छत्तीसगढ़

निजी चिकित्सालय की याचिका हुई पेश, शासन को मिला नोटिस

Shantanu Roy
12 Feb 2022 3:47 PM GMT
निजी चिकित्सालय की याचिका हुई पेश, शासन को मिला नोटिस
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बिलासपुर। निजी चिकित्सालय में इलाज कराने पर भी चिकित्सा परिचार्य नियम अनुसार भुगतान करने के लिए याचिका पेश की गई है। इस पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने शासन को नोटिस जारी किया गया। याचिकाकार्ता मन्नू लाल नगर निगम रायपुर में पंप सहायक के पद पर कार्यरत हैं। उनको कोविड 19 संक्रमण होने पर एम्स रायपुर रेफर किया गया।

बेड न मिलने पर मेकहारा रायपुर और वहां से निजी मान्यता प्राप्त कोविड 19 अस्पताल में भर्ती कराया गया। इलाज के पश्चात स्वस्थ होने पर उन्होंने चिकित्सा बिल भुगतान के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया। विभाग द्वारा उनका आवेदन निरस्त कर दिया गया। इसकी वजह बताई गई कि उन्होंने जिस अस्पताल से इलाज कराया गया है, वह चिकित्सा परिचरया नियम की सूची में नहीं है।

इसके विरुद्ध याचिकाकर्ता मन्नू लाल द्वारा अधिवक्ता सुशोभित सिंह कुवर साहू चन्द्र कुमार के माध्यम से याचिका प्रस्तुत की गई। याचिका में बताया गया कि उन्हें अत्यंत गंभीर अवस्था में तत्काल उपचार के लिए कोविड अस्पताल में भर्ती कराया गया और तत्काल चिकित्सा से ही वह इस प्राण घातक बीमारी से बच पाए।
उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए न्याय दृष्टांत के अनुसार भी यदि किसी कर्मचारी को तत्काल इलाज के लिए गैर सूचीबद्ध अस्पताल में भर्ती कराया गया हो तो वह चिकित्सा नियम अनुसार भुगतान के लिए पात्र होगा। उच्च न्यायालाय ने याचिका पर संज्ञान लेते हुए शासन को नोटिस जारी कर जवाब प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।
तखतपुर तहसील के ग्राम बांधा निवासी सुभाष चंद्रा ने पुलिस आरक्षक (ड्राइवर जीडी) की भर्ती प्रक्रिया में हिस्सा लिया। शारीरिक और मेडिकल परीक्षा में सफलता के बाद उसका चयन कर लिया गया। इसके बावजूद भी उसकी नियुक्ति नहीं की गई। मामले को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई। इसमें बताया गया कि याचिकाकर्ता को सड़क दुर्घटना में आरोप प्रमाणित होने के बाद धारा 304 ए में सजा हुई।
बाद में क्रिमिनल कोर्ट ने इस आदेश को निलंबित कर दिया था। इसी कारण को आधार बनाकर एसपी राजनांदगांव ने नियुक्ति आदेश जारी करने से इन्कार कर दिया। मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय के अग्रवाल की सिंगल बेंच ने माना कि याचिकाकर्ता के खिलाफ दोषसिद्ध हुआ था। हालांकि इसकी सजा को क्रिमिनल कोर्ट ने निलंबित कर दिया।
इसके बावजूद कानून के अनुसार यह बिंदु उसके द्वारा नियुक्ति का आदेश जारी कराने का अनुरोध स्वीकार करवाने पर्याप्त आधार नहीं है। उधातम न्यायालय के अवतार सिंह व एसके नजरूल इस्लाम जैसे प्रकरणों में इसे स्पष्ट किया गया है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
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