छत्तीसगढ़

फ्लैटों के खरीदार नहीं, हाउसिंग बोर्ड-आरडीए कर्ज में डूबी

Admin2
28 Aug 2022 5:58 AM GMT
फ्लैटों के खरीदार नहीं, हाउसिंग बोर्ड-आरडीए कर्ज में डूबी
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पिछले 3 साल से हाउसिंग बोर्ड का नया प्रोजेक्ट नहीं, आरडीए फ्लैट बेचने बार-बार कर रहा रि-टेंडर

भ्रष्टाचार और अपनों को रेवड़ी बांटने में हाउसिंग बोर्ड और आरडीए की डूबी लुटिया

हाउसिंग बोर्ड और आरडीए सरकारी सफेद हाथी, खाने के और दिखाने के अलग-अलग दांत
पिछले चार सालों में कीमत गिराने के बाद भी नहीं बिकी संपत्ति
हाउसिंग बोर्ड और आरडीए की संपत्ति मिट्टी के दाम भी खरीदने वाला नहीं
हाउसिंग बोर्ड का कचना प्रोजेक्ट में एक चौथाई रेट में भी खरीदार नहीं मिले
बिल्डरों ने थोक में फर्जीवाड़ा कर खरीदारों का विश्वास खोया
जसेरि रिपोर्टर रायपुर। भाजपा शासन काल में हाउसिंग बोर्ड और आरडीए के अधिकारियों के मौके की जगह और मकान-दुकान अपनों को बांट कर सरकार की मंशा पर पानी फेर दिया। जो योजना जनता को लाभ देने के लिए बनाई गई उसकी लाभ अधिकारियों और उनके परिजन या मंत्रियों के चहेते लेते रहे। सरकार बदलने के बाद भी दो साल कोरोना से लड़ते -लड़ते बीत गए और जब हाउसिंग बोर्ड और आरडीए कर्ज से जिवालिया होने के कगार पर खड़े हो गए तो पिर अधिकारियों ने जोर लगाया आदे से बी कम कीमत पर फ्लेट के लिए टेंडर जारी किए उसके बाद भी खरीदार सामने नहीं आ आए। आरडीए के इंद्रप्रस्थ योजना में ले देकर पूरा हुआ लेकिन दाम में लगातार बढञोत्तरी करने के कारण लोगों ने पैसे वापस ले लिए जिसके कारण आरडीए को फ्लट बेचने के लिए टेंडर पर टेंडर निकालना पड़ा उसके बाद भी इंद्रप्रस्थ योजना फेल हो गई। 8 ब्लाकों वाले इस बहुमंजिला प्रोजेक्ट दम तोड़ती नजर आ रही है। वहीं हाल हाउसिंग बोर्ड के पुराने और नए मकानों का है जो मेंटनेंट की बदहाली से लोग छोड़ कर औने पैने दाम में बेचकर निकल रहे है। पिछले डाई साल तो हाउसिंग बोर्ड का कोई प्रोजेक्ट ही लांच नहीं हुआ। अधिकारी और कर्मचारी मजे से कुर्सी तोड़ते रहे। हाउसिंग बोर्ड 2018 से पहले पूर्ण हुए प्रोजेक्टों को बेचने के लिए पिछले साढ़े तीन साल टेंडर पर टेंडर जारी कर रही है लकिन कोई लेवाल नहीं मिल रहा है। जो संपत्ति हाउसंिग बोर्ड के पास बिकवाली के लिए है वो सभी सी ग्रेड के है, जिसमें फ्रंट नहीं, ग्राउंड फ्लोर नहीं, उपर के दो मंजिलों तक कोई कमान ही नहीं, सिर्फ तीसरी मंजिल पर मकान है लेकिन दाम ऐसा है कि खरीदार के मुंह खुले के खुले रह जाते वो सिर्फ हाउसिंग का मकान देखकर वापस लौट जाते है।
