जिनके कंधों पर कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी, वे ही सुविधाओं से वंचित
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। तमाम सरकारी विभागों में से सिर्फ पुलिस ही एक ऐसा डिपार्टमेंट है, जो कभी आंदोलन की राह पर खुद नहीं चलता। लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि इन्हें कोई समस्या ही नहीं है। इनकी कोई मांग भी नहीं है। हकीकत में पुलिस में छोटे कर्मचारियों को वेतन, सुविधा और छुट्टियों को लेकर जो परेशानी है वो चिंतनीय है। छोटे पुलिस कर्मी कभी अपनी समस्या पर सरकार के सामने मुखर नहीं हो पाते, लेकिन शायद अब समय बदल रहा है। पुलिस विभाग प्रदेश में हज़ारों की संख्या में पुलिसकर्मी कार्यरत है और पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश और वेतन भत्ते का पुनर्निर्धारण के संबंध में प्रस्ताव अभी भी विचाराधीन है। वही प्रदेश में सेवारत पुलिस आरक्षकों के वेतन बढ़ोत्तरी को लेकर एक बार फिर मांग उठने भी लगी है। वेतन एवं भत्ते बढ़ाने की मांग लंबे अरसे से की जा रही है। वर्तमान में इन्हें आधारभूत सुविधाएं भी प्राप्त नहीं है। बड़े अधिकारियों की अपेक्षा वेतन भत्ता कम होने के कारण अधिकांश आरक्षक और पुलिसकर्मी अपनी जरूरते बैंक से लोन लेकर पूरी कर रहे हैं।
जंगलों में भी कर रहे गुजर-बसर
अन्य पुलिसकर्मियों के साथ जब फोर्स जंगल में सर्चिंग में जाती है, तो उनके साथ सहायक आरक्षक भी जाते हैं। नक्सलियों से मुठभेड़ होने की स्थिति में ये भी लड़ाई लड़ते हैं। फिर भी इनके वेतन में इतनी विसंगती है, यह समझ से परे हैं। अब सवाल उठता है कि क्या सरकार बस्तर और राजनांदगांव के सहायक आरक्षकों को छोडक़र रायपुर, धमतरी, गरियाबंद और महासुमंद जिले के सहायक आरक्षकों को भूल गई है? लेकिन राजधानी के पुलिसकर्मियों को बस्तर संभाग में तैनात सहायक आरक्षकों की तरह उन्हें सुविधाएं नहीं मिल रही है।
नियमों में विसंगति
विभाग में आरक्षकों और अन्य पदों के लिए अलग-अलग पदोन्निति नियम बनाए गए हैं। सब इंस्पेक्टर से लेकर आईपीएस अफसर तक के प्रमोशन के लिए प्रदेश में एक ही वरिष्ठता सूची बनाई जाती है। लेकिन आरक्षकों के मामले में जिलेवार सूची बनती है। इसमें किस जिले में कितने पद रिक्त हैं, इसका ध्यान रखा जाता है। प्रदेश के विभिन्न थानों में 10 हजार से अधिक आरक्षक पदस्थ हैं। गृह विभाग सब इंस्पेक्टर व अन्य बड़े पदों पर तैनात अधिकारियों-कर्मचारियों को नियमानुसार पदोन्नति दे रहा है, लेकिन आरक्षकों के प्रमोशन हर साल अटका दिए जाते हैं। लेट-लतीफी के कारण पदोन्नति से वंचित आरक्षक मानसिक तनाव झेल रहे हैं। इसके अलावा कम वेतन के रूप में आर्थिक हानि भी हो रही है।
मेहनत के बाद भी मिली हताशा
पुलिस विभाग में कार्यरत आरक्षकों को आज भी वेतन वृद्धि और भत्ते में वृद्धि जैसी सुविधा नहीं मिल रही है। इनका वेतन व अन्य सुविधाएं आज भी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की ही तरह है। पुलिसकर्मियों को जो भी भत्ता दिया जा रहा है वह वर्तमान समय में नहीं के बराबर है। वर्तमान समय में आरक्षक को दो पहिया में यात्रा करते हुए लोगों ने देखा है। पुलिस विभाग के आरक्षक व प्रधान आरक्षकों को 18 रुपये प्रतिमहीने साइकिल भत्ता मिलता है जबकि जिले के सभी पुलिसकर्मी समय के मुताबिक मोटर साइकिल की सवारी करते हैंं। शासन से मिलने वाले भत्ते में इस महंगाई के दौर में ट्यूब का पंचर बनवाना भी संभव नहीं हो पाता।
आरक्षकों को रही काफी परेशानी
गर्मी, बरसात, ठंड हर मौसम में डबल ड्यूटी करने वाले इन जवानों की सुविधाएं बढ़ाने गृह विभाग और पुलिस विभाग गंभीर नहीं है। 15 से 20 साल की सेवा पूरी कर चुके आरक्षकों को भी अधिकतम वेतन 30 हज़ार से 32 हज़ार मिलती है। वही नव आरक्षकों को 20 से 22 हज़ार की सेलेरी मिलती है। वाहन भत्ते की जगह आज भी 18 रुपए की सायकल भत्ता दिया जा रहा है। महंगाई के दौर में जब किराये का एक कमरा 3 से 4 हज़ार रेंट पर मिलता है तब इन आरक्षकों को 800 रुपए मकान भत्ता मिल रहा है। वेतन और भत्ता में वृद्धि नहीं होने से इन जवानों में हताशा का माहौल है।पुलिस विभाग के कर्मचारी दिन रात जनता की सेवा करने वाले आरक्षकों को आज भारी दिक्क्तों का सामना करना पड रहा है। आज एक तरफ अपराधी भी हाईटेक तरीके का इस्तेमाल कर अपराधों को अंजाम दे रहे हैं वहीं सरकार पुलिस को हाईटेक बनाने के बजाए अपने नियमों पर ही उलझी हुई है।
वीआईपी ड्यूटी से लेकर थाने की ड्यूटी कर रहे आरक्षक
अपनी वेतन बढ़ोत्तरी की मांग को लेकर परेशान आरक्षक वीआईपी की ड्यूटी से लेकर थाने तक ड्यूटी में समिल्लित होते है। इसके बाद उन्हें विभिन्न थाना क्षेत्रों में तैनात किया जाता है। आरक्षकों को को 3 साल बाद सहायक आरक्षक, आरक्षक के पद पर पदोन्नत हो जाएंगे। इसका भरोसा दिलाया गया लेकिन 5 साल बीतने के बाद भी ऐसा नहीं हो पाया। सहायक आरक्षक अन्य पुलिसकर्मियों की तरह की काम करते हैं। वीआईपी ड्यूटी से लेकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी सहायक आरक्षक तैनात हैं। वाहन चलाने से लेकर अन्य तरह का काम इनसे लिया जा रहा है। लेकिन वेतन के मामले में राज्य सरकार के हाथ सहायक आरक्षकों के लिए तंग है। नगरी- सिहावा के नक्सल क्षेत्रों में तैनात सहायक आरक्षकों को नक्सलियों को उतना ही खतरा है, जितना अन्य पुलिसकर्मियों को है। फिर भी इनका अन्य पुलिसकर्मियों की तरह बीमा नहीं है।
सोशल मीडिया को बनाया माध्यम
पुलिस के कुछ जवानों ने आरक्षकों की समस्याओं को लेकर एक मुहिम छेड़ी थी। फिलहाल पुलिस लाइन में पदस्थ आरक्षकों ने सोशल मीडिया के माध्यम से आरक्षकों के वेतन में बढ़ोतरी की मांग रखी है, आरक्षकों का कहना है कि इसके लिए कोई सडक़ पर धरना या हड़ताल नहीं किया जा रहा है। बल्कि आवेदन और पत्रों के माध्यम से सरकार को बात पहुंचाई जा रही है और आगे भी इसी तर्ज पर मांग जारी रहेगी। आरक्षकों ने का कहना है कि युवक-युवतियां उनके साथ आरक्षक की नौकरी करते है। आज कोई हवलदार है, तो कोई एएसआई। क्योंकि इनके लिए पर्याप्त पद है। पद के अभाव में हवलदार नहीं बन पाए आरक्षकों का कहना है कि शासन उन्हें रायपुर रेंज के किसी भी जिले में जहां हवलदार के पद रिक्त है, वहां हवलदार के पद पर पदोन्न्त कर भेजा जाए। वे हवलदार बनकर जाने को तैयार है, लेकिन ऐसा नहीं किया जाता। पद के अभाव में समय पर प्रमोशन नहीं मिलने से कई बार इन्हें काफी खलता है क्योंकि विभागों में पद का अपना अलग महत्व और रूतबा होता है।
आरक्षकों को पद आने का बेसब्री से इंतजार
अपने वर्दी पर हवलदार की फित्ती लगाने परीक्षा पास करने वाले आरक्षकों को पद आने का बेसब्री से इंतजार है। जिले के कई आरक्षक है जिन्होंने चार साल पहले हवलदार बनने के लिए विभागीय परीक्षा पास कर लिया है, लेकिन पद के अभाव में अब तक इन आरक्षकों को हवलदार नहीं बनाया गया है। इन आरक्षकों को हवलदार का पेमेंट शासन से दिया जा रहा है। ओबीसी, सामान्य वर्ग व एससी वर्ग के आरक्षकों के प्रमोशन के लिए पद नहीं है। मजबूरी में हवलदार होने के बाद भी आरक्षक की ड्यूटी करना पड़ रहा है। परीक्षा पास करने वाले कुछ पुलिस आरक्षकों का कहना है कि हवलदार तो बन गए है, लेकिन पद के अभाव में अब भी आरक्षक है। उन्हें वर्दी में कब फित्ती लगे, यह बेसब्री से इंतजार है।