छत्तीसगढ़

फर्जी दस्तावेज से बने फार्मासिस्ट चला रहे अस्पताल-मेडिकल दुकान!

Nilmani Pal
20 Dec 2022 5:10 AM GMT
फर्जी दस्तावेज से बने फार्मासिस्ट चला रहे अस्पताल-मेडिकल दुकान!
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फार्मेसी काउंसिल में फर्जी रजिस्ट्रेशन का मामला पहुंचा थाने, पूरा विभाग संदेह के घेरे में...

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। राजधानी सहित प्रदेश के दूसरे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में कई जगह मेडिकल स्टोर्स बिना फार्मासिस्ट के ही संचालित हो रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग को भी इसकी भनक है, लेकिन कार्रवाई नहीं कर रहा है। कहने को तो मेडिकल स्टोर्स के संचालन के लिए डिग्री, डिप्लोमा, सर्टिफिकेट के आधार पर लाइसेंस जारी किए जाते हैं, लेकिन हकीकत इससे परे है। शहरों और गांवों के कुछ मेडिकल व्यवसायी नियमों को ताक में रखते हुए मेडिकल का संचालन कर रहे हैं। बिना फार्मासिस्ट व जरूरी दस्तावेज के मेडिकल दुकान का व्यवसाय किया जा रहा है। कई मेडिकलों में अपात्र व्यक्तियों को जिम्मेदारी दे दी गई है, जिनको दवाइयों की जानकारी तक नहीं है। इन मेडिकल स्टोर्स के खिलाफ न तो ड्रग इंस्पेक्टर कोई कार्रवाई करते हैं और ना ही स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी। गैर डिप्लोमा, डिग्रीधारी द्वारा मेडिकलों का संचालन करने से मरीजों की जान को खतरा रहता है। दूसरे के नाम के सर्टिफिकेट का उपयोग: नगर के कुछ मेडिकल दूसरे के नाम के सर्टिफिकेट पर लाइसेंस का उपयोग कर रहे हैं। मासिक या सालाना के आधार पर लाइसेंस के लिए लेन-देन होता है। पांच से दस हजार रुपए महीने में लाइसेंस उपलब्ध हो जाता है। स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सूत्रों की माने तो नियमों को ताक पर रखकर नगर के मेडिकल स्टोर चल रहे हैं।

संचालक कच्चे बिल पर देते हैं दवाइयां

अधिकांश मेडिकल स्टोर्स संचालक ग्राहकों को दवाओं का बिल नहीं देते हैं। कई बार ग्रामीण क्षेत्रों से आए लोगों को कंपनी की दवाओं को छोड़कर उसी फॉर्मूले की लोकल दवाइयां थमा दी जाती है। सूत्रों की माने तो बिल देने के एवज में मेडिकल संचालकों को दवाओं की कंपनी भी उल्लेखित करना पड़ती है। इसी वजह से बिल देने से बचते नजर आते हैं। ऐसे में मरीज डॉक्टरों के निजी प्रैक्टिस के समय उनके क्लीनिक या घर पर जाकर जांच करवाते हैं।

मेडिकल की आड़ में चल रहे फर्जी क्लिनिक

गांवों व छोटे कस्बों में जगह जगह मेडिकल स्टोर की आड़ में अवैध क्लिनिक चलाए जा रहे है। चिकित्सा विभाग को इसकी जानकारी होने के बावजूद भी कार्रवाई नहीं हो रही है। इन मेडिकल संचालकों द्वारा मरीजों से मन माफिक फीस वसूली जाती है। ऐसे में अगर गलत दवा देने से तबीयत खराब हो जाती है, तब उन्हें बड़े अस्पताल जाने की सलाह दी जाती है। ये लोग न तो कोई पर्ची पर दवाई लिखते है और न ही इलाज के लिए कोई प्रमाण छोड़ते हैं। ऐसे में अगर मरीज की सेहत पर कोई असर पड़ता है तो बिना सबूत के इन पर कोई कार्रवाई भी नहीं होती है।