वहीं आरडीए और हाउसिंग बोर्ड के प्रोजेक्ट पेल होने के फायदा उठाने के लिए बिल्डरों ने कुछ मीडिया घराने के साथ मिलकर मकान मेला लगाया वो बी औंधे मुंह गिर पड़ा। लोगों को प्रापर्टी खरीदी के लिए एसएमएस,वाट्सएप से पार्टी का आमंत्रण और मेला स्थल में बुलाने के लिए सारे हथकंडे अपनाए। लोगों को लड़कियों से फ ोन करवा कर आमंत्रित किया है। लेकिन बिल्डरों के झांसे में आने से लोग अब बचने लगे है। बिल्डरों ने थोक में फर्जीवाडा़ा कर पूरे कारोबार को ही चौपट ककर दिया है। बिल्डरों ने अपना विश्वास खो दिया है। बिल्डरों के सारे प्रोजेक्ट पिछले दो साल में एक कौड़ी की नहीं बिक पाई है। पिछले दो साल 2019 मार्च से 2020 और 2021 में बिल्डरों ने जो प्रापर्टी बेचने के लिए बनाई थी,कोरोना महामारी के भयावह आतंक और उद्योग, व्यपार-कारोबार ठप होने से निम्न और मध्यमवर्गीय परिवार जो बेघर थे, उन्हें औद्योगिक और सरकारी क्षेत्र से नौकरी से निकाल दिए गए जिससे बेरोजगार होकर रोजमर्रा के जरूरतों को सामान के लिए तरसते रहे। राजमर्रा की झंझावत से जूझते नागरिकों को किराए देने तक के लाले पड़ गए ऐसे में बिल्डरों की प्रापर्टी कौन खरीदता। कोरोना की चपेट से छत्तीसगढ़ के बिल्डर आज तक उबर नहीं पाए है। बिल्डरों के करीबी सूत्रों की मानें तो राजधानी में प्रापर्टी की कीमत दोगुनी हो जाती थी, जिस पर उद्योगपति से लेकर सरकारी अधिकारी और कर्मचारी निवेश कर अपनी पूंजी बढ़ाते थे, कोरोना काल में प्रापर्टी मौत के भय से निवेश करने वालों ने भी हाथ खींच लिए जिसके चलते पिछले दो साल में बिल्डरों को करोड़ों अरबों रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। अब कोरोना काल की समाप्ति के बाद कुछ आसा की किरण दिखाई दे रही है लेकिन प्रापर्टी में निवेशकों की रूचि अभी तक सामने नहीं आने से बिल्डर कर्ज की बोझ में दबकर कर्ज चुकाने के लिए प्रापर्टी आधे कीमत में बेचने के लिए तैयार होने के बाद भी उन्हें खरीदार नहीं मिल रहे है।
बिल्डरों की खराब छबि ने बिगाड़ा धंधा
प्रदेश में बिल्डरों की छवि हद से ज्यादा खराब है, लोगों के सस्ते में प्रापर्टी बेचने के लिए झांसा दिया और पैसे लेकर भी फ्लेट और इंडीज्यूअल मकान और प्लाट भी हैंडओव्हर नहीं किया जिसके कारण इनकी छवि काफी खराब हुई और रेरा में भी शिकायत हुई। लोगों से मकान-दुकान जमीन की कीमत दो साल दोगुनी होने के झांसा देकर निवेश कराकर उनको करोड़ों रुपए का चूना लगाया। जानकार सूत्रों ने बताया कि जमीन की दलाली करने वाले जब बिल्डर बन गए तो उस प्रापर्टी की क्या दशा होगी आप सोच सकते है। बड़े-बड़े ब्रोशरों में अपनी प्रापर्टी बेचने के लिए हथकंड अपनाए, लोक लुभावने सुविधा देने के वादे किए, लेकिन सुविधा नहीं दी, जमीन में भी हेराफेरी की और खरीदरों ने बिल्डरों के खिलाफ रेरा में शिकायत कर बिल्डर का पंजीयन ही रद्द करवा दिया।
जमीन पर किया कब्जा
