छत्तीसगढ़

प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का पुरसाने हाल नहीं

Nilmani Pal
9 Jun 2022 5:47 AM GMT
प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का पुरसाने हाल नहीं
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  1. अस्पतालों में दवाइयों का टोटा, गरीब मरीज और परिजन भटकने को मजबूर
  2. शासन की घोषणा महज दिखावा साबित हो रहा
  3. मजबूरी में दवाइयां बाहर से ऊंचे दामों में खरीदना पड़ता है
  4. सीजीएमएससी और अन्य सम्बंधित लोगों की मिलीभगत की आशंका से इंकार नहीं
  5. जानबूझकर सीजीएमएससी दवाइयों का सप्लाई नहीं कर रहा ?
  6. सीजीएमएससी के बिना अनापत्ति से खरीद नहीं सकते

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। प्रदेश में इन दिनों स्वास्थ्य सेवाओं का पुरसाने हाल नहीं है। दूर-दराज के ग्रामीण बेहतर इलाज के लिए रायपुर स्थित मेकाहारा आते हैं लेकिन उन्हें क्या पता कि यहां सुविधा के नाम पर असुविधाओं का सामना करना पड़ेगा। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा में शासन द्वारा अति आवश्यक दवाइयों का टोटा है। धन्वंतरि मेडिकल स्टोर्स में भी अधिकतर दवाइयां नहीं मिलने की शिकायत मिलती है। अस्पतालों में लगभग कई दवाइयाँ सूची में है लेकिन मिलती मात्र कुछ ही दवाइयां है। बाकी दवाइयां बाजार में ऊंचे दामों में खरीदने के लिए मरीज और उनके परिजन मजबूर होते हैं। एक तरफ भूपेश बघेल हैं जो गरीबो की भलाई के लिए दिन रात काम कर रहे हैं और दूसरी तरफ स्वास्थ्य विभाग है जो सरकारी और निजी अस्पतालों पर नकेल कसने में पीछे है।

वेटिंग ख़त्म होने का दावा

मेकाहारा में एमआरआई, सीटी स्कैन,सोनोग्राफी व कलर डाप्लर जांच के लिए अभी वेटिंग चल रही है। इस वजह से मरीजों को काफी तकलीफ उठानी पड़ती है उनकी और दूर-दराज़ से आये उनके परिजनों की भी परेशानी बढ़ जाती है। प्रदेश शासन द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भारी भरकम बजट का प्रावधान होने के बावजूद स्वास्थ्य अमला निजी अस्पतालों से मिलने वाले कमीशन के चलते नई मशीन मंगवाने में हीला हवाला कर रहे हैं, और निजी अस्पताल मालिकों को इसका सीधा फायदा करा रहे हैं।

स्वास्थ्य विभाग की दुर्गति क्यों?

स्वास्थ्य अमले का फेल होने का प्रमुख कारण राजनेता और रसूखदार अधिकारियों के निजी अस्पताल चलाना है इनके धौंस या रसूख के वजह से स्वास्थ्य विभाग का चुप रहना मज़बूरी हो सकती है लेकिन प्रश्न ये उठता है कि क्या स्वास्थ्य मंत्री भी इनके धौंस के आगे घुटने टेकने मजबूर हैं? यह असंभव है लेकिन हालत यही बयान कर रहे हैं। पूरे छत्तीसगढ़ में इन अधिकारियो के स्वामित्व वाले या पार्टनरशिप में अस्पताल चल रहे हैं। क्या यही वजह है जिसके कारण निजी अस्पताल वाले खुली लूट मचा रखे हैं। एक बार अस्पताल में घुसे यानी जिंदगी भर की कमाई इन अस्पताल मालिकों के जेब में। यह भी देखा गया है की निजी अस्पताल वाले डाक्टर वही दवाई लिखते हैं जो उनके स्वामित्व वाले मेडिकल स्टोर में उपलब्ध रहते हैं। बाजार में जो इंजेक्शन 1500 की आती है। वही इंजेक्शन 2500 रूपये में इनके द्वारा संचालित मेडिकल स्टोर में मिलते हैं। मरीज की जान को खतरा बता कर बेतहाशा कमाई करने से ये पीछे नहीं रहते।

