मरीजों को नहीं मिल रही मुफ्त दवाई, बाहर से खरीदने डॉक्टर थमा रहे पर्ची
जेनेरिक दवा लिखने का फरमान भी बेअसर
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। मेडिकल अस्पताल में मरीजों को मुफ्त दवा नहीं मिल रही है। उन्हें बाहर से दवा खरीदनी पड़ रही है। इससे पैसे के अभाव में सरकारी अस्पताल में इलाज कराने वाले परिजनों को आर्थिक और मानसिक परेशानी झेलनी पड़ रही है। सरकारी अस्पतालों में ज्यादातर दवाइयां मुफ्त उपलब्ध कराई जाती हैं लेकिन मेकाहारा में प्राय: दवाइयां उपलब्ध नहीं होने की बात कहकर बाहर से खरीद कर लाने के लिए परिजनों को पर्ची थमा दी जाती है। मरीज के परिजनों को जरूरी दवाइयां बाहर दवा दुकानों से खरीद कर लानी पड़ती है। इससे उन पर आर्थिक बोझ बढ़ता है और वे मजबूरी में मरीज का उपचार रोकने अथवा कर्ज लेने मजबूर हो रहे हैं। दवा की अनुपलब्धता की शिकायत मेकाहारा के लिए नई नहीं है वहां प्राय: ऐसी ही स्थिति बनी रहती है। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल में जरूरी जांच के लिए मशीनें उपलब्ध नहीं होने के साथ दवा की कमी आम बात है।
डाक्टर नहीं लिख रहे जेनेरिक दवा : सरकार ने मरीजों को जेनेरिक और सस्ती दवा उपलब्ध कराने के लिए डॉक्टरों को जेनेरिक दवा प्रिस्क्राइब करने का निर्देश जारी किया था। इसके बावजूद डॉक्टर जेनेरिक दवा नहीं लिख रहे हैं। अस्पताल में दवाई नहीं मिलने से और पर्ची में महंगी दवा लिखे होने के कारण मरीज के परिजन जेनेरिक दुकानों से दवा नहीं खरीद पा रहे हैं और मेडिकल दुकानों से ब्रांडेड दवाई खरीदने बाध्य हो रहे हैं।
दवाओं पर छूट भी अलग-अलग :धनवंतरी जेनेरिक दुकानों में दवाओं पर छूट का पैमाना भी अलग-अलग है एक दवा पर ही अलग-अलग शॉपों मे अलग-अलग सब्सिडी दी जा रही है। इन मेडिकल दुकानों में कहीं 65 फीसदी तो कहीं 72 फीसदी छूट दी जा रही है।
अस्पताल में बड़ी जांच की मशीने भी नहीं : फेफड़े के कैंसर का पहली स्टेज पर पता करने, फेफड़े में गठान की जांच जैसी कई मशीनें डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल में भी नहीं हैं। करीब 60 लाख रुपए में आने वाली एंडोब्रोनिकल अल्ट्रासाउंड मशीन ईबीयूएस से सबसे खतरनाक माने जाने वाले फेफड़े के कैंसर का आसानी से पता लगाया जा सकता है। इस मशीन से राजधानी के सिर्फ दो ही प्राइवेट अस्पतालों में जांच होती है, जहां बीमारी को डायग्नोसिस करने के लिए की करीब 60 हजार रुपए लगते हैं। इसके अलावा एमसीआई की शर्तों में फेफड़ा कैसे काम कर रहा है, फेफड़ों में ऑक्सीजन कैसे पहुंच रहा है। इसके लिए होने वाली बॉडीबॉक्स जांच भी आंबेडकर अस्पताल में नहीं हो पा रही है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस जांच के लिए 40 लाख रुपए की मशीन खरीदी के लिए टेंडर हुआ था। सीजीएमएससी को मशीन भी मिल गई थी, लेकिन कोरोना के दौरान 22 लाख रुपए खर्च हो जाने की बात कहते हुए यह मशीन अस्पताल को नहीं दी गई। इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।
आंबेडकर अस्पताल में कई विभागों में मशीनें धूल खा रही है। मशीनें मरम्मत, स्टॉफ की कमी, रिएजेंट नहीं मिलने आदि दिक्कतों के कारण बेकार पड़ी हुई हैं। इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। चार साल पहले 2018 में अस्पताल में स्पाइरोमीटर मशीन खरीदी गई थी, जो खराब है। नई मशीन के खराब होने के बाद भी उसे देखने कोई नहीं आया, जो अब बेकार पड़ी है। कैंसर की जांच के लिए 18 करोड़ रुपए की सीटी पेट स्कैन मशीन ढाई साल से अस्पताल में धूल खा रही है। इसका मामला हाईकोर्ट तक चला गया। इसके अलावा कई विभागों में मशीनें खराब पड़ी हैं।
राजधानी में दो दिन से कोरोना के नए केस नहीं
रायपुर। राज्य में पिछले दो दिनों से लगातार शून्य केस आ रहे हैं। रायपुर सहित किसी भी जिले में एक भी कोरोना संक्रमित नहीं मिला है। दो दिन से केस नहीं मिलने से प्रदेश में कोरोना के एक्टिव मरीजों की संख्या दहाई अंक से घटकर फिर ईकाई हो गई है। सोमवार को प्रदेश में एक्टिव मरीजों की संख्या 9 हो गई है। स्वास्थ्य विभाग के अफसरों के अनुसार सभी मरीजों की स्थिति सामान्य है। स्वास्थ्य विभाग के साथ जिला प्रशासन की टीम उनकी मॉनीटरिंग कर रही है। फिलहाल जितने मरीजों में कोरोना का संकमण मिल रहा है, उन सभी का सैंपल जिनोम सिक्वेंसिंग के लिए भेजा जा रहा है, ताकि ये पता लगाया जा सके कि राज्य में कोई नया वैरिएंट तो एक्टिव नहीं हो गया है। दो दिनों से नया केस नहीं मिलने से स्वास्थ्य विभाग के अफसरों ने राहत की सांस ली है।
शनिवार को एक साथ चार नए कोरोना संक्रमित मिल गए थे। इससे स्वास्थ्य विभाग के साथ जिला प्रशासन की चिंता बढ़ गई थी। अभी सबसे ज्यादा एक्टिव मरीज रायपुर में हैं। यहां 3 इसके अलावा दुर्ग में 2, बालोद, बिलासपुर और गरियाबंद और कांकेर जिले में एक-एक मरीज कोरोना संक्रमित है। सभी घर में इलाज चल रहा है। सभी छत्तीसगढ़ के लोकल हैं। विदेश से आने वालों में अब तक एक यात्री में कोरोना का संक्रमण नहीं मिला है।