प्रदेश के बड़े और छोटे बिल्डरों ने कोरोनाकाल में सिर्फ किसानों की जमीनों पर कब्जा किया और प्रोजेक्ट पर प्रोजेक्ट तानते रहे किसानों को क रोड़ों की जमीन के बदले में दो-चार लाख देकर पावर आफ अटर्नी लेकर उनके खेतों को बिना डायवर्सन किए फ्लाटिंग और रिहायशी बनाने के और अपने रसूख का प्रदर्शन करने राजनेताओं के साथ फोटो खिंचवा कर राजनीतिक लाभ की जिद में डटे रहे। किसानों को इससे दोहरा नुकसान हुआ खेत का पूरा पैसा भी नहीं मिला और फ सल भी नहीं बो सके। आधे अधूरे सौदे के चलते किसान दोनों तरफ से लूट गया और बिल्डरों ने कुछ लाख निवेश कर अरबों की जमीन पर कब्जा कर छोटे और बड़े किसानों को सिर्फ नुकसान की पहुंचाया।
सरकारी अधिकारियों को भी दिया झांसा
बिल्डरों ने सस्ते में खेत को खरीद कर सरकारी अधिकारियों से सांठगांठ कर बिना नक्शा, लेआउट पास, बिना डायर्वटेड जमीन पर धड़ाधड़ दस मंजिल फ्लेट तान दिया। अधिकारियों ने तो पैसा लेकर बिल्डरों को बिना नक्शे के एनओसी दे दी और बिल्डरों ने किसान से जमीन हथिया ली। किसानों की जमीन-खरीदी-बिक्री की गाइड लाइन तक की परवाह नहीं की। किसान पैसों के लिए बिल्डरों के आज तक चक्कर काट रहे है। किसानों का कहना ता कि पावर आफ अटर्नी देकर हम फंस चुके है अब यहां से निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। यदि पैसों के लिए तगादा करते है तो मसल पावर की धमकी देते है। बिल्डरों के पास धनबल और बाहुबल प्रदेश के साथ राजधानी के बिल्डरों ने अपने प्रोजेक्ट को सेलआउट करने धनबल और बाहुबल से मार्केटिंग करवा रहे है। ताकि निवेशकों को फंसाकर पूंजी निकलवा सके। धनबल और बाहुबल के दम पर बिल्डरों अपना कारोबार बढ़ाना चाहते है। जिसके चलते प्रोजेक्टों की बिक्री में रोड़ा आने से सभी फेल प्रोजेक्टों को बेचने के लिए लोगों को लालच दे रहे उसके बाद भी बिल्डरों के प्रोजेक्ट आधे कीमत में भी खरीदार नहीं मिल रहे है।
सरकारी बिल्डरों की भी हालत पतली
सरकारी जमीन-मकान दुकान बेचने वाली सरकारी संस्था हाउसिंग बोर्ड और रायपुर विकास प्राधिकरण के सभी प्रोजेक्ट तीन साल से ठप बड़े है जिसने भी मकान-दुकान बेचने के लिए बनाए गए थे, उनकी कीमत बिल्डरों से भी दस गुना अधिक होने के कारण आरडीए और हाउसिंग बोर्ड की प्रापर्टी के खरीदार नहीं मिलने से आरडीए और हाउसिंग बोर्ड की प्रापर्टी जर्जर होकर खरीदी से बाहर हो गई है। जिसके कारण हाउसिंग बोर्ड और आरडीए अरबों रुपए के कर्जदार हो गए है। जनता को सस्ता मकान-दुकान आज तक नहीं मिला आरटडीए और हाउसिंग बोर्ड का गठन ही गरीबों और शोषित वर्ग के उत्तान के लिए किया गया था, लेकिन इसके विपरीत इस संस्था का फायदा गरीब और मध्यम वर्गीय निम्नआय वर्गीय लोगों को नहीं मिला। यह संस्था सत्ता धारी दल के छुटभैया नेताओं की राजनीति की भेंट चढ़ गई। दोनों संस्थाओं की कीमती और बहुमूल्य जमीन बिल्डरों और उद्योगपतियों के कब्जे में जा चुकी है। अब टूटा-फू टा बहुमंजिला वन-बीएचके खदीदार नहीं मिलने से बिना रखरखाव के टूट-फू ट चुके है। जिसको बेचने के लिए एक साल से लगातार विज्ञापन निकालने के बाद भी खरीदी में लोगों ने रूचि नहीं दिखाई।
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