सरकार का नाम खऱाब करता स्वास्थ्य अमला

प्रदेश सरकार का नाम खराब करने में स्वास्थ्य अमला कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहता मुख्यमंत्री की योजनाओं पर स्वास्थ्य अमला ने पतीला लगाया। सरकारी अस्पताल में मरीजों को जबरदस्ती इलाज के गफलत में रखकर निजी अस्पतालों के सुझाव दिए जाते है क्योकि शहर के कई निजी अस्पताल छुटभैय्या नेताओं और आईपीएस अधिकारियों के है। बड़े छुटभय्ये नेताओं की और बड़े अधिकारियों के अपने निजी अस्पतालों के होने से सरकारी अस्पतालों में मरीजों का इलाज सही ढंग से नहीं किया जाता।

अस्पताल को लगा अव्यवस्थाओं का मर्ज

सरकारी अस्पताल में मरीजों को किसी भी तरह का बहाना बताकर जैसे-तैसे उनको निजी अस्पतालों में भेजा जाता है। ऐसा प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों का हाल हो गया है। राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा को अव्यवस्थाओं का मर्ज लग गया है। यही मर्ज मरीज और उनके परिजनों को दर्द दे रहा है। हद तो तब हो जाती है जब इमरजेंसी में आए मरीजों को स्ट्रेचर तक नहीं मिल पाते। जो स्ट्रेचर हैं भी वो टूटे-फूटे हैं। यहां न केवल शहर बल्कि दूरस्थ इलाकों से और छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाकों तक के मरीज इलाज के लिए यहां आते हैं। लेकिन, जब से अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में तब्दील किया गया है, व्यवस्थाएं चौपट होती दिख रही है। इनमें स्टे्रचर व व्हील चेयर की कमी भी शामिल है। राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा की दुर्गति किसी से छुपी नहीं है। जहां स्ट्रेचर टूटे हुए है और मरीज़ों को दर बदर की ठोकरें खानी पड़ रही है। मरीज़ों के परिजनों का कहना है कि अस्पताल में समय पर सही उपचार नहीं मिलने से बीमारी गंभीर हो रही है। इलाज की पूरी जिम्मेदारी प्रशिक्षु डॉक्टरों पर है।

जिला अस्पताल बना कबाड़ खाना

जिला अस्पताल में डॉक्टरों के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। यहां मरीजों के लिए वार्ड में में लगे बिस्तर कबाड़ हो रहे हैं और स्ट्रेचर टूटे हुए पड़े हैं। स्ट्रेचरों के अभाव में मरीजों को यहां गोद में उठाकर लाना पड़ता है। देखरेख के अभाव में इमरजेंसी कक्ष के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। जिला अस्पताल परिसर में मरीजों की बढ़ती तादात को देखते हुए तकरीबन दो साल पहले नवीन इमरजेंसी कक्ष का निर्माण कराया गया था। मरीजों को बेहतर चिकित्सीय सेवाएं मुहैया हो सकें, इसके लिए इमरजेंसी परिसर में चार अत्याधुनिक स्ट्रेचर और मरीजों को आपातकाल में भर्ती किए जाने के लिए आधुनिक सुविधाओं वाले बिस्तर मंगाए गए थे। विकलांग मरीजों को आसानी से उपचार के लिए चिकित्सक के पास तक ले जाया जा सके, इसके लिए बाकायदा रैंप बनवाकर व्हील चेयर मंगाई गई थी। देखरेख के अभाव में मरीजों की सुविधाओं के लिए उपलब्ध कराई गईं ये सभी व्यवस्थाएं कबाड़ हो रही हैं।

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