
सीजीएमएससी में घोटाले दर घोटाले
शिकायतों और घोटालों के लिए कुख्यात होने के बाद भी विभागीय अधिकारियों की मौन
सीजीएमएससी अपनी कार्यशैली को लेकर सुर्खियों में,हमर क्लिनिक अधिकारियों ने बना दिया निजी क्लिनिक
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। सीजीएमएससी घोटाले दर घोटाले को अंजाम दे रही है। ताजा मामला हमर क्लिनिक में बिना फॉल्स सिलिंग लगे साढ़े सात लाख का भुगतान कर बंदरबाट को जारी रखा है। सीजीएमएससी राजधानी के माना कैंप में हमर क्लिनिक का निर्माण कर रहा है जिसकी लागत करीब 25 लाख आंकी गई है। जिसमें ठेकेदार को प्रथम चलदेयक भुगतान 7.5 लाख 3 मार्च को कर दिया गया। यह भुगतान हमर क्लिनिक भवन में फाल्स सिलिंग के नाम पर दिया गया है। जबकि फाल्स सिलिंग लगा ही नहीं है। इस तरह की कार्यशैली को लेकर सीजीएमएससी हमेशा सुर्खियों में रहा है। कभी दवा खरीदी में गड़बड़ी तो कभी वित्तीय अनियमितता की शिकायतों का मामला सामने आना आम बात हो गई है। अब निर्माण कार्यों को लेकर लंबे समय से घोटाले की शिकायत मिल रही है। फाल्स सिलिंग को लेकर विभाग चर्चा में है।जिसकी तत्काल जांच हुई तो और भी चौकाने वाले घोटाले सामने आ सकते है। सूत्रों की माने तो रनिंग भुगतान में ऐसे कई आइटम है जिसका भुगतान कर दिया गया है। माना में हमर क्लिनिक का निर्माण कार्यपालन अभियंता निसांत सूर, सहायक अभियंता ऋषभ सिंह, उपअभियंता सतीश डोंगरे के मार्गदर्शन में हो रहा है। इससे पहले छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन (सीजीएमएससी) द्वारा दवा परिवहन के लिए दी गई निविदा में गोलमाल की आशंका व्यक्त की जा रही थी जनता से रिश्ता ने टेंडर होने के उपरांत यह मामला उठाया था। सबसे पहले तो निविदा बुलाया गया तब निविदाकारों के दस्तावेजों को सही ढंग से देखा नहीं गया एवं जिस ठेकेदार को काम दिया गया है उसने समय पर वाहन भी नहीं लगाया। निविदाकार द्वारा निविदा नियमों का खुले आम उल्लंघन करने की भी जानकारी मिल रही है। सीजीएमएससी के सूत्रों ने जानकारी दी कि कांकेर में प्रदाय की गई वाहन का बीमा एवं फिटनेस समाप्त हो गई थी। तथा निविदाकार द्वारा कर्मचारियों पर अनावश्यक दबाव बनाकर उक्त वाहन को चलाने बोला जा रहा है। निविदा के नियम के अनुसार सभी वाहनों में 2 लेबर रखना अनिवार्य है किन्तु निविदाकार द्वार अधिकारियों से सेटिंग कर 1 लेबर रखा गया है और एक ही लेबर से काम लिया जा रहा है। सूत्र यह भी बताते हैं कि कई जिलों में आज पर्यन्त सम्पूर्ण गाडिय़ां पहुंची ही नहीं आधे-अधूरे वाहनों से काम चलाया जा रहा है। जिससे समय पर ग्रामीण क्षेत्रों में जीवनरक्षक दवाईयां नहीं पहुँच रही है एवं निविदाकार द्वारा निविदा में चाही गई वाहन के बदले दूसरा वाहन दिया जा रहा है। विभाग द्वारा इन सब की अनदेखी की जा रही है। विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से निविदा शर्तों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है। निविदा की शर्तों के मुताबिक ठेकेदार के पास खुद की 16 गाडिय़ां होना आवश्यक था, आवश्यकता पडऩे पर बाहर से गाड़ी बुलवाकर दवा परिवहन में लगाई जा सकती थी, लेकिन निविदाकार के पास स्वयं की 16 गाड़ी भी नहीं थी। यह भी सूचना मिली है कि निविदाकार द्वारा जो वाहन निविदा में दी गई थी जैसे टाईप1 एवं टाईप 2, इस प्रकार का वहां भी दवा सप्लाई में नहीं लगाया गया था।
यह भी जानकारी मिली है कि निविदाकार को कार्यादेश जारी होने के एक माह के भीतर ही सभी वाहन लगानी थी। कार्यादेश जारी होने के बाद लगभग छह महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी गाड़ी नहीं लगाई गई थी। कई जिलों में सम्पूर्ण वाहन नहीं पहुंची है। सम्बंधित जिलों के अधिकारियों से जानकारी मिली है कि अभी तक सम्पूर्ण वाहन नहीं पहुंची है। निविदा की शर्तो के मुताबिक विभाग इस दशा में निविदाकार को काली सूची में डाल कर ईएमडी की राशि जब्त कर निविदा निरस्त कर सकती है लेकिन ऐसा नहीं होना संदेह को जन्म देता है। एक के बाद एक खुलासे से सरकार के काम पर पलीता लग रहा है। लगता है विभाग पिछले घोटालों से सबक नहीं लिया है। सरकार को संज्ञान में लेकर दोषियों पर करवाई करनी चाहिए। दवा परिवहन में घोटाला भी जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ ही है। इतना सब कुछ होने के बाद भी मंत्री और अधिकारी कोई संज्ञान नहीं लकर सरकार को बदनाम कर रहे हैं।