ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव
पिछले सप्ताह भाजपा की दिवंगत नेत्री सुषमा स्वराज का एक वीडियो वायरल हो रहा था। वह 2014 के चुनाव से ठीक पहले लोकसभा में बोल रही थीं। ऐसा उन्होंने अपने सहयोगियों से कहा, हमें हमेशा याद रखना होगा कि हम विरोधी हैं, न कि शत्रु। विचारधारा, नीति और कार्यक्रमों को लेकर हमारा मतभेद है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम संवाद खत्म कर दें। आज संसद में यही होता दिख रहा है। अगर इस मानसून सत्र की बात करें, तो ऐसा लगता है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संवाद पूरी तरह से खत्म हो गया है। पक्ष और विपक्ष की राजनीति के उमड़ते घुमड़ते बादल आखिर बरस कर ही माना इस बार भी संसद का सत्र पूरी तरह धुल गया है। इस बार जो नया है, वह यह कि दोनों पक्षों के बीच गतिरोध किसानों और नागरिकों, खासकर ज्ञात असंतुष्टों के फोन हैक करने के लिए इजऱाइली स्पाइवेयर पेगासस के उपयोग की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच या जेपीसी की मांग को लेकर नहीं है, बल्कि गतिरोध इस विषय पर चर्चा की मांग को लेकर है। बहस या चर्चा संसद का सबसे बुनियादी कार्य है। चर्चा के बिना संसद अर्थहीन और अप्रासंगिक हो जाती है। सरकार कहती है कि वह किसी भी विषय पर चर्चा के लिए तैयार है, जबकि विपक्ष का कहना है कि वह संसद को इसलिए नहीं चलने दे रही, क्योंकि सरकार चर्चा के लिए राजी नहीं है। जब कार्यसूची सामने आई, तब उसमें पेगासस पर चर्चा के लिए समय नहीं दर्शाया गया था। काल्पनिक रूप से भले ही यह मांग तुच्छ हो, लेकिन यह समूचे विपक्ष को आंदोलित कर रही है। अपने यहां मुश्किल यह है कि न तो कोई रास्ता निकाला जा रहा है और न ही उसे खोजने की कोशिश की जा रही है। विपक्ष द्वारा मांग करने और सत्ता पक्ष द्वारा उसे टालने में कुछ भी नया नहीं है। जैसा कि यूपीए शासन के दौरान 2जी घोटाले मामले में पूरा सत्र बर्बाद हो गया था, क्योंकि विपक्षी भाजपा इसकी जांच के लिए संयुक्त संसदीय कमेटी(जेपीसी) के गठन से कम पर मान ही नहीं रही थी। अंतत: सरकार को जेपीसी के गठन पर सहमत होना पड़ा, क्योंकि यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि संसद का कामकाज चलता रहे। ऐसा कुछ तोड़ भाजपा सरकार को भी निकलना चाहिए था, जो नहीं निकल पायी और देखते ही देखते जनता की एक सौ चालीस करोड़ स्वाहा हो गया। संसद का मतलब कानून बनाना, ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा करना और सरकार को जवाबदेह ठहराना है। सरकार अपने तरीके से मुद्दों को कुचल नहीं सकती। जबकि विपक्ष को हंगामा करने के बजाय बहस और चर्चा के जरिये मुद्दों को उठाना चाहिए जो नहीं हुआ दिखा है। बहरहाल जो भी हो सरकार को इन दोनों विषयो में गंभीरता दिखाना चाहिए था जो नहीं दिखा पायी अपने अडिय़ल रवैये पर ही कायम रही।
देर से सही निर्णय सही
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने देश की राजनीति में अपराधीकरण के बढ़ते ग्राफ को लेकर चिंता जताई है। और इस पर कानून बनाने वालों से इसे रोकने के लिए कड़ा कानून बनाने की वकालत की। मामला पिछला बिहार विधानसभा चुनाव का था जिसमें लगभग सभी दलों ने अपराधियों को टिकट दिया था, जिसमे कांग्रेस भाजपा सहित आठ राजनीतिक दल शामिल हैं। इन्हें एक-एक लाख और माकपा और राकांपा को पांच-पांच लाख का जुर्माना लगाया गया। राजनीति को अपराधियों से दूर रखने ऐसा कदम उठाना जरुरी था। जनता में खुसुर-फुसुर है कि लगभग हर साल 2552 करोड़ चंदा प्राप्त करने वाली पार्टी के लिए एक लाख जुर्माना क्या मायने रखता है।
इल्ज़ामात सबके सिर पर
राजनीति में अभी सब कुछ ठीक नहीं कहा जा सकता क्योकि राजनीतिक हालात में जो नई प्रवृत्ति दिख रही है उससे मन में अनेक प्रश्न पैदा होते हैं। सच और झूठ में अंतर तय करने का कोई पैमाना नहीं रह गया है। यानी जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। आज के राजनीतिक दौर में लोग किसी न किसी दल के अनुयायी या दूसरे शब्दों में अंधभक्त भी बोल सकते हैं, बनकर रह गए हैं। जिसने सरकार के कामों की तारीफ की या सराहना की तो वह सरकार का वफादार कहलाने लगता है। और किसी ने सत्ता के खिलाफ आवाज़ उठाई तो वह देशद्रोही या आतंकवादी और न जाने क्या क्या लक़ब से नवाजे जाते हैं। आज देश में कोई बेदाग नहीं है सबके सिर पर इल्जामात है। कही यह सत्ताधीशों का बुना जाल तो नहीं है जिसमें आम लोग फंस गए हैं।
सीएम के नेतृत्व में छग पर इनामों की बौछार
जिस तरह टोक्यो ओलंपिक में भारतीय खिलाडिय़ों को लगातार सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने पर स्वर्ण, रजत, कास्य पदक जीत रहे थे, वैसे छत्तीसगढ़ सरकार को कोरोनाकाल और आर्थिक मंदी के दौर में सर्वश्रेष्ठ औद्योगिक प्रदर्शन करने पर वन विभाग सहित मनरेगा उद्योगों लगातार उत्पादकता बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों से पुरस्कारों की बौछार होते रही है। देश भाजपा शासित राज्यों के साथ कांग्रेस और केंद्र शासित राज्यों छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल में आर्थिक जगत को संतुलित बनाए रखने के साथ लघु उद्योगों को बढ़ावा देकर देश में श्रेष्ठता सिद्ध की है, जिसके फलस्वरूप सरकार के विभिन्न विभागों को सरकार की योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन पुरस्कार पर पुरस्कार मिला है। बधाई हो दाऊ जी आप भी किसी ओलंपिक खिलाड़ी से कम नहीं है।
बहादुरी या ओछापन
कानपुर में जयश्री राम के नारे लगवाने के लिए 8 लोगों ने एक रिक्शा चालक की जमकर पिटाई कर दी। पुलिस तमाशा देखती रही। इसे बहादुरी कहे या ओछापन जिसने जबरदस्ती नारे लगवाने के लिए साम्प्रदायिक सौहाद्र्र की भी परवाह नहीं की। जबकि योगी आदित्यनाथ पूरे यूपी में साम्प्रदायिकता की दुहाई देते फिर रहे है। मुस्लिम रिक्शा चालक की बच्ची हमलावरों के सामने अपने पिता को छोडऩे के लिए गिड़गिड़ाती रही। लेकिन पिटाई करने वालों का मन नहीं पसीजा। जनता में खुसुर फुसुर है कि यह चुनाव की तैयारी का हिस्सा तो नहीं है।