फर्जी दस्तावेजों से रजिस्ट्रेशन, पुलिस करेगी जांच

फार्मेसी काउंसिल में फर्जी दस्तावेजों से रजिस्ट्रेशन करवाने वाले 56 फार्मासिस्ट की फाइल तेलीबांधा पुलिस के हवाले कर दी गई है। पुलिस को जिन 56 लोगों की सूची सौंपी गई है, उनमें किसी का रजिस्ट्रेशन हो गया है तो किसी ने फर्जी दस्तावेजों के साथ आवेदन जमा किया है। पुलिस दस्तावेजों का परीक्षण करने के बाद चारसौबीसी का केस दर्ज करेगी।

गड़बड़़ी के खुलासे के बाद काउंसिल में विभागीय स्तर पर हलचल मची और शुक्रवार को प्रारंभिक तौर पर 56 फार्मासिस्टों की फाइल पुलिस थाने में जमा कर दी गई है। इसके साथ ही फार्मेसी काउंसिल से पुलिस को भेजी गई चिट्ठी में केवल उन लोगों के नाम है जिन्होंने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर रजिस्ट्रेशन करवाया है। काउंसिल में फर्जी दस्तावेजों से रजिस्ट्रेशन करने वाले कौन हैं? काउंसिल में जमा होने वाले दस्तावेजों की जांच का जिम्मा किन पर था, उन्होंने कैसे सत्यापन के बिना ही रजिस्ट्रेशन कर दिया? पत्र में विभागीय मिलीभगत की जांच के संबंध में कोई जिक्र नहीं किया गया है। इसे लेकर काउंसिल के सिस्टम पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

फार्मेसी काउंसिल में सदस्यों के माध्यम से की जा रही जांच में संकेत मिल रहे हैं कि यहां फर्जी दस्तावेजों से फार्मासिस्ट का रजिस्ट्रेशन कराने का खेल पिछले कई साल से चल रहा है। इसी वजह से काउंसिल के सदस्यों ने पिछले 20 साल के दौरान जितने भी रजिस्ट्रेशन हुए हैं उन सभी को जांच के घेरे में लिया है।

काउंसिल के सदस्यों का कहना है पिछले तीन साल के दौरान हुए रजिस्ट्रेशन का रिकार्ड खंगालने के बाद पिछले पांच साल का रिकार्ड चेक करवाया जाएगा। फर्जीवाड़ा फूटने के बाद चुपचाप 50 से ज्यादा फार्मासिस्टों का रजिस्ट्रेशन कैंसिल किया जा चुका है। 30 फार्मासिस्टों का रजिस्ट्रेशन जारी है। फार्मेसी काउंसिल के सदस्यों की एक टीम गोपनीय तरीके से पूरे फर्जीवाड़े की जांच कर रही है। इस कांड में प्रारंभिक तौर पर पिछले तीन साल के रजिस्ट्रेशन के आधार पर 3 हजार फार्मासिस्टों की डिग्री जांच के घेरे में आ गई है। इनकी जांच के बाद सभी 25 हजार फार्मासिस्टों के रिकॉर्ड चेक होंगे।

जांच में पता चला है कि जिन उम्मीदवारों ने दूसरे राज्य के फार्मेसी कालेजों के सर्टिफिकेट यहां जमा करवाए, यह वेरिफाई ही नहीं लगाया गया कि यह सही हैं या फर्जी। कई ऐसे लोगों को रजिस्ट्रेशन हो गया, जिन्होंने तीन माह की मेडिकल स्टोर या अस्पताल ट्रेनिंग का प्रमाणपत्र भी नहीं दिया। भास्कर की पड़ताल के मुताबिक छत्तीसगढ़ मेडिकल काउंसिल में 2000 के बाद से अब तक 25 हजार फार्मासिस्टों का रजिस्ट्रेशन हुआ है। अब इनके कॉलेज और ट्रेनिंग के दस्तावेजों की जांच शुरू हुई है। अभी 2018-21 के बीच हुए 3000 रजिस्ट्रेशन जांच के दायरे में लिए गए हैं। इन्होंने जिन कॉलेजों से पढ़ाई का प्रमाणपत्र जमा किया है, ऐसे कॉलेजों को फार्मासिस्ट का ब्योरा भेजकर जानकारी मांगी है। यह भी पता लगा रहे हैं कि कालेज वाकई है या नहीं।

जालसाजी फूटी तो बदला प्रभार

फार्मेसी काउंसिल के सदस्यों ने जब 6 महीने पहले जालसाजी की जांच शुरू की तो कुछ केस मिलने शुरू हुए। काउंसिल की आमसभा में जब इसकी जानकारी उजागर की गई तब खानापूर्ति के नाम पर दो बाबूओं का प्रभार बदलने की खानापूर्ति कर दी गई। दोनों अभी भी काउंसिल में हैं। विभागीय स्तर पर जांच के भी आदेश नहीं दिए गए हैं।

डा. श्रीकांत राजिमवाले, फार्मेसी काउंसिल, रजिस्ट्रार के अनुसार पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी गई है। विभागीय जांच करवायी जाएगी कि किसकी लापरवाही से फर्जी दस्तावेजों पर रजिस्ट्रेशन हो गया है।

फर्जी फार्मासिस्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार और फार्मेसी काउंसिल को लगाई थी फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में फर्जी फार्मासिस्टों द्वारा अस्पताल और मेडिकल स्टोर चलाने के इल्जामों की जांच करते हुए कहा है कि राज्य सरकार और उसकी फार्मेसी काउंसिल को नागरिकों की सेहत और जिंदगी के साथ खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है. जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस एम.एम. सुंदरेश ने कहा, किसी भी पंजीकृत फार्मासिस्ट की गैर-मौजूदगी में अस्पताल/डिस्पेंसरी चलाने और/या फर्जी फार्मासिस्ट द्वारा ऐसे अस्पताल चलाने और यहां तक कि फर्जी फार्मासिस्ट मेडिकल स्टोर चलाएंगे तो इससे नागरिकों का स्वास्थ्य प्रभावित होगा. बेंच ने कहा कि फार्मेसी कानून, 1948 के प्रावधानों के साथ-साथ फार्मेसी प्रैक्टिस कानून, 2015 के तहत यह देखना फार्मेसी परिषद और राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि अस्पताल/मेडिकल स्टोर पंजीकृत फार्मासिस्ट द्वारा चलाए जा रहे हैं या नहीं ? सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मेडिकल स्टोर और अस्पताल चलाने वाले फर्जी फार्मासिस्टों पर इल्जाम लगाते हुए पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका को बहाल करते हुए ये तंकीद की है.

सरकार और काउंसिल को लगाई फटकार

बेंच ने कहा है कि जिस तरह से हाईकोर्ट ने जनहित याचिका का निस्तारण किया है, नागरिक की सेहत और जिंदगी को छूने वाली बहुत गंभीर शिकायतों को हवा देने वाली रिट याचिका अस्वीकृत है. हाईकोर्ट भारत के संविधान के अनुच्छेद-226 के तहत निहित ताकतों का इस्तेमाल करने में नाकाम रहा है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिट याचिका का निपटारा करने के लिए दिए गए फैसले और आदेश अस्थिर है. बेंच ने कहा कि बिहार राज्य फार्मेसी परिषद और राज्य सरकार पर इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं करने के गंभीर इल्जाम हैं.

शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट को भी लगाई फटकार

मुकेश कुमार की याचिका पर सुनाए गए फैसले में कहा गया है कि हाईकोर्ट को बिहार राज्य फार्मेसी परिषद को फर्जी फार्मासिस्ट के इल्जामों और/या राज्य में कितने सरकारी अस्पतालों/अस्पतालों को पंजीकृत फार्मासिस्ट के बिना चलाने के आरोपों पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहना चाहिए था. सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर, 2019 को पास हाईकोर्ट के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि उसने याचिका का सबसे आकस्मिक तरीके से निस्तारण किया है और मामले को हाईकोर्ट को वापस भेज दिया है और चार सप्ताह के अंदर नए सिरे से इस मुद्दे पर फैसला करने को कहा है. पीठ ने हाईकोर्ट से यह भी कहा कि फर्जी फार्मासिस्टों पर राज्य सरकार और बिहार राज्य फार्मेसी परिषद से विस्तृत रिपोर्ट मांगी जाए।

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