्टनरशिप करके या फिर किसी कंपनी के नाम से बड़े-बड़े अस्पताल का संचालन कर रहे हैं। इसी प्रकार प्रदेश के कुछ आईएएस और आईपीएस अफसर भी अपने रिश्तेदारों के माध्यम से या अपने दोस्तों के साथ मिलकर कंपनी खोलकर आधुनिक सुविधाओं से पूर्ण बड़ा अस्पताल संचालित कर रहे हैं। साथ ही इन अधिकांश बड़े अस्पतालों में कहीं न कहीं से उच्चस्तरीय नौकरशाहों का और नेताओं दो नंबर की रकम बड़े पैमाने में निवेश किया गया है। इसलिए सरकारी अस्पताल में किसी भी प्रकार की गंभीर बीमारी का इलाज करना तो दूर की बात रही ऐसे मरीजों को वे अपने एरिया के निजी अस्पतालों में ही इलाज कराने की सलाह देते हैं। और गरीब मरीजों को दवाइयां, डाक्टर उपलब्ध नहीं होते, क्योंकि इनकी मिला जुला सिंडीकेट काम करता है। सरकारी अस्पतालों में डाक्टर समय भी नहीं देते, नंबर नहीं आने का बहाना कर किसी भी प्रकार से मरीजों एवं उनके परिजनों को परेशान करते हैं ताकि मजबूरन परिजन मरीज को जहां से वे आये होते है वहां के निजी अस्पतालों में भर्ती करने का मन बना लें और भर्ती भी करा दें। सरकारी अस्पतालों में मरीज के परिजनों को थका देने का हर संभव प्रयास किया जाता है और ये इसलिए करते हैं कि मरीज के परिजन हड़बड़ी और हैबत में मरीज को अच्छा इलाज करने के लिए निजी अस्पतालों में ले जाएँ। जहां इनका कमीशन फिक्स होता है।

इसका एक उदाहरण जनता से रिश्ता के रिपोर्टर ने डेंटल कालेज अस्पताल में दो दिन इलाज करने के उपरांत सम्बंधित डाक्टर ने स्पष्ट रूप से कहा कि यहां तुम इलाज करने के बजाये किसी निजी अस्पताल जाओ जहां कम खर्चे में बेहतर इलाज हो सकता है । उक्त निजी अस्पताल उस डाक्टर का खुद का था। कहने का तात्पर्य यह है कि राज्य सरकार की सभी योजनाओं को स्वास्थ्य अमला गंभीरता से और जिम्मेदारी से सुचारु रूप से लागू करने के पक्ष मे ं कभी नहीं दिखता,अगर ये ऐसा करने लग जाये तो इनके स्वामित्व वाले निजी अस्पतालों का क्या होगा? जहाँ करोड़ों लगाए बैठे हैं। इनके इस कृत्य से ऐसा लगता है कि ये सब राज्य सरकार को बदनाम करने की साजिश तो नहीं ? उनके इस प्रकार की कारगुजारियों से ऐसा प्रतीत होता है कि ये जानबूझकर साजिशन ऐसा कर रहे हैं। सरकार को बदनाम करने में स्वास्थ्य अमले के अधिकारी, कर्मचारी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे है।

बदहाल मरच्युरी

कहने को तो सर्वसुविधा युक्त है पर हकीकत में कुछ और ही है। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल के मरच्युरी का हांल देख कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। शव रखने और पोस्टमार्टम के लिए मरच्युरी बनाया गया है लेकिन आधे से ज्यादा केबिनेट कबाड़ में तब्दील हो चुके है या ठंडा नहीं करता और पूरे मरच्युरी का ये हाल है की वहां पर एक मिनट रुका नहीं जा सकता। बदबू और सडऩ़ के मारे लोग वहां रुक ही नहीं सकते। मज़बूरी में उनके परिजन पोस्टमार्टम के लिए कतराते हैं। इसका परिणाम ये होता है कि परिजनों को बाहर से एम्बुलेंस बुलाकर शव को निजी फ्रीजऱ में रखवाना पड़ता है, इसके चलते उनको अनावश्यक खर्च वहन करना पड़ता है।

लापरवाही का पर्याय बना मेकाहारा

स्वास्थ्य अमले की लापरवाही से उपेक्षाओं का शिकार का पर्याय बन गया है, यहां मरीज को लकेर पहुंचते ही स्टाफ दुव्र्यवहार करना सुरू कर देता है। आखिर हताश होकर मरीज को अन्यत्र निजी अस्पतालों में बेहतर इलाज के लिए शिफ्ट होना पड़ता है। छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े अस्पताल में सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ता नजऱ आ रहा है। स्वास्थ्य कर्मचारियों और अधिकारियों की लापरवाही का खामियाज़ा मेकाहारा में भर्ती होने वाले मरीज और उनके परिजन भुगत रहे है। जिसका फायदा निजी अस्पताल मालिक उठा रहे है। यहां के कर्मचारी मरीजों के परिजनों को निजी अस्पताल जाने की सलाह देते हैं साथ ही एक कार्ड भी देते हैं कि वहां पर कंसेशन हो जाएगा वाला रटारटाया लुभावना आश्वासन देते है।

कोरोना काल में जमकर की कमाई

कोरोना काल में मेकाहारा में आम मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा था, उस वक्त निजी अस्पतालों में सारे मरीजों को निजी अस्पतालों में भेजा जाता था जहां इलाज के नाम पर जमकर लूटमार मचाया गया। ऐसा लगता है कि निजी अस्पतालों के संचालकों पर स्वास्थ्य विभाग का कोई नियंत्रण नहीं है।

स्वास्थ्य मंत्री की मंशा क्या ?

स्वास्थ्य मंत्री मुख्यमंत्री के लोकवाणी तर्ज पर हर महीने हमर पचायत के नाम से रेडियो में ग्रमीणों के सवालों का जवाब देते है । पंचायत से लेकर सभी विभागों के सदर्भ में सवालों का सटीक जवाब देते है लेकिन स्वास्थ्य संबंधी और मरीजों को विभाग की ओर से मिलने वाली तमाम सुविधाओं के बारे में हर बार बताने से भूल जाते हैं। शायद वे भी नहीं चाहते कि लगता है कि निजी अस्पतालों की कमाई में कोई कमी आए। स्वास्थ्य मंत्री का क्या मंशा है समझ से परे है। वे बेमन से काम कर रहे जिससे ऐसा लगता है कि कहीं स्वास्थ्य मंत्री की नजऱ किसी और कुर्सी पर तो नहीं है। तभी तो प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के बदहाली को सुधारने की कोई कवायद करते नजऱ नहीं आ रहे।

स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी

स्वास्थ्य विभाग के पूर्व कर्मचारी नेता ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि विभागीय मंत्री की उदासीनता स्वास्थ्य व्यवस्था को गर्त में ले जा रही है। विभागीय मंत्री नेअपने छुटभैया नेताओं को पूरा विभाग सौंप दिया है या फिर वे विभाग पर गंभीरता से काम नहीं करना चाहते। प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी गरीब जनता पर भारी पड़ रही है, सभी सरकारी अस्पताल भगवान भरोसे चल रहे है।

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