छत्तीसगढ़

आरटीओ दफ्तर में दलालों की पैठ...हर काम ठेके पर, वाहन चालकों-मालिकों से हो रही लूट

Admin2
22 Dec 2020 7:14 AM GMT
आरटीओ दफ्तर में दलालों की पैठ...हर काम ठेके पर, वाहन चालकों-मालिकों से हो रही लूट
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अधिकारियों और कर्मचारियों की मिली भगत से वाहन मालिकों को लूटने का खेल, कानून-कायदे को ताक में रख निजी सहायकों और दलाल दे रहे लाइसेंस और फिटनेस प्रमाण पत्र

ज़ाकिर घुरसेना

रायपुर। राजधानी रायपुर का आरटीओ दफ्तर ऐसा है जहां घुसते ही पैसे के लेन देन का मीटर घूमने लगता है। जितना जल्दी और बड़ा काम उतना ही फास्ट पैसा मीटर दौड़ेगा। यहां हर प्रकार का काम आसानी से हो जाता है। सिर्फ जेब भर ढीली करनी पड़ती है। ऐसा लगता है कि आरटीओ ऑफिस बेलगाम हो गया है। यहां सिर्फ दलालों की चांदी है। बिना एजेंट के आपका काम होगा ही नहीं। अगर सीधे तौर पर नियम कायदे से काम कराना चाहेंगे तो कब काम होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। यहां पर दलालों की फीस आरटीओ के सिस्टम में मर्ज हो गया है। इसके बिना कोई काम के बारे में सोचना बेमानी होगी। दलालों की वसूली चरम पर है, मजे की बात है यह है कि आरटीओ ऑफिस पंडरी हो या भनपुरी स्थित मुख्य कार्यालय दोनों जगह लेन देन का सिस्टम एक जैसा है। वाहन मालिकों से अलग-अलग कार्यो के लिए शासन व्दारा निर्धारित शुल्क तय है उससे कही कई गुना ज्यादा लिया जा रहा है। कार्यालय में देखा जाए तो दलालों का ही दबदबा है और कहीं न कहीं वहां के उच्च अधिकारियों की मिली भगत भी होने का अंदेशा है। तभी तो दलालों के हौसले बढ़े हुए हैं और अपने मन मुताबिक शुल्क वसूल रहे हैं। शिकायत करने पर घिसापिटा जवाब मिलता है जांच करवाते है, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

दलाल आरटीओ के मास्टर की (चाबी)

प्राय: देखा गया है कि वाहन सम्बन्धी काम जो निर्धारित शुल्क पटाने पर मिनिमम 15 दिन के अंदर काम पूर्ण होकर होम एड्रेस में बाई पोस्ट पहुंचना तय किया गया है जिसकी गारन्टी भी नहीं कि काम हो जाये, अगर हुआ तो तय समय सीमा में उपरोक्त पते पर कागज पहुंच जाये। इस वजह से वाहन मालिक दलालों से काम करवाना पसंद करते है, भले ही इस काम के लिए चार गुना ज्यादा फीस देना पड़े। क्योंकि ये अधिक फीस लेकर 15 दिन के काम को 2 दिन में कर देते है। यदि सीधे लर्निंग लाइसेंस बनाना हो तो अधिकारी कुछ न कुछ खामी निकल देते है और मजबूरी में लाइसेंस के लिए दलालों से संपर्क करना पड़ता है और दलाल दो दिन में बनाकर दे देते हैं।

निजी सहायक भी यहां मिलेंगे

आरटीओ ऐसा कार्यालय है जहां के अधिकारी-कर्मचारी अपने सहायता के लिए निजी सहायक भी रखे हुए है जो नियम विरुद्ध है। सारा काम ये निजी सहायक ही करते है जिसका वेतन भुगतान उक्त अधिकारी या कर्मचारी खुद करते है, कई तो ऐसे भी है जो वेतन नहीं लेते बल्कि वे हर काम के पीछे कमीशन फिक्स कर लेते हंै। ये कार्यालय की गोपनीयता भी भंग करते हैं साथ ही अवांछित लोगों का बेधड़क आना जाना भी बना रहता है। और ऐसे लोगों का काम आसानी से हो भी जाता है। देखा गया है कि आरटीओ के हर सेक्शन में अधिकारी-कर्मचारी के द्वारा रखे गए निजी सहायक ही फाइल बनाते है और वे सिर्फ हस्ताक्षर ही करते हैं। फाइल आगे बढ़ाने, काम कराने की सारी जिम्मेदारी इन निजी सहायकों की होती है साथ ही फीस भी ये ही तय करते हैं। इन लोगों ने जो फीस तय कर दी मानो वही फाइनल होता है जो निर्धारित शुल्क से कई गुना ज्यादा रहता है। एक उपभोक्ता ने बताया कि परमिट और फिटनेस के लिए बिना पैसा दिए काम नहीं होता, उन्होंने बताया कि बाबुओं का सेक्सन तय करने के लिए भी दो से दस लाख तक लिया जा रहा है। मलाईदार सेक्सन का ज्यादा है और कम मलाईदार सेक्सन का रेट कम है। यहां रिश्वत खोरी हद से ज्यादा हो गई है आम आदमी परेशान है। ये सोच कर जनता ने कांग्रेस की सरकार बनाई थी कि सब काम आसानी से होगा , लेकिन यहां उल्टा हो रहा है बिना भेंट पूजा के एक कागज का टुकड़ा बी नहीं मिलता । हालांकि पिछली सरकार ने आरटीओ दफ्तर से दलालों को हटवाया था, अभी भी वहीं सिस्टम है लेकिन नियम का पालन रत्ती भर नहीं हो रहा है दलाल पूरी तरीके से सक्रिय हैं, पूरा दफ्तर दलालों की चंगुल में है। नियमानुसार सरकारी दफ्तर में कोई निजी व्यक्ति कार्य नहीं कर सकता लेकिन यहां ऐसा लगता है कि सरकारी दफ्तर न होकर प्राइवेट कंपनी हो गई है। आरटीओ अधिकारियों की मिली भगत से दलाल आरटीओ आफिस को सरकारी नल समझ बैठे है, जब चाहा नल खोलकर बाल्टी भर रहे है।


मैं स्वयं राउंड में हूं कोई एंजेट नहीं हैं, आप स्वयं आकर देख सकते हैं। परमिट देने का फैसला शासन स्तर पर होता है।

- शैलाभ साहू, आरटीओ, रायपुर

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