छत्तीसगढ़
रायपुर के मंत्रालय में घुसे NSG कमांडो, जानिए क्या है वजह
Shantanu Roy
21 Feb 2024 1:47 PM GMT
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छग
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर को आतंकियों के हमले से बचाने का मिशन चलाया गया। मशीन गन, बम स्क्वॉयड, डॉग टीम के साथ कमांडो मंत्रालय में घुसे। ये कोई साधारण कमांडो नहीं NSG (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड) के ब्लैक कैट कमांडो थे। दरअसर रायपुर में किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए NSG ने बुधवार को मॉकड्रिल की। सबसे पहले नवा रायपुर के न्यू सर्किट हाउस में कमांडोज पहुंचे। यहां मंत्रियों और प्रदेश सरकार के अधिकारियों का आना-जाना होता है। एनएसजी की टीम ने इस पूरी बिल्डिंग को अपने कब्जे में लिया हर माले पर जाकर चेकिंग की गई।
इसके बाद जांबाज कमांडोज की टुकड़ी मंत्रालय परिसर में पहुंची। यहां भी मंत्रालय बिल्डिंग के मुख्य हिस्सों की जांच की। टीम ने ये देखा कि यदि कुछ लोगों को बंधक बना लिया जाए तो टीम इस बिल्डिंग में कैसे ऑपरेट करेगी। फायरिंग की दशा में क्या हालात बन सकते हैं। इन सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कमांडोज ने इन हिस्सों में ट्रेनिंग की।
NSG के कमांडोज जब इस तरह की मॉकड्रिल करते हैं तो युद्ध जैसे हालातों को ध्यान में रखकर प्रैक्टिस करते हैं। कमांडोज को काल्पनिक सिचुएशन दी जाती है। जैसे मंत्रालय के चौथे माले के 15वें कमरे में आतंकियों ने 20 लोगों को बंधक बनाया है उन्हें लेकर सुरक्षित लौटना है। कमांडोज को इसके लिए तय समय सीमा में बिल्डिंग में सीढ़ियों के रास्ते या रस्सियों के सहारे पहुंचकर एक्शन करना होता है। सिक्योरिटी में आने वाले मुश्किलों को रिव्यू किया जाता है। खबर है कि रायपुर में कुछ भीड़-भाड़ के हिस्सों में भी कमांडोज प्रैक्टिस करेंगे।
- एनएसजी कमांडोज की सबसे खास बात है त्वरित गति से इनकी कार्रवाई और हर हाल में टारगेट को फिनिश करना।
- अपने गठन के बाद से आज तक एनएसजी कमांडो दो दर्जन से ज्यादा खतरनाक ऑपरेशनों को अंजाम दे चुके हैं।
ऐसे होती है सलेक्शन
- कमांडोज की ट्रेनिंग बहुत ही कठोर होती है। जिस तरह से आईएएस चुनने के लिए पहले प्री-परीक्षा होती है, फिर मेन और अंत में इंटरव्यू। ठीक उसी तरह से कमांडोज फोर्स के लिए भी कई चरणों में चुनाव होता है। ये कमांडो पैरामिलिट्री फोर्स और आर्मी से चुनकर आते हैं।
- सबसे पहले जिन रंगरूटों का कमांडोज के लिए चयन होता है, वह अपनी-अपनी सेनाओं के सर्वश्रेष्ठ सैनिक होते हैं। इसके बाद भी उनका चयन कई चरणों में गुजर कर होता है। अंत में ये सैनिक ट्रेनिंग के लिए मानेसर पहुंचते हैं तो यह देश के सबसे कीमती और जांबाज सैनिक होते हैं।
- जरूरी नहीं है कि ट्रेनिंग सेंटर पहुंचने के बाद भी कोई सैनिक अंतिम रूप से कमांडो बन ही जाए। नब्बे दिन की कठोर ट्रेनिंग के पहले भी एक हफ्ते की ऐसी ट्रेनिंग होती है जिसमें 15-20 फीसदी सैनिक अंतिम दौड़ तक पहुंचने में रह जाते हैं